हाल यह है इस गांव का कि यहां वाशिंदे मानसून आने से पहले ही राशन-पानी का भरपूर भंडारण कर अपने-अपने घरों में कैद हो जाते हैं। कारण इस गांव का संपर्क आसपास के इलाकों से पूरी तरह से टूट जाता है। न कोई इस गांव में आ सकता है न यहां से कहीं और जा सकता है। गांव में चलने के लिए जो रास्ता है वो आज भी कच्चा है। एक पक्की सड़क तक नहीं बन सकी है। ऐसे में बारिश शुरू होने के साथ ही रास्ते में दलदल हो जाता है। फिसलन के चलते लोग गिरते रहते हैं। पुरुष हो या महिला बरसात के चार महीने गुजारना उनके लिए भारी मुसीबत भरा होता है।
ये है ग्राम पंचायत उमरिया के अंतर्गत आने वाला कटीला गांव। यहां चार दशक से सड़क के लिए एक रोड़ा नहीं गिरा, तारकोल की सड़क की बात ही दूर की है। पत्थर भी नहीं बिछाए गए, खड़ंजा तक नहीं बिछा। इस गांव की कुल आबादी गांव महज 250 है। इन ग्रामीणों का कहना है कि सरपंच से लेकर जितने भी जनप्रतिनिधि हो सकते हैं, ग्राम सचिव से लेकर जितने भी उच्चाधिकारी हो सकते हैं सभी के आगे गुहार लगाई, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।
ग्रामीणों की मानें तो ऐसा नहीं कि समस्या केवल बरसात के दिनों की है। बरसात में तो आवागमन लगभग ठप सा हो जाता है। वहीं गर्मी की बात करें तो पीने के पानी के लिए जद्दोजहद करनी पड़ती है। सोचा जा सकता है कि जहां पीने के लिए पर्याप्त पानी मयस्सर नहीं वहां के किसान खेती कैसे करते होंगे। सिंचाई कैसे होती होगी।
वो कहते हैं कि विधायक हों या सरपंच सिर्फ चुनाव के दौरान ही दिखते हैं, उस वक्त बड़े-बड़े वायदे करते हैं, आश्वासनों की घुट्टी पिलाई जाती है। सुनहरे सपने दिखाए जाते हैं। लेकिन जैसे ही चुनाव खत्म हुआ न जीतने वाले को चिंता होती है न हारने वाले को। कोई मुंह फेर कर कभी हाल जानने भी नहीं आता है।
ग्रामीण कहते हैं बात तो शिक्षा की भी होती है लेकिन बरसात के दिनों में बच्चे स्कूल जाएं तो कैसे जाएं। हम बड़े लोग तो इस दलदल में संभल कर न चलें तो रपटने का हर समय खतरा होता है, बच्चों को अकेले कहीं भेजने में डर लगता है। लिहाजा बच्चे चार महीने तक पढ़ाई से वंचित रहते हैं।
कोट “उमरिया ग्राम पंचायत के गांव कटीला ग्रामीणों ने मूलभूत समस्याओं को लेकर जनपद में शिकायत की है। इस संबंध में जानकारी मांगी जा रही है। अब तक गांव में सड़क क्यों नहीं बनी इसका पता किया जाएगा।” – मनोज सिंह, अतिरिक्त सीईओ जिला पंचायत