जबलपुर मेडिकल कॉलेज में
– १३०-१५० रोगियों की औसतन प्रतिदिन नेत्र विभाग की ओपीडी में जांच।
– ३-५ मरीज इसमें प्रतिदिन जांच में कालामोतिया से पीडि़त मिल रहे हैं।
– 2-३ मरीज, जो इस बीमारी के पीडि़त की प्रति सप्ताह सर्जरी की जा रही है।
– ९० प्रतिशत से अधिक मामलों (एफडीआर) में ग्लूकोमा का पता नहीं चलता है।
बीमारी की आशंका
६० वर्ष से अधिक आयु। संक्रमण का पारिवारिक इतिहास। कुछ निश्चित नेत्र शल्य चिकित्सा। लम्बे समय के लिए कॉर्टिकॉस्टिरॉइड दवाएं जैसे कि विशेष रूप से आई ड्राप का उपयोग करना। मधुमेह, हृदय रोग, उच्च रक्तचाप और सिकल सेल एनीमिया जैसी कुछ चिकित्सीय स्थितियां। खेलने के दौरान (टेनिस, क्रिकेट बॉल या अन्य सामग्री से) अगर आंखों में चोट लग जाए तो। आंखों की एलर्जी, अस्थमा, चर्म रोग या किसी अन्य रोग के लिए स्टेरॉइड दवाओं के प्रयोग से। एनएससीबीएमसी के नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. परवेज अहमद सिद्दीकी ग्लूकोमा के लक्षणों को लेकर आम लोग जागरूक नहीं हंै। उपचार में देर होने पर धीरे-धीरे नजर कमजोर हो जाती है। दिखना बंद हो जाता है। चालीस वर्ष की आयु के बाद बीमारी की आशंका बढ़ जाती है। आंख की नियमित जांच कराते रहना चाहिए। कम से दो वर्ष में एक बार जांच जरूर कराएं।