जबलपुर। मप्र हाईकोर्ट ने बालाघाट जिले के बैगा आदिवासियों के लिए बनाए गए सरकारी आवासों के निर्माण में घपले के मामले पर कड़ा रूख अपनाया है। कोर्ट ने आदिम जाति विकास विभाग प्रमुख सचिव को जवाब न देने पर आड़े हाथों लिया है। जस्टिस राजेंद्र मेनन व जस्टिस एके श्रीवास्तव की युगलपीठ ने कहा है कि कोर्ट के पूर्व आदेश के मुताबिक आगामी सुनवाई तक प्रमुख सचिव अपना जवाब पेश नहीं करते हैं तो उन्हेंं स्वयं हाजिर होकर स्पष्टीकरण पेश करना होगा।
यह है मामला
लांजी के पूर्व विधायक किशोर समरीते ने जनहित याचिका दायर कर यह मसला उठाया है। कहा गया है कि 2007-08 में राज्य के छह बैगा आदिवासी बहुल जिलों बालाघाट, डिंडोरी, शहडोल, मंडला, अनूपपुर व उमरिया के बैगा समुदाय के लोगों ंके लिए आवास बना कर देने की योजना सरकार ने लाई। इसके तहत इन जिलों में बैगाओं के आवास नहीं बनाए गए। जहां बनाए भी गए तो वे गुणवत्ताविहीन थे। परियोजना अधिकारियों ने अन्य अफसरों के साथ मिल कर इसके लिए आवंटित करोड़ों रुपए डकार लिए। याचिका में दोषियों पर कार्रवाई करने की मांग की गई थी।
हाईकोर्ट करा रहा जांच
मामले की जांच के लिए हाईकोर्ट ने ईओडब्ल्यू को जिम्मा सौंपा है। याची की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता शोभा मेनन व अधिवक्ता राहुल चौबे ने कोर्ट को बताया कि केवल बालाघाट जिले की जांच की की जा रही है। गत सुनवाई के दौरान कोर्ट ने आदिम जाति कल्याण विभाग प्रमुख सचिव से पूछा था कि बैगा आदिवासियों के साथ एेसी घटनाएं दोबारा न हों, इसके लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं। इसके अलावा बैगाओं के रोजगार, सिंचाई, स्वास्थ्य सेवाओं आदि के लिए क्या व्यवस्था की गई है। बुधवार को प्रमुख सचिव का जवाब न आने पर कोर्ट ने जमकर नाराजगी जताई। उन्हें अगली सुनवाई तक हर हाल में अपना जवाब पेश करने के निर्देश के साथ मामले की सुनवाई 5 मई नियत की गई।