कौमी एकता की मिसाल-
कव्वाली के कद्रदान रद्दी चौकी पसियाना निवासी बुजुर्ग नईम शाह बताते हैं कि संस्कारधानी में कव्वाली का शौक बहुत पुराना है। यहां कव्वाली को इबादत का दर्जा दिया जाता है। आजादी के बाद से यहां लगातार ख्यातिप्राप्त कव्वालों के कार्यक्रम होते रहे हैं। शाह ने बताया कि मशहूर कव्वाल शंकर-शम्भू,इस्माइल आजाद, यूसुफ आजाद, अजीज नाजां, अब्बुररब चाउस, साबरी बंधु, इकबाल अफजाल व राजाराम जैसे कव्वाल यहां अपने हुनर का जौहर दिखा चुके हैं। शाह कहते हैं कि संस्कारधानी में कव्वाली ने हमेशा कौमी एकता को बढ़ावा दिया। कव्वाली के कार्यक्रमों में सभी धर्मों के लोग सुनने जाते हैं। आयोजनकर्ताओं में भी बहुत से हिन्दू भाई शामिल रहते हैं। कव्वालों से यहां के शौकीन ऐसी कव्वालियां सुनाने की फरमाइश अधिक करते हैं, जो कौमी एकता से जुड़ी हैं।
श्रोताओं ने सिर पर रखी उल्टी कुर्सियां-
नईम शाह बताते हैं कि 2012-13 में कचहरी वाले बाबा के उर्स में मशहूर कव्वाल इकबाल अफजाल की कव्वाली का कार्यक्रम हुआ था। उसी दौरान तेज बारिश होने लगी। श्रोताओं को अफजाल की कव्वाली इतनी पसन्द आ रहीं थीं, कि उन्हें कार्यक्रम बन्द करने से श्रोताओं ने रोक दिया। आननफानन में कव्वाल के सिर पर तिरपाल तान दिया गया। श्रोताओं ने कुर्सियां उल्टी कर अपने ऊपर लगा लीं। और फिर जो कव्वाली की महफ़िल जमी तो अलसुबह तक श्रोता टस से मस नही हुए। इसी तरह राइट टाउन स्टेडियम अजीज नाजां की कव्वाली के दौरान श्रोताओं की फरमाइश पर सुबह तक कार्यक्रम चला था।
संस्कारधानी में हर धर्म के कव्वाल-
संस्कारधानी के कव्वालों ने भी इस विधा में अपना परचम देश भर में लहराया। नईम शाह बताते हैं कि जबलपुर के शायर नश्तर जबलपुरी की लिखी पगली कव्वाली को देश के कई मशहूर कव्वालों ने अपनी आवाज दी। इस कव्वाली ने लोकप्रियता के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिये थे। शाह बताते हैं कि जबलपुर के कई कव्वालों ने बीते दशकों में अपने फन से नाम रोशन किया। इनमें सभी धर्मों के कव्वाल शामिल हैं। शमशुद्दीन हक्कल, लुकमान, अन्थोनी, नवाब वहाब, मंजूर अहमद, हमीद चिश्ती, हलीम ताज, जीवन एंथोनी, बारेलाल व दास कव्वाल ने कव्वाली की विधा में देश भर में नाम कमाया।
भवानी प्रसाद तिवारी लिखते थे कव्वाली-
किसी समय शहर में कव्वाली साम्प्रदायिक एकता का जरिया हुआ करती थी। यहां के कव्वालों के लिए स्थानीय कवि नज्में लिखते थे। नईम शाह बताते हैं कि पं भवानी प्रसाद तिवारी ने कव्वाल लुकमान के लिए ‘ माटी की गगरिया’ कव्वाली लिखी थी, जो खूब लोकप्रिय हुई। तिवारी ने अन्य कव्वालों के लिए भी रचनाएं कीं। अन्य स्थानीय कवियो ने भी कव्वालों के लिए लिखा।
इन जगहों पर होती हैं कव्वाली-
नईम शाह ने बताया कि संस्कारधानी की दरगाहों, खानकाहों में सूफियाना इबादत कव्वाली के जलसे होते रहते हैं। कचहरी वाले बाबा,दरबारे बुनियादी सूजी मोहल्ला, गाजी मियां गोहलपुर, चांद शाह वली कोतवाली, सैयद हसन घोड़ा अस्पताल, आगा शाह आगा चौक, सुब्बाशाह आनन्दनगर, कासिम बाबा अंसारनगर, मदनमहल दरगाह सहित अन्य दरगाहों व खानकाहों के उर्स में हर साल प्रसिद्ध कव्वालों की कव्वालियां होती हैं।
स्टेशन लेने व छोड़ने जाते हैं शौकीन-
जबलपुर में कव्वाली के शौकीनों की भी लंबी फेहरिस्त है। यहां कव्वाली के शौकीन जिले भर में होने वाले कव्वाली के कार्यक्रमों पर नजर रखते हैं। नईम शाह लगभग 30-35 वर्षों से शहर में आने वाले हर कव्वाल की अगवानी करते हैं। लौटते वक्त उन्हें स्टेशन छोड़ने भी जाते हैं। नईम शाह को उनके इस शौक की वजह से कई कमेटियां सम्मानित कर चुकी हैं। उन्होंने कव्वाली के सितारे नाम से एक किताब भी लिखी है। कव्वाली के शौकीनों को तमाम कव्वालों की मशहूर कव्वालियां जबानी रटी हुई हैं। शौकीनों में गौस मोहम्मद खलीफा, जिद्दी बाबा, पप्पू वसीम ऐसे नाम हैं, जो कव्वाली का कोई कार्यक्रम नहीं छोड़ते।
कद्रदान हुए कम-
युवा पीढ़ी कव्वाली को कम पसन्द कर रही है। पाश्चात्य संगीत ने रुचि घटाई है। फिर भी कई युवा इस फन को अपना रहे हैं।
-नईम शाह