इस बीच मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की मौजूदगी में हुई पिछड़ा वर्ग मोर्चा की बैठक में विशेष चर्चा की गई। मिली जानकारी के मुताबिक सरकारी भर्तियों में पिछड़ा वर्ग आरक्षण के मुद्दे पर विधि विशेषज्ञों की राय लेते हुए प्रदेश सरकार हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जा सकती है।
ये भी पढें- EWS Reservation पर हाईकोर्ट का बड़ा फैसला उधर ओबीसी आरक्षण मसले पर सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि प्रदेश में कोराना की तीसरी लहर को देखते हुए डॉक्टर्स की नियुक्ति करना जरूरी है। इस पर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिया है कि वो मेरिट लिस्ट तो 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण के हिसाब से बना सकती है लेकिन डॉक्टर्स की नियुक्ति में 14 फीसदी ओबीसी आरक्षण ही दिया जा सकेगा। हाईकोर्ट ने इस मामले में याचिकाकर्ताओं सहित राज्य सरकार से लिखित में अपनी बहस के बिंदु पेश करने के आदेश दिए हैं। साथ ही मामले की अगली सुनवाई के लिए 10 अगस्त की तारीख तय कर दी है।
सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि प्रदेश में ओबीसी वर्ग की आर्थिक-सामाजिक स्थिति और उनकी बड़ी आबादी को देखते हुए ओबीसी आरक्षण बढ़ाना ज़रूरी है। इस पर याचिकाकर्ताओं की ओर से कहा गया कि मध्यप्रदेश सरकार ओबीसी वर्ग को आबादी के हिसाब से आरक्षण तो देना चाहती है लेकिन हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र में आबादी के हिसाब से दिए गए मराठा आरक्षण को अवैध करार दे दिया है। याचिकाकर्ताओं की ओर से ये भी कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट के इंदिरा साहनी जजमेंट के मुताबिक किसी भी स्थिति में आरक्षण 50 फीसदी से ज्यादा नहीं हो सकता। वहीं राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि खुद सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि विशेष परिस्थितियों में आरक्षण 50 फीसदी की सीमा से ज्यादा बढ़ाया जा सकता है और ओबीसी वर्ग की बड़ी आबादी को प्रदेश में विशेष परिस्थितियां ही माना जाना चाहिए। हालांकि दोनों पक्षो की बहस को सुनने के बाद हाईकोर्ट ने अगली सुनवाई 10 अगस्त को तय करते हुए ओबीसी वर्ग को 27 की बजाय 14 फीसदी ही आरक्षण देने का आदेश जारी रखा है।
कमलनाथ सरकार ने बढ़ाया था ओबीसी आरक्षण कोटा बता दें कि ओबीसी आरक्षण कोटा बढ़ाने का फैसला कमलनाथ सरकार ने लिया था। कांग्रेस की 15 महीने की सरकार ने ओबीसी वर्ग का आरक्षण 14 से बढ़ाकर 27 फीसदी कर दिया था जिसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी। बढ़े हुए आरक्षण के खिलाफ दायर की गई याचिकाओं में कहा गया है कि राज्य सरकार ने ओबीसी आरक्षण 14 फीसदी से बढ़ाकर 27 फीसदी करके आरक्षण प्रावधानों का उल्लंघन किया है। याचिकाओं में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा साहनी मामले मे दिए गए फैसले में साफ किया था कि ओबीसी, एसटी और एससी वर्ग को 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण नहीं दिया जा सकता। लेकिन प्रदेश सरकार द्वारा ओबीसी आरक्षण बढ़ाए जाने से आरक्षण का दायरा 63 प्रतिशत पहुंच गया है।