रिकवरी रेट की स्थिति
कुल औसत : 73.85 प्रतिशत
होम आइसोलेशन : 98.01 प्रतिशत
कोविड अस्पताल : 97.41 प्रतिशत
करीब नौ सौ एक्टिव केस
50 प्रतिशत इसमें सरकारी अस्पतालों में भर्ती हैं
30 प्रतिशत के करीब संक्रमित होम आइसोलेट
20 प्रतिशत के करीब मरीज निजी अस्पतालों में
प्रति मरीज दो से चार लाख रुपए तक वसूल रहे शुल्क
– 5-10 हजार रुपए प्रतिदिन सामान्य स्थिति में
– 10-20 हजार रुपए प्रतिदिन आइसीयू चार्ज
– 06-30 हजार रुपए का एक इंजेक्शन का चार्ज
– 01-03 हजार रुपए तक प्रतिदिन पीपीई किट के
काढ़ा पीया और स्वस्थ हो गए
कोरोना संक्रमण को मात दे चुके नर्मदा रोड निवासी 50 वर्षीय व्यक्तिके अनुसार कोरोना पॉजिटिव मिलने पर वे होम आइसोलेट हुए। उन्हें हल्की खांसी, सर्दी और गले में दर्द था। वे प्रतिदिन भाप लेते थे। दिन में चार बार काढ़ा पीते थे। सुबह जल्दी उठकर घर के गार्डन में टहलते थे। रात में जल्दी सो जाते थे। ऐसा करते हुए पांच से छह दिन में उनकी खांसी और सर्दी ठीक हुई। एक दो दिन में गले का दर्द भी दूर हो गया। दस दिन में ही होम आइसोलेशन से डिस्चार्ज हो गए। शहर में सरकारी विभाग में कार्यरत कर्मचारी की कोरोना जांच रिपोर्ट पॉजिटिव आई। उस वक्तवे सरकारी आवास में अकेले थे। वह हर दिन एम्बुलेंस आने का इंतजार करते। राह तकते-तकते 15 दिन हो गए। कोई जांच के लिए नहीं आया। टेलीमेडिसिन के जरिए एक बार फोन आया था। उन्होंने बातचीत के बाद कोरोना लक्षण को सामान्य बताया। उबला पानी पीने, गरारा करने, पौष्टिक भोजन करने और घर पर रहने के लिए कहा। वे घर पर ही रहे। पूरी तरह स्वस्थ हो गए।
मानवीय पहलू को महत्व दें
कोरोना भी एक बीमारी है। लिहाजा इसके इलाज में खर्च तो होगा। लेकिन, शहर के कुछ निजी अस्पताल वालों ने इस महामारी के नाम पर जिस तरह की लूट मचा रखी है, वह इस पेशे पर सवाल है। हर कोई जानता है। मानता भी है कि सभी तरह के इलाज महंगे हुए हैं। लेकिन, कोरोना का इलाज इतना महंगा नहीं है, जितना निजी अस्पताल वाले माहौल बना रहे हैं। असल में अस्पताल संचालक समझ रहे हैं कि कोरोना के नाम पर लोगों में दहशत है। इसलिए लूट-खसोट का पूरा मौका है। वे मरीज को इस कदर डरा देते हैं, उसके पास कोई विकल्प नहीं दिखता। इसी के चलते अस्पतालों का ‘मनी मीटरÓ कोरोना की रफ्तार से भी ज्यादा तेजी से बढऩे लगता है। अस्पताल संचालकों को भी समझना होगा कि यह बहुत बड़ा संकटकाल है। इससे पूरी सरकार जूझ रही है। ऐसे में अस्पताल संचालकों की जिम्मेदारी बनती है कि मानवीय पहलू को भी महत्व दें। समाजसेवा का भाव रखने से भी उनकी कमाई प्रभावित नहीं होगी। आखिर वे जिनकी जेब खाली कर रहे हैं, वे भी तो अपने ही हैं। मोल-भाव/नफे-नुकसान को कुछ समय के लिए भूल जाएं। आम लोगों का दर्द समझें। सरकार का सहयोग करें। मानकर चलें कि वे घाटे में नहीं रहेंगे।