scriptदबे पांव आता है, धीरे-धीरे करता है आंखों पर अटैक | Three to five patients coming to the medical college in Jabalpur | Patrika News
जबलपुर

दबे पांव आता है, धीरे-धीरे करता है आंखों पर अटैक

जबलपुर के मेडिकल कॉलेज में तीन से पांच मरीज प्रतिदिन जांच में आ रहे सामने
 

जबलपुरMar 08, 2020 / 06:41 pm

shyam bihari

glaucoma

glaucoma

जबलपुर। आंखों की बीमारी ग्लूकोमा दबे पांव हो सकती है। यह धीरे-धीरे आंखों पर अटैक करती है। इसे कालामोतिया भी कहा जाता है। चालीस वर्ष की आयु के बाद कालामोतिया का खतरा बढ़ जाता है। जबलपुर के नेताजी सुभाषचंद्र बोस मेडिकल कॉलेज में ही प्रतिदिन जांच में तीन से पांच मरीज कालामोतिया के पीडि़त मिल रहे हैं।
एेसा महसूस करें तो खतरा
– चारों दिशाओं में देखने की शक्ति क्षीण होने लगती है।
– आंख में आंतरिक (इंट्राकुलर) दबाव का बढऩा। लगातार आंसू निकलना।
– पूरे दिन काम करने के बाद शाम को आंखों एवं सिर में दर्द।
– बल्ब के चारों ओर इंद्रधनुषी रंग दिखना।
– कु छ देर आंखों की रोशनी कम होना। अंधेरा छाना।
– आंख लाल होना। चश्मे के नंबर में बार-बार बदलाव।
– अंधेरे कमरे में आने पर चीजों पर फोकस करने में परेशानी।
– सिर झुका कर काम करते वक्त आंख में दर्द होता है।
– कभी कभी मरीज को ग्लूकोमा का अटैक आने पर उल्टियां और जी मचलाता है।
– बच्चे की आंख या कॉर्निया का सामान्य से बड़े आकार का होना।
फिल्टर से तरल पदार्थ बाहर आना बंद हो जाता है
नेत्र रोग विशेषज्ञों के अनुसार आंख के अंदर अंगों के पोषण के लिए एक तरल पदार्थ उत्पन्न होता है। पोषण के बाद यह तरल पदार्थ आंख के महीन छिद्र (फि ल्टर) से बाहर निकलते हैं। उम्र के साथ छिद्र तंग होने शुरू हो जाते हैं। इससे तरल पदार्थ के निकलने की प्रक्रिया थोड़ी बाधित होती है। इससे आंख का प्रेशर बढऩे लगता है। आंख का बढ़ा प्रेशर ऑप्टिक नर्व (आंखों से दिमाग को सिग्नल भेजने वाली नर्व) को डैमेज करता है। ऐसा आंखों पर ज्यादा जोर पडऩे से होता है। ऑप्टिक नर्व काफी सेंसिटिव होती हैं। ज्यादा प्रेशर से ब्लॉक हो जाती है और दिखना बंद हो जाता है।
डब्ल्यूएचओ के अनुसार
– २.३ प्रतिशत तक किसी व्यक्ति को जीवनपर्यंत ग्लूकोमा का जोखिम होता है।
– १० गुना जोखिम बढ़ जाता है फस्र्ट डिग्री रिलेटिव से पीडि़त ग्लूकोमा रोगी में।
– १२ मिलियन लोगों के देश में कालामोतिया से प्रभावित होने का अनुमान है।
– 1.2 मिलियन लोग इस बीमारी के कारण अंधत्व के शिकार हो जाते है।

जबलपुर मेडिकल कॉलेज में
– १३०-१५० रोगियों की औसतन प्रतिदिन नेत्र विभाग की ओपीडी में जांच।
– ३-५ मरीज इसमें प्रतिदिन जांच में कालामोतिया से पीडि़त मिल रहे हैं।
– 2-३ मरीज, जो इस बीमारी के पीडि़त की प्रति सप्ताह सर्जरी की जा रही है।
– ९० प्रतिशत से अधिक मामलों (एफडीआर) में ग्लूकोमा का पता नहीं चलता है।

बीमारी की आशंका
६० वर्ष से अधिक आयु। संक्रमण का पारिवारिक इतिहास। कुछ निश्चित नेत्र शल्य चिकित्सा। लम्बे समय के लिए कॉर्टिकॉस्टिरॉइड दवाएं जैसे कि विशेष रूप से आई ड्राप का उपयोग करना। मधुमेह, हृदय रोग, उच्च रक्तचाप और सिकल सेल एनीमिया जैसी कुछ चिकित्सीय स्थितियां। खेलने के दौरान (टेनिस, क्रिकेट बॉल या अन्य सामग्री से) अगर आंखों में चोट लग जाए तो। आंखों की एलर्जी, अस्थमा, चर्म रोग या किसी अन्य रोग के लिए स्टेरॉइड दवाओं के प्रयोग से। एनएससीबीएमसी के नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. परवेज अहमद सिद्दीकी ग्लूकोमा के लक्षणों को लेकर आम लोग जागरूक नहीं हंै। उपचार में देर होने पर धीरे-धीरे नजर कमजोर हो जाती है। दिखना बंद हो जाता है। चालीस वर्ष की आयु के बाद बीमारी की आशंका बढ़ जाती है। आंख की नियमित जांच कराते रहना चाहिए। कम से दो वर्ष में एक बार जांच जरूर कराएं।

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