सलाखों के पीछे सास, बहू कर रही तकवारी
केन्द्रीय कारागार : वर्षों से जमे कर्मचारी कर रहे दुस्साहस, मादक पदार्थ ले जाते पकड़े गए प्रहरी
वर्षों से जमे कर्मचारी कर रहे दुस्साहस, मादक पदार्थ ले जाते पकड़े गए प्रहरी
जबलपुर । नेताजी सुभाषचंद्र बोस केन्द्रीय कारागार में वर्षों से जमे कर्मचारियों का दुस्साहस देखने को मिल रहा है। मुलाकात से लेकर गोल तक बंदियों की ख्वाइशें पूरी कर बेखौफ कमाई की जा रही है। इस बात का खुलासा हम नहीं बल्कि जेल प्रशासन की ओर से पकड़े गए प्रहरी कर रहे हैं, जो अपने साथ मादक पदार्थ आदि चोरी-छिपे जेल के अंदर ले जा रहे थे। दबंगई की हद तो यहीं खत्म नहीं होती है, जहां जेल में आजीवन कारावास की सजा काट रही सास की तकवारी जेल में पदस्थ बहू कर रही है, लेकिन प्रशासन को इससे कोई लेना-देना नहीं है। सेन्ट्रल जेल की हकीकत बयां करती एक्सपोज की रिपोर्ट…।
केन्द्रीय कारागार में करीब छह माह पहले आजीवन कारावास की सजा में कटनी निवासी सुदामा पति रामू पहुंची है। इस कैदी को जेल के महिला प्रकोष्ट में रखा गया है। इस महिला की बहू अनीता सिंह प्रहरी के पद पर कार्यरत है। जेल प्रशासन प्रहरी की ड्यूटी महिला प्रकोष्ट सहित अन्य जगहों पर लगाकर रखी हुई है। जानकारों का कहना है कि प्रहरी अपने साथियों के साथ सास की अघोषित रूप से मदद कर रही है।
मुलाकात में ड्यूटी
जेल प्रबंधन ने अनीता सिंह की ड्यूटी मुलाकात कक्ष में लगाकर रखी है। इसके पहले यह प्रहरी जेलर की सहायक बनकर गोल में देखरेख कर रही थी। इसके बाद पुन: इसे मुलाकात कक्ष में लगाया है। सूत्रों का कहना है कि हाल ही सुदामा का स्वास्थ्य नरम-गरम रहने की वजह से प्रहरी की ड्यूटी महिला प्रकोष्ट में लगा दी गई थी।
एक ही जगह जमे प्रमुख कर्मचारी
ओमप्रकाश चौधरी- 04 वर्ष
लौंगबाई मरावी- 22 वर्ष
गौरबाई- 24 वर्ष
निर्मला रामटेके- 19 वर्ष
कल्पना नायक- 17 वर्ष
अलेक्जेंडर- 15 वर्ष
ओमप्रकाश दुबे- 15 वर्ष
नरेन्द्र कटारे- 10 वर्ष
संदीप खरे- 10 वर्ष
ऑफ दी रिकार्ड
जेल प्रशासन के कुछ अफसरों की सांठगांठ से जेल के अंदर सभी प्रकार का सामान पहुंच रहा है। इसमें प्रहरी सहित नंबरदार शामिल हैं। जेल के अंदर सामान भेजने की शुरूआत मुलाकात से होती है। यहां प्रहरी के जरिए सौदा सेट किया जा रहा है। इसमें जेल के अंदर भेजे जाने वाला सामान के साथ उपरी कमाई की जाती है। इसमें जेल के भीतर पैसा भी भेजा जाता है। सूत्रों का कहना है कि इसमें साठ-चालीस का हिस्सा होता है। याने कि कुल पैसे का साठ प्रतिशत भाग ही बंदी तक पहुंच पाता है। शेष हिस्सा हो जाता है।
इसलिए पड़ती पैसों की जरूरत: जेल के अंदर बेहतर भोजन, नाश्ते और चाय के लिए अघोषित रूप से पैसा देना पड़ता है। यह पैसा नंबरदारों के जरिए प्रबंधन तक पहुंच जाता है। बैरेक में मनमानी जगह के लिए भी चढ़ोत्री देनी पड़ती है।
ये हो चुके है मामले
जेल के अंदर मादक पदार्थ ले जाने के आरोप में प्रहरी गया प्रसाद यादव को पकड़ा जा चुका है।
जेल परिसर से ड्यूटी पर जाने के दौरान प्रहरी प्राण सिंह को मादक पदार्थ ले जाने के आरोप में पकड़ा है।
पांच दिन पहले जेल अस्पताल परिसर में पैसा पकड़ा गया है, लेकिन यह मामला जेल की चाहरदीवार में सिमट गया।
(नोट- इनमें से दो मामले अदालत में विचाराधीन हैं।)
जेल नियमावली में एक ही परिसर में बंदी और जेल कर्मचारी के रिश्तेदार रहने के बारे में स्पष्ट उल्लेख नहीं है। मैनुअल देखा जाएगा। वर्षों से जमे कर्मचारियों की सूची तैयार है। चुनाव के बाद ही कुछ कहा जा सकता है।
गोपाल ताम्रकार, जेल अधीक्षक, केन्द्रीय कारागार
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