अधूरी रह गई शिक्षा
कटनी जिले के अंतर्गत पान उमरिया के समीप देवरी गांव में जन्मे पं. सुरेश प्रसाद द्विवेदी ने बताया कि जब वे 10 साल वर्ष के थे, तभी पिता का साया सिर से उठ गया। उनके पिता स्व. जागेश्वर प्रसाद द्विवेदी मझगवां के समीप राजा भंडरा के यहां राज पुरोहित थे। मां, दो छोटे-छोटे भाइयों और बहन के साथ उन्होंने गरीबी व अभावों में दिन गुजारे। हालातों के कारण वे महज आठवीं कक्षा तक ही पढ़ पाए। 1961 में मझगवां के समीप बुढऱी गांव में उनका कृष्ण ? कुमारी के साथ विवाह हुआ। ससुर भगवान दास तिवारी के कोई पुत्र नहीं था, इसलिए पं. द्विवेदी उनके साथ ही बुढऱी गांव में ही रहने लगे। खेती व पुरोहिताई से जैसे-तैसे अपना व बच्चों का भरण पोषण किया।
ऐसे मिली प्रेरणा
पं. द्विवेदी के अनुसार सन् 1978-79 में वे अपने साढू़ भाई कुंअरलाल पांडेय के घर विजयराघवगढ़ गए हुए थे। श्री पांडेय उन्हें विजयराघवगढ़ थाना परिसर पर बने एक छोटे से प्राचीन शिव मंदिर ले गए। पं. द्विवेदी की मानें तो यहीं दर्शन के बाद उन्हें अजीब सी अनुभूति हुई। ऐसा प्रतीत हुआ कि उनसे कोई राधा और कृष्ण पर लेखन के लिए कह रहा है। पं. द्विवेदी थोड़ा संकुचाए। उनके अनुसार उन्होंने कविता या पद्य के नाम पर कभी दो लाइनें भी नहीं लिखी थीं। मन में बार-बार प्रेरणा होने पर उन्होंने जेब से कागज निकाला और अचानक दो लाइनें लिखीं, जो राधा-कृष्ण चरित मानस की पहली चौपाई के रूप में सामने आ गईं। इसके बाद घर आते ही वे लेखन में डूब गए और राधा-कृष्ण चरित मानस के नाम से पूरा ग्रंथ ही लिख डाला। पं. द्विवेदी ने कहा कि गं्रथ को प्रकाशित करने का सामथ्र्य उनके पास नहीं था। विरक्त संत और तपस्वी शैलवारा वाले महाराजजी की कृपा से ही यह ग्रंथ प्रकाशित हो पाया। अब तक इसकी करीब १ लाख प्रतियां प्रकाशित हो चुकी हैं। पं. द्विवेदी इसका नि:शुल्क वितरण करते हैं।
राधा-कृष्ण चरित ही क्यों
एक सवाल पर पं. द्विवेदी ने कहा कि पूरी भागवत कथा में देवी राधा का जिक्र नहीं मिलता, जबकि मां राधा भगवान श्रीकृष्ण की शक्ति हैं। भगवान की शक्ति के रूप में ही उन्होंने राधा के रूप में अवतार लिया था। पं. द्विवेदी ने कहा कि सीता-राम जी की तरह लोग राधे और श्याम के चरित्र को भी एक साथ पढ़ सकें। काव्य के रूप में उसका आनंद ले सकें। इसलिए उन्होंने राधा-कृष्ण चरित मानस की रचना की है।
लिखा खंड काव्य
पं. द्विवेदी ने कैकेयी और मंथरा की कूटनीति पर आधारित एक खंड काव्य सफल कूट भी लिखा है। पं. द्विवेदी एक अच्छे ज्योतिषाचार्य और भागवत कथा वक्ता भी हैं। उन्होंने लोकशैली के कई गीत भी लिखे हैं। वे मंच पर इन्हें गाते हैं। कई लोक कलाकार भी उनके लिखे गीतों का शौक से गायन करते हैं। एक सवाल पर पं. द्विवेदी ने कहा कि लेखन के लिए किसी विशेष शिक्षा या डिग्री की जरूरत नहीं है। आपके मन के अच्छे भाव और उन्हें संजोने की ललक होनी चाहिए, कविताएं स्वत: ही जन्म ले लेती हैं।