तीर्थ पुरोहित अभिषेक मिश्रा ने बताया कि पिछले कुछ सालों में पितरों के तर्पण आदि श्राद्धकर्म में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है। वैसे तो ये कार्य घर के पुरुषों व बच्चों को करना होता है, लेकिन विशेष परिस्थियों में पितरों के मोक्ष के लिए महिलाएं भी कर सकती हैं। इसके अलावा कुछ घरों परिवारों में दशकों से ये परंपरा रही है कि पुरुषों के साथ महिलाएं भी जोड़े से बैठकर पितरों का तर्पण करती चली आ रही हैं।
दो प्रमुख वजह हैं
अभिषेक मिश्रा ने बताया कि महिलाएं दो कारणों से तर्पण या पितरों का श्राद्ध करती हैं। इनमें पहला कारण है कि उनके परिवार में यदि कोई पुरुष नहीं है तो वे अपने पूर्वजों, पितरों का तर्पण, पिंडदान, श्राद्ध आदि कर सकती हैं। इसी तरह दूसरा कारण है कि उनके परिवार के पुरुष या बच्चे कोई भी श्राद्ध कर्म नहीं कर रहा है या करना नहीं चाहता है तो उस घर की महिला को अधिकार है कि वह अपने पितरों का तर्पण कर उन्हें मोक्ष गति प्रदान करने में सहयोग करे। इन्हीं भावनाओं के साथ नर्मदा तटों पर महिलाएं तर्पण आदि करने पहुंच रही हैं।