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jagannath rath yatra 2018: एक दो नहीं यहां पर निकलती हैं 11 रथ यात्राएं, बड़ी रोचक है दासतां

अनूठी है रथ जगन्नाथ रथ यात्रा की कहानी

जबलपुरJul 14, 2018 / 12:08 am

Premshankar Tiwari

jagannath rath yatra

अनूठी है रथ जगन्नाथ रथ यात्रा की कहानी

जबलपुर। भगवान जगन्नाथ यानी जगत के नाथ और पालनहार, जगदीश्वर भी क्या कभी बीमार या अस्वस्थ हो सकते हैं? इस सवाल जवाब उस उत्सव में मिलता है, जो जगन्नाथ रथयात्रा के रूप में मनाया जाता है। युगों से चली आ रही इस परम्परा के परिपालन में शनिवार को आषाढ़ शुक्ल द्वितीया संस्कारधानी में भी भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकाली जाएगी। सबसे अनूठी बात यह है कि यहां एक दो नहीं बल्कि पूरी 11 रथ यात्राएं निकलेंगी। बड़ा फुहारा पर संगम के बाद ये रथ यात्राएं एक साथ गंतव्य के लिए रवाना होती हैं। इस नजारे को देखने के लिए हजारों श्रद्धालु एकत्रित होते हैं। जगत के नाथ के प्रसाद के लिए होड़ मचती है और भक्तिगीताों व भजन-कीर्तन के स्वरों के बीच माहौर भव्य व दिव्य हो जाता है। अमावस्या पर शुक्रवार को इसके लिए तैयारियों का दौर चलता रहा। आचार्यों का मानना है कि भगवान ने अपनी रूठी हुई प्रिया रुकमणी को मनाने के लिए बीमार होनें का स्वांग रचा था और फिर उन्हें लिवाने के लिए मौसी के घर गए थे। अपनी प्रजा को दर्शन देकर कृतकृत्य करने से जुड़ा यह प्रसंग भी उनकी दिव्य लीला का ही एक अंश है। जबलपुर के साथ कटनी और नरसिंहपुर में भी द्वितीया पर भव्य रथ यात्राएं निकाली जाएंगी।


राधा-कृष्ण के अंश हैं जगन्नाथ
ज्योतिषाचार्य पं. रामसंकोची गौतम का मानना है कि पौराणिक मान्यताओं में चारों धामों को एक युग का प्रतीक माना जाता है। जगन्नाथपुरी में विराजे हैं भगवान जगन्नाथ। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा राधा और श्रीकृष्ण का युगल स्वरूप है। जबलपुर में भी जगतपति अंश रूप में विराजमान हैं। भगवान जगन्नाथ की यह रथयात्रा आषाढ़ शुक्ल द्वितीया से आरंभ होती है। भगवान जगन्नाथ सात दिन तक विश्राम दूसरे मंदिर में विश्राम करते हैं और आषाढ़ शुक्ल दशमी के दिन फिर से वापसी यात्रा होती है, जो मुख्य मंदिर पहुंचती है। जगन्नाथ रथयात्रा एक महोत्सव और पर्व के रूप में संस्कारधानी में मनाया जाता है।


ग्यारह रथ यात्राएं
आषाढ़ शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को संस्कारधानी से एक नहीं बल्कि ग्यारह रथ यात्राएं निकाली जाती हैं। इनमें साहू समाज, मां कर्मा जयंती समिति, जगदीश मंदिर गढ़ाफाटक, जगदीश मंदिर हनुमानताल, चौरसिया समाज मिलौनीगंज, बंगाली क्लब, राम मंदिर दीक्षितपुरा और विठ्ठल रखू माई मंदिर हनुमानताल समेत अन्य समितियों की रथ यात्राएं शामिल हैं। जगद्गुरु डॉ स्वामी श्यामदेवाचार्य के अनुसार ये रथ यात्राएं कालांतर में उन श्रद्धालुओं द्वारा प्रारंभ की गई थीं, जो पुरी से वापस आए और उस परम्परा का परचम संस्कारधानी में भी फहराया। जगदीश मंदिर समेत कई रथ यात्राएं 150 वर्ष से भी अधिक समय से निकाली जा रही हैं।

दर्शनों को लगी कतार
संस्कारधानी में स्थित सभी जगदीश मंदिरों के पट शुक्रवार को खुल गए। नेत्रोत्सव में भगवान जगन्नाथ स्वामी ने भक्तों को दर्शन दिए। मंदिरों में सुबह से शुरू हुआ अभिषेक, पूजन-अर्चन का दौर देर शाम तक जारी रहा। कई मंदिरों में भजन-कीर्तन भी हुए। भक्तों के कल्याण के लिए भगवान जगन्नाथ भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ शनिवार शाम चार बजे रथ पर सवार हो नगर भ्रमण करेंगे। जगद्गुरु डॉ. स्वामी श्याम देवाचार्य के सान्निध्य में बड़ा फुहारा में संत जन भगवान की आरती करेंगे। इसके बाद सभी मंदिरों से रथयात्रा मिलौनीगंज पहुंचेगी। यहां धार्मिक परम्परा के अनुसार भगवान जगन्नाथ की मौसी के घर के रूप में बनाए गए स्थान पर रथ यात्रा का विश्राम होगा। सनातन धर्म महासभा के श्याम साहनी और शरद काबरा ने बताया, सभी जगदीश मंदिरों से दोपहर एक बजे रथयात्रा शुरू होकर शाम चार बजे बड़ा फुहारा पहुंचेगी। यहां से मुख्य रथयात्रा निकाली जाएगी।

अनूठी है रथ यात्रा की कथा
जगद्गुरु डॉ स्वामी श्यामदेवाचार्य के अनुसार ऐसा माना जाता है कि एक बार महाप्रभु वल्लभाचार्य एकादशी व्रत के दिन पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर गए। वहां भगवान ने सोचा की महाप्रभु वल्लभाचार्य की निष्ठा की परीक्षा ली जाए। उस दिन महाप्रभु वल्लभाचार्य का व्रत था। किसी ने उन्हें प्रसाद दिया। वल्लभाचार्य ने वो प्रसाद ले लिया। उन्होंने इसके बाद पूरे दिन और रात पूजा की। उन्होंने अगले दिन द्वादशी को पूजा खत्म होने के बाद प्रसाद ग्रहण किया। इसी के बाद से ‘प्रसाद’ को ‘महाप्रसाद’ कहा जाने लगा।

दुनिया की सबसे बड़ी रसोई
भगवान जगन्नाथ का भोग दुनिया की सबसे बड़ी रसोई में बनाया जाता है। इसे बनाने के लिए लगभग 500 रसोइए और उनके 300 सहयोगी एक साथ काम करते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस भोग को मां लक्ष्मी अपनी देखरेख में बनवाती हैं। भगवान के लिए रोज 56 भोग बनाए जाते हैं। इन्हें हिंदू धर्म में बताई गई विधि के अनुसार ही बनाया जाता है। भोग के किसी भी व्यंजन में कोई बदलाव नहीं किया जाता। पूरा प्रसाद शाकाहारी होता है। इसमें प्याज व लहसुन भी नहीं होता। सारा भोग मिट्टी के बर्तनों में बनाया जाता है। रसोई के पास में दो कुएं स्थित हैं। इन कुओं को गंगा और यमुना कहा जाता है। सारा भोग इन्हीं से निकले पानी से बनाया जाता है। भोग पकाने के लिए 7 मिट्टी के बर्तन एक दूसरे के ऊपर रखते हैं। सारा भोग लकड़ी के चूल्हे पर पकाते हैं। इस में सबसे पहले सबसे ऊपर के बर्तन का भोग तैयार होता है और फिर नीचे के बर्तनों का। यहां रोजाना लगभग 20 हजार लोगों के लिए भोग का ये महाप्रसाद बनाया जाता है। त्योहारों के मौके पर यह मात्रा 50 हजार से अधिक लोगों तक पहुंच जाती है।

16 कलाओं से पूर्ण अवतार
ज्योतिषाचार्य पं. दिनेश गर्ग के अनुसार भगवान जगन्नाथ के अवतार को 16 कलाओं से परिपूर्ण माना जाता है। पुराणों में जगन्नाथ धाम की काफी महिमा है, इसे धरती का बैकुंठ भी कहा गया है। यह हिन्दू धर्म के पवित्र चार धाम बद्रीनाथ, द्वारिका, रामेश्वरम और जगन्नाथ पुरी में से एक है। यहां भगवान जगन्नाथ बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ विराजते हैं। यहां के बारे में मान्यता है कि श्रीकृष्ण, भगवान जगन्नाथ के रुप है और उन्हें जगन्नाथ (जगत के नाथ) यानी संसार का नाथ कहा जाता है। जगन्नाथ मंदिर में भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और उनकी बहन सुभद्रा की पूजा की जाती है। मंदिर में भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा सबसे दाई तरफ स्थित है। बीच में उनकी बहन सुभद्रा की प्रतिमा है और दाई तरफ उनके बड़े भाई बलभद्र (बलराम) विराजते हैं। संस्कारधानी में पुरी से ही मिलती-जुलती झांकियों के दर्शन करने शनिवार को भक्तों को तांता लगेगा। हर तरफ जगत के नाथ के जयकारे गूंज उठेंगे।

जन्म-मरण के बंधन से मुक्ति
ज्योतिषाचार्य पं. जनार्दन शुक्ला के अनुसार रथयात्रा के सच्चे मन से दर्शन मात्र से व्यक्ति जन्म-मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है। दर्शन के पुण्य फल से भक्त को शिवलोक की प्राप्ति होती है। इस यात्रा में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र व सुभद्रा तीनों रथ पर सवार होकर निकलते हैं। गरुड़ध्वज नाम का रथ, शंख, बलाहक, श्वेत एवं हरिदाश्व नामक सफेद घोड़े और सारथी दारुक होते हैं। भगवान जगन्नाथ के रथ पर हनुमानजी और नरसिंह भगवान का प्रतीक होता है। इसके अलावा भगवान जगन्नाथ के रथ पर सुदर्शन स्तंभ भी होता है। यह स्तंभ रथ की रक्षा का प्रतीक माना जाता है।

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