सुबह से शुरु हुआ क्रम
द्वादशी तिथि पर पौ फटते ही मारेगांव में लोगों का आना शुरू हो गया था। हर किसी के साथ कोई ने कोई ऐसा व्यक्ति या महिला थी, जो मानसिक रूप से पीडि़त और अस्वस्थ नजर आ रही थी। सभी का एक ही लक्ष्य था तपोस्पथली पर हाजिरी लगाना। माना जाता है कि यहां हाजिरी लगाने और पुजारी द्वारा किए गए उपायों से प्रेत बाधाओं का शमन हो जाता है। शनिवार को इसका प्रत्यक्ष नजारा भी देखने को मिला। बीमारी या प्रेत बाधा के कारण अजीब हरकतें करते हुए पहुंचे कई लोगों के चेहरे पर राहत की झलक भी दिखााई दी। शायद यही विश्वास लोगों को आज भी यहां तक खींच लाता है।
रहस्यमय है खंभा
तपोस्थल पर एक स्तंभनुमा खंभा लगा हुआ है। स्थानीय लोगों का मानना है कि यह खंभा रहस्यमय है। इसमें अदृश्य शक्तियों का वास है। बीमारी या अन्य बाधाओं से त्रस्त होकर जो भी व्यक्ति यहां आता है, उसे इस खंभे के समीप ले जाया जाता है। एक तरह से स्पर्श कराते हुए उसे खंभे से चिपका दिया जाता है। खंभे का स्पर्श होते ही बीमार या प्रेत बाधा से पीडि़त व्यक्ति को शांति मिलती है। थोड़ी देर के लिए तो वह शिथिल पड़ जाता है। भूत-प्रेत की बाधा से राहत के कारण ही इसका नाम भूतों का मेला प्रचलित हो गया। मेले में पुजारी झाड़-फूंक के साथ लोगों को औषधियां भी प्रदान करते हैं।
कमाल का है धागा
स्नानीय रामनाथ दुबे के अनुसार यहां पर रक्षा सूत्र का विशेष महत्व है। यह गुरू का प्रसाद माना जाता है। पुजारी ने बताया कि यहां पर जो भी भक्त धागा बांधता है, उसके पास फिर कभी प्रेत बाधाएं नहीं आतीं। यही विश्वास आज भी लोगों को हजारों किलोमीटर दूर से यहां पर खींच लाता है। मेले के दौरान यहां हर वर्ष पूरी रात भजन कीर्तन चलते हैं। वहीं इस मेले को देखने के लिए भी दूर दूर से लोग आते हैं। मेले में
समर्थ की तपोभूमि
ग्राम के बुजुर्ग राजाराम व सुखदेव के अनुसार ग्राम मारेगांव में समर्थ गुरू देवादासजी स्वामी की तपोभूमि है। उन्होंने यहां पर आकर तप किया था, तभी से यहां पर आने वाले श्रद्धालु भक्तों की सभी मनोकामना पूरी होती है। गुरू देवादासजी की बड़ी समाधि होशंगाबाद में है। इनकी और सहायक समाधियां मारेगांव, उमरधा, मुआंर, खाबादा आदि स्थानों पर भी बताई जाती हैं। उनके शिष्य आज भी इन समाधियों में रहकर जप तप कर रहे हैं। कई वर्षों से लोग यहां पर अपनी अपनी समस्याएं लेकर आते हैं।
बाद में निकलती है बारात
ग्रामीणों के अनुसार मेले के अलावा इस ग्राम की एक और परम्परा है। वह यह कि किसी के भी घर में शादी होती है, तो सबसे पहले दूल्हा समाधि स्थल पर जाकर समाधि की परिक्रमा कर गुरूदव का आर्शीवाद लेता है। इसके बाद ही बारात गांव से रवाना होती है। ग्रामवासियों का कहना है यह वास्तव में संतों का मेला है। लोगों की आस्थाऐं इस मेले से जुड़ी हुई हैं। आदि काल से लोगों की समस्याएं, बाधाएं दूर होती हैं, इसलिए कुछ लोग इसे भूतों का मेला भी कहते है। मारेगांव समाधि स्थल के पुजारी के अनुसार समाधि स्थल पर बच्चे, बूढ़ों, महिलाओं सभी को भभूति दी जाती है। जिससे लोगों के संकट दूर होते हैं। इस कारण ही हजारों की संख्या मैं लोग समाधि स्थल पर दूर दूर से आते हैं।