सवर्ण गरीबों को निजी मेडिकल व डेंटल कॉलेजों में क्यों नहीं मिल रहा दस फीसदी आरक्षण?
मप्र हाईकोर्ट ने प्रदेश के निजी मेडिकल व डेंटल कॉलेजों में गरीब सवर्णों (ईडब्ल्यूएस) को निर्धारित दस फीसदी आरक्षण न मिलने के मसले को गम्भीरता से लिया। एक्टिंग चीफ जस्टिस आरएस झा व जस्टिस विजय कुमार शुक्ला की डिवीजन बेंच ने केंद्र व राज्य सरकार, एमसीआई, डीएमई सहित प्रदेश के 20 निजी मेडिकल व डेंटल कॉलेजों को नोटिस जारी कर पूछा कि इस प्रावधान का पालन क्यों नहीं हो रहा? चार सप्ताह में जवाब मांगा गया।
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यह है मामला
जनहित याचिका में कहा गया कि राज्य सरकार ने प्रदेश के समस्त सरकारी व निजी मेडिकल-डेंटल कॉलेजों में प्रवेश के लिए मप्र चिकित्सा शिक्षा प्रवेश नियमों में शामिल किया। इसे नौ मार्च 2019 को राजपत्र में अधिसूचित भी किया गया। केंद्र सरकार ने 12 जनवरी 2019 को अधिसूचित कर संविधान में 103वां संशोधन किया। इसके जरिए एससी, एसटी व ओबीसी को छोडकऱ अन्य आर्थिक रूप से कमजोर तबके के छात्रों के लिए मेडिकल व डेंटल कॉलेजों में दस फीसदी आरक्षण का प्रावधान किया गया। इसी के अनुसार प्रदेश सरकार ने भी चिकित्सा शिक्षा प्रवेश नियम 2018 में 19 जून 2019 को संशोधन कर ईडब्ल्यूएस के छात्रों के लिए प्रदेश के सरकारी व निजी मेडिकल-डेंटल कॉलेजों में दस फीसदी सीटें आरक्षित कर दीं।
सरकारी मेडिकल कॉलेजों ने दिया आरक्षण
अधिवक्ता ब्रह्मानंद पांडे ने तर्क दिया कि प्रदेश के सरकारी मेडिकल कॉलेजों ने तो एमबीबीएस में प्रवेश के लिए 21 जून से हुई प्रथम राउंड व 26 जुलाई से प्रारम्भ द्वितीय राउंड की काउंसिलिंग में ईडब्ल्यूएस को 10 फीसदी आरक्षण का प्रावधान किया। लेकिन, प्रदेश के निजी मेडिकल व डेंटल कॉलेजों ने मिलीभगत के जरिए प्रथम व द्वितीय राउंड की काउंसिलिंग में ईडब्ल्यूएस का दस फीसदी कोटा नहीं रखा। उन्होंने इसे साजिश बताते हुए आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग के छात्रों के हितों पर कुठाराघात बताते हुए प्रवेश प्रक्रिया निरस्त कर दोबारा कराने का आग्रह किया। जांच करवाकर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की भी याचिका में मांग की गई। प्रारम्भिक सुनवाई के बाद कोर्ट ने अनावेदकों को नोटिस जारी किए।