जबलपुर. श्रीमद् भागवत गीता में श्री कृष्ण पहले ही ये बता चुके हैं, जैसे कर्म करेगा, वैसे फल देगा भगवान। अब निरीह मासूम लोगों की जान से खिलवाड़ करने वाले विहिप नेता सरबजीत सिंह मोखा पर ये उक्तियां अक्षरशः साबित होने लगी हैं। अब शासन-प्रशासन ने तो उसके खिलाफ जांच शुरू ही कर दी है। पीड़ित-शोषित मरीजों के परिवारजन भी आगे आने लगे हैं। वो बाकायदा थाने जा कर अपनी शिकायत दर्ज कराने लगे हैं। एसआईटी, क्राइम ब्रांच और पुलिस तो अपना काम कर रही है। कलेक्टर पहले ही एनएसए के तहत निरुद्ध करने का आदेश दे चुके हैं। इतना ही नहीं सैकड़ों लोगो की जान से खिलवाड़ करने वाले इस शख्स को ईश्वर से भी कोरोना संक्रमण का दंड मिल चुका है।
राजननेताओं से थे अच्छे संबंध बताया जा रहा है कि मोखा के कई नेताओं से अच्छे संबंध हैं। नेताओं का वह बड़ा फाइनेंसर रहा है। कहा तो यहां तक जा रहा है कि उसके इस काले कारोबार से कई सफेदपोश भी जुड़े हैं। एक बीजेपी विधायक इसका खुला आरोप लगा भी चुके हैं। चर्चाओं के अनुसार अपनी राजनीतिक पहुंच के चलते ही वह अब तक अपने काले कारनामों को बखूबी अंजाम देता रहा। यह तो सर्वविदित है कि गिरफ्तारी से पहले मोखा विहिप का नर्मदा जिलाध्यक्ष था। बाद में इसे हटाया गया। पूर्व में विहिप के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके प्रवीण तोगड़िया तक उसके यहां आ चुके हैं। अब नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन में फंसने के बाद कई नेता सारे साक्ष्य मिटाने में जुट गए बताए जा रहे हैं।
राममंदिर निर्माण को दिए 25 लाख मोखा ने राजनीतिक पकड़ तो बना ही रखी थी, साथ ही वह समाजसेवी साबित करने का भी कोई मौका नहीं गंवाता रहा। चंदा देने में तो वह हमेशा आगे रहा। यहां तक कि राम मंदिर निर्माण के लिए एकत्र किए जा रहे धन संग्रह में उसने 25 लाख का चंदा दिया था। यहीं नहीं करमेत में तैयार 500 बेड के कोविड केयर सेंटर के लिए उसने सांसद निवास पर कोविड के लिए जिला प्रभारी बनाए गए मंत्री अरविंद भदौरिया की मौजूदगी में 10 लाख रुपए रेडक्रॉस को दिए थे।
चंद दिनों में ही अर्जित की अकूत संपत्ति सिटी हॉस्पिटल का संचालक सरबजीत सिंह ने चंद सालों में ही अकूत संपत्ति बना ली। उसकी संपत्ति का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि सिटी हॉस्पिटल, सिटी पैलेस होटल, पेट्रोल पंप, फॉर्म हाउस, कई बिल्डिंग के प्रोजेक्ट और शहर के कई पॉश इलाकों में उसकी जमीनें हैं। इसके अलावा दमोह में एक बड़े अस्पताल का निर्माण अभी जारी है। जबलपुर में ही दो अस्पताल बनाकर वह बेच चुका है। उसके पास कई लग्जरी गाड़ियां हैं। पॉश सोसाइटी में उसका बंगला है।
शहर में कई अस्पताल शहर में निजी हॉस्पिटल के टॉप थ्री में शामिल सिटी अस्पताल में 250 बेड है। इसमें 150 बेड उसने कोविड के लिए आवंटित कर रखा था। 120 बेड इसमें ऑक्सीजन सपोर्ट वाले और 30 बेड वेंटीलेटर वाले हैं। कोविड मरीजों के इलाज पर उसने पांच से 10 लाख रुपए तक बिल वसूले हैं। बावजूद वह नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन के धंधे में उतर कर मरीजों की जान से खिलवाड़ करता रहा।
नहीं काम आया रसूख, संपर्कियों ने बनाई दूरी लेकिन उसका रसूख, काली कमाई से कमाए रुपये अब उसके किसी काम नहीं आ रहे। उसके संपर्कियों ने उससे अच्छी-खासी दूरी बना ली है। उसके जेल जाने के बाद, सिटी अस्पताल में भर्ती मरीजों, जिनकी जान चली गई, उनके परिजन शिकायत दर्ज कराने आगे आने लगे हैं। ऐसे लोग ओमती थाने में मुकदमा दर्ज कराने पहुंच रहे हैं। एसआईटी भी ऐसे परिवारों के बयान दर्ज करने में जुटी है। सिटी अस्पताल में अपने अपनों को खो चुके दो परिवार के लोगों ने सुप्रीम कोर्ट तक से गुहार लगाते हुए, मामले की सीबीआई जांच की मांग की है।
पीड़ित-शोषित दर्ज कराने लगे रिपोर्ट ताजा प्रकरण में एक महिला ने एएसपी रोहित काशवानी से मिल कर शिकायत दर्ज कराई है। उन्होने कहा है कि एक अप्रैल को उसने अपने पति को सिटी अस्प्ताल में भर्ती करवाया था। उन्हें मामूली बुखार था। उनके भर्ती होते ही इलाज के नाम पर रुपए की वसूली शुरू हो गई। पहले ढाई लाख रुपए जमा करवाए गए। इस दौरान चार रेमडेसिविर इंजेक्शन लगाए गए। नौ अप्रैल को उनकी तबियत बिगड़ी और मौत हो गई।
शिकायत दर्ज कराते भर्रा गया गला, छलछला उठीं आंखें ऐसे ही एक किराना व्यापारी के परिवार वालों ने ओमती थाने में शिकायत दर्ज कराई है कि 19 दिन तक जगदीश को अस्पताल में भर्ती रखा गया। अस्पताल ने इस दौरान 6 की बजाए 9 रेमडेसिविर इंजेक्शन लगा दिए। इसका बिल 6 लाख 83 हजार रुपए वसूले गए। इसके बावजूद व्यापारी को नहीं बचाया जा सका। जगदीश को अस्पताल प्रबंधन नहीं बचा पाया। व्यापारी के पिता का दावा है कि 22 अप्रैल को सिटी अस्पताल में भी ऑक्सीजन की कमी से 5 मौतें हुई, लेकिन उसे दबा दिया गया। उन्होंने कहा है कि उन्होंने अपने बेटे को 21 अप्रैल को इस अस्पताल में भर्ती कराया था। अस्पताल से सिर्फ आश्वासन और बिल जमा करने की बात ही कही जाती रही। नौ मई को आखिरकार उसने दम तोड़ दिया। उन्होंने बताया कि सात मई को जब गुजरात पुलिस सपन को गिरफ्तार कर ले गई, तो सिटी हॉस्पिटल मे हड़कंप मचा हुआ था। सिटी अस्पताल की मैनेजर सोनिया खत्री दवाईयों को कार्टून में भर-भरकर अस्पताल से बाहर भिजवाती रही थीं। यह प्रक्रिया रात भर जारी रही। उन्होने कहा कि दूसरे दिन उन्हें पता चला कि अस्पताल में नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन लगाए गए थे तो आरोप लगाया कि उसके बेटे की मौत भी इसी नकली इंजेक्शन से हुई है। इतना सब कहते हुए इस बुजुर्ग पिता की जुबान भर्रा गई थीं, आंखें छलछला गई थीं। अब इस बुजुर्ग व्यापारी को एक नन्ही (छह साल) की बेटी को भी पालना है।
एसआईटी भी दर्ज कर रही शिकायतें इस तरह की शिकायतें न केवल ओमती थाने में दर्ज हो रही हैं बल्कि एसआईटी भी ऐसे पीड़ित परिवार वालों के बयान दर्ज कर रही है। एसआईटी प्रभारी रोहित काशवानी के मुताबिक इस मामले में जो भी तथ्य व साक्ष्य आएंगे, उसे जांच में शामिल किया जाएगा। एसआईटी में शामिल भेड़ाघाट टीआई शफीक खान सहित पांच लोगों की टीम ने शुक्रवार को नरसिंहपुर में तीन पीड़ित परिवार वालों के घर पहुंच कर उनके बयान दर्ज किए हैं।
एसआईटी टीम को अब तक के पूछताछ में यह पता चला है कि मोखा ने 500 इंजेक्शन खपाया है। इसका पता लगाने के लिए टीम 20 अप्रैल से भर्ती मरीजों का डाटा जुटाने में लगी है। इसके तहत अस्पताल में भर्ती मरीजों की संख्या, कितने मरीजों को रेमडेसिविर इंजेक्शन लगे, कितने दिन वो भर्ती रहे। इस दौरान कुल कितने लोगों की मौत हुई। इन मरीजों से कितना बिल वसूला गया। वहीं अस्पताल को आवंटित रेमडेसिविर इंजेक्शन का भी पूरा ब्यौरा टीम ने जुटाया है।
सिटी अस्पतालकर्मी सोनिया पर विशेष नजर एसआईटी ने सिटी अस्पताल की मैनेजर सोनिया खत्री और सीनियर मैनेजर अभिषेक चक्रवर्ती को भी तलब किया है। अस्पताल में होने वाले सारी घटनाओं की इन्हें जानकारी है। खासकर सोनिया खत्री से टीम को मोखा के बारे में अहम जानकारी मिलने की उम्मीद है। मोखा सबसे अधिक भरोसा भी सोनिया खत्री पर ही करता है। इस परिवार पर मोखा कुछ अधिक ही मेहरबान है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि सोनिया की बहन सपना इसी अस्पताल में कैशलेस का काम देखती है। उसके भाई भी अस्पताल से जुड़े हैं।
पर यहां चूक गई एसआईटी हालांकि एसआईटी की टीम से नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन मामले में कई तरह की चूक भी हुई है। मसलन मोखा का मोबाइल जब्त न करना बड़ी चूक मानी जा रही है। बताया जा रहा है कि मोबाइल जब्त करने की याद एसआईटी को तब आई जब मोखा जेल चला गया। अब वह मोबाइल हासिल करना मुश्किल हो रहा है। बताया जा रहा है कि मोबाइल मोखा की पत्नी के पास है। इस मोबाइल को अगर समय रहते जब्त कर लिया गया होता तो कई अहम् सुराग मिल गए होते।
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