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जबलपुर

हमें ऐसे ही नहीं मिला ये प्यारा तिरंगा… इसके पीछे भी है कुर्बानी की ये कहानी

संस्कारधानी से उठी थी झंडा सत्याग्रह की चिंगारी, 17 सौ आंदोलन कारियों को हुई थी जेल

जबलपुरAug 13, 2017 / 09:52 pm

Premshankar Tiwari

Housing Board Demand suspension with EE holiday abolished

Housing Board Demand suspension with EE holiday abolished

जबलपुर। स्वाधीनता दिवस पर 15 अगस्त को पूरे देश में तिरंगा फहराया जाएगा, लेकिन बहुत कम ही लोग जानते हैं कि यह तिरंगा हमें कैसे मिला? झंडा आंदोलन की शुरुआत कहां से और कब हुई? यहां हम देश में हुए झंडा सत्याग्रह के बारे में बता रहे हैं। देश में झंडा सत्याग्रह (झंडा आंदोलन) की चिंगारी जबलपुर से उठी थी, जो आग की लपटों की तरह पूरे देश में फैली। इस चिंगारी को जलाने वालों ने जेल की सलाखों के पीछे जाना स्वीकार किया, लेकिन अपने संकल्प से पीछे नहीं हटे।

आंदोलनकारियों ने फहराया तिरंगा
देशव्यापी आंदोलन का नेतृत्व सरदार वल्लभाई पटैल ने किया था। इस आंदोलन को दबाने के लिए ब्रिटिश हुकूमत ने आंदोलनकारियों को जेल में बंद करना शुरु कर दिया। चार माह तक चले आंदोलन में करीब 17 सौ आंदोलनकारियों को जेल में बंद किया गया। अंत में आंदोलन का समापन नागपुर में हुआ। यह आंदोलन इसलिए खास था क्योंकि इस अंादोलन में ब्रिटिश झंडे की बजाय आंदोलनकारियों ने देश का झंडा फहराया था।

टाउन हाल में बनी रूपरेखा

इतिहासकार राजकुमार गुप्ता बताते हैं कि वर्तमान गांधी भवन जो ब्रिटिश काल में टाउन हाल के नाम से जाना था में 1922 को कांग्रेस कमेटी की बैठक हुई। बैठक में झंडा सत्याग्रह की रूपरेखा तैयार हुई। 18 मार्च 1923 का दिन झंडा सत्याग्रह के लिए तय किया गया।

डर गई थी ब्रिटिश हुकूमत

अंदोलनकारियों की तैयारियों को देखकर ब्रिटिश अफसर भयभीत हो गए। तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर ने आंदोलनकारियों से कहा कि यदि झंडा फहराना है तो ब्रिटिश सरकार का झंडा भी फहराया जाएगा। ब्रिटिश अफसर की बात का आंदोलनकारियों पर कोई असर नहीं हुआ।

भारी पुलिस बल तैनात किया

आंदोलन के लिए तय तारीख 18 मार्च 1923 को टाउन हॉल छावनी बना दिया गया। भारी पुलिस बल तैनात किया गया। इसके बाद भी प्रेम चंद्र जैन, सीताराम जाधव, परमानन्द जैन, कुशलचंद्र जैन ने विक्टोरिया टाउन हाल में झंडा फहरा दिया।


जाधव के दांत टूटे

टाउन हाल में झंडा फहराने की घटना के बाद पुलिस ने चारों आंदोलनकारियों को गिरफ्तार कर लिया। आंदोलनकारियों को बर्बरता से पीटा गया। इस दौरान आंदोलन करने वाले सीताराम जाधव के दांत भी टूट गए थे। गांधी जी ने जबलपुर में आंदोलन का नेता तपस्वी सुंदरलाल को बनाया जो मूलत: उत्तर प्रदेश के रहने वाले थे।

फैल गई देश में चिंगारी

जबलपुर में झंडा फहराने की घटना की खबर पूरे देश में आग की तरह फैल गई। जगह-जगह झंडा फहराए जाने लगे। देश व्यापी आंदोलन का नेतृत्व सरदार वल्लभ भाई पटैल ने किया।

नागपुर में समापन हुआ

चार माह तक झंडा आंदोलन पूरे देश में चलता रहा। इसका समापन 17 अगस्त को नागपुर में किया गया। सरदार वल्लभ भाई पटैल के नेतृत्व में आंदोलन के समापन की घोषणा की गई। इतिहासकार बताते हैं कि आंदोलन को दबाने के लिए ब्रिटिश सरकार ने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी थी। 15 अगस्त 1923 तक करीब 17 हजार आंदोलनकारियों को देश की विभन्न जेलों में बंद किया गया था।

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