scriptचायना नही, मोहनजोदड़ो की खुदाई में भी मिले थे यही पारंपरिक दीपक | Traditional oil Deepak for this Diwali | Patrika News
जबलपुर

चायना नही, मोहनजोदड़ो की खुदाई में भी मिले थे यही पारंपरिक दीपक

शहर में पारंपरिक देशी दीपक सजे हुए और बनते देखने मिल रहे हैं। इस बार चाइनीज दीपकों की बजाए पारंपरिक दीपक जलाने पर प्राथमिकता दी जा रही है

जबलपुरOct 23, 2016 / 04:48 pm

Abha Sen

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जबलपुर। मिट्टी, जाने कितने परिवारों को पोषण करती है। दीवाली पर यही मिट्टी किसी के घर में रोशनी करती है तो किसी के परिवार को सालभर का राशन जुटाने में मदद। जी हां, हम बात कर रहे हैं मिट्टी के ऐसे दीपकों की जिन्हें देशी कलाकार बड़ी ही मेहनत के बाद अपना पसीना बहाकर बनाते हैं। चाइनीज दीपकों के मुकाबले मिट्टी के दीपक कम कीमतों पर उपलब्ध हैं। 



शहर में पारंपरिक देशी दीपक सजे हुए और बनते देखने मिल रहे हैं। इस बार चाइनीज दीपकों की बजाए पारंपरिक दीपक जलाने पर प्राथमिकता दी जा रही है। इसके लिए लोग संकल्प भी ले रहे हैं। अनेक संगठन दीवाली से पूर्व मिट्टी के दीपक बांटने का भी समर्थन कर रहे हैं। मिट्टी के पारंपरिक दीपक खरीदने से जहां गरीब परिवारों की आय बढ़ेगी वहीं देश की अर्थव्यवस्था के लिए ये फायदेमंद साबित होगा।


पारंपरिक दीया मिट्टी का होता है प्राचीनकाल में इसका प्रयोग प्रकाश के लिए किया जाता था। भारत में दिये का इतिहास प्रामाणिक रूप से 5000 वर्ष से भी ज्यादा पुराना है जब इसे मोहनजोदड़ो में ईंटों के घरों में जलाया जाता था। खुदाईयों में वहां मिट्टी के पके दीपक मिले है। कमरों में दियों के लिये आले या ताक़ बनाए गए। लटकाए जाने वाले दीप मिले। और आवागमन की सुविधा के लिए सड़क के दोनों ओर के घरों तथा भवनों के बड़े द्वार पर दीप योजना भी मिली है। 

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