इस वर्ष बीते पांच महीनों में डकैती सहित २५ हत्या, ३९ लूट, ८६ दुष्कर्म के ये आंकड़े किसी के भी होश उड़ाने के लिए काफी हैं। हद तो ये है जिस वक्त वीआईपी सुरक्षा के कड़े पहरे में शहर था, उसे धता बताकर पॉश इलाके भंवरताल में लूट के बाद स्वास्थ्य अधिकारी की हत्या कर दी गई। इस पर पुलिस की बेशर्मी देखिए, सूचना के बाद यह कहना कि मौके पर भेजने के लिए अमला नहीं है। यह गैर जिम्मेदाराना रवैया निश्चित ही आपराधिक कृत्य है। आला अधिकारियों को चाहिए कि ड्यूटी पर रहते ऐसा करने वाले को तत्काल सस्पेंड करें। पुलिस का यही रवैया शहर की कानून-व्यवस्था के लिए नासूर बनता जा रहा है।
इधर, विश्वविद्यालय परिसर में फिर एक सनसनीखेज वारदात सामने आई। यहां छात्रा को सरेराह दो बदमाशों ने चाकू मार दिया। नाकारा पुलिस जैसे अपराधियों के सामने घुटनों के बल आ गई है। लुटेरों और बदमाशों के हौसले बुलंद हैं। राह चलते व्यक्ति की चेन, पर्स, मोबाइल जो हाथ आया झपटकर भाग निकलते हैं। टीनएजर्स गैंग शहर में फर्राटा भरते हुए तीन सवारी निकलते हैं, लेकिन चौक-चौराहों पर तैनात पुलिस वालों को क्यों नहीं दिखते। डकैती हो या लूट, पुलिस बस लकीर पीटने के लिए रह जाती है। नाकेबंदी काम आती है न रात की गश्त की कोई कारगर व्यवस्था है। जबलपुर पुलिस की जांच तो जैसे पूरी तरह से ठप है। किसी बड़े मामले के खुलासे की उम्मीद तो दूर की बात, जांच में ही पसीना छूट जाता है। नतीजतन, पुलिस के हाथ खाली। पुलिस और कानून-व्यवस्था की इस अराजक स्थिति से शहर में कोहराम है। स्वास्थ्य अधिकारी की हत्या के खिलाफ डॉक्टरों ने प्रदर्शन किया। कुछ संगठनों ने मशाल जुलूस भी निकाला। सवाल अब भी यही है कि शहर आखिर कब तक सहेगा।
शायद यही सही समय है जब पुलिस खुद के वजूद को साबित करे, अपराधियों में दहशत का पर्याय बने। अपराधियों और अपराध पर सख्त कार्यवाही करे। लोगों में पुलिस का यह भरोसा निश्चित ही अपराधियों में डर की वजह बनेगा, और यहीं से परफेक्ट पुलिसिंग की शुरुआत भी होगी।
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