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जबलपुर

‘मरीज कैसा भी हो, खर्च तो देना ही होगा’

संभाग के बड़े मेडिकल कॉलेज की व्यवस्थाएं चौपट, मरीजों के बैठने की व्यवस्था नहीं, अटेंडेन्ट नहीं मिल रहे

जबलपुरFeb 28, 2019 / 09:02 pm

manoj Verma

medical collage

medical collage

जबलपुर। नेताजी सुभाषचंद्र बोस मेडिकल कॉलेज अस्पताल में मरीजों को चिकित्सा सुविधा के नाम पर लूटा जा रहा है। अस्पताल के वार्डों में भर्ती मरीज को हर बात के लिए पैसा देना होता है। यह खुलासा मेडिकल के वार्डों से चिकित्सा विभागों में पहुंचे मरीजों ने किया है। मरीजों के रिश्तेदारों और परिजनों का कहना है कि वार्ड में कोई भी सुविधा लेने के लिए वहां मौजूद कर्मचारी को खर्चा देना पड़ता है, तभी उन्हें सुविधा मिल पाती है। मरीजों के कथन और वहां की प्रशासनिक व्यवस्थाओं को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि मरीज किस दशा में यहां ट्रीेटमेंट ले रहे होंगे। मेडिकल की व्यवस्थाओं की पोल खोलती रिपोर्ट…।
मेडिकल कॉलेज में रविवार को छोड़कर हफ्ते भर ओपीडी (बाह्य रोगी कक्ष) रहती है। मेडिकल में करीब 14 विभाग की ओपीडी में मरीजों को बैठने की जगह नहीं है। यहां मरीज खड़े रहते हैं या फिर जमीन पर ही बैठते हैं। सामान्य ओपीडी में ए.सपोज ने जब छानबीन की तो यह सामने आया कि मरीज तो खड़े थे लेकिन उनके अटेंडेन्ट कुर्सियों पर थे,
जिससे वहां भीड़ हो गई थी। मरीज जमीन में बैठे हुए थे। कुछ मरीज अपने नंबर के इंतजार में ओपीडी के बाहर बैठे हुए थे।
रक्त जांच कक्ष में पैर रखने की जगह नहीं
मेडिकल में रक्त जांच कक्ष के हालात सबसे ज्यादा खराब थे, जहां पैर रखने की जगह नहीं थी। रक्त जांच के लिए मरीजों की कतार लगी हुई थी। खिड़की पर नंबर लेने के लिए अलग से कतार थी। जांच कक्ष में लोग अपने नंबर का इंतजार कर रहे थे। यहां मरीजों के बैठने की कोई व्यवस्था नहीं थी।
मरीज के रिश्तेदार घसीट रहे थे स्ट्रेचर व्हील चेयर
मेडिकल परिसर में मरीजों के रिश्तेदार, परिचित से बातचीत की गई तो उनका कहना था कि वार्ड से मरीज को जांच करवाने के लिए लाने-ले-जाने के लिए कोई अटेंडेन्ट नहीं मिलता है। व्हील चेयर या स्ट्रेचर लेने के लिए उन्हें आधारकार्ड जमा करना पड़ता है। स्ट्रेचर लौटाने के बाद उन्हें आधार कार्ड वापस मिलता है। अटेंडेन्ट लेने के लिए खर्चा देना पड़ता है तभी अटेंडेन्ट स्ट्रेचर में हाथ लगाते हैं।
ये था नजारा
ओपीडी के बाहर स्ट्रेचर पर महिला अपने पति को लेकर नंबर का इंतजार कर रही थी, जो पति को वार्ड से खुद स्ट्रेचर पर लेकर आई थी।
खून की जांच के लिए अपने भाई को व्हील चेयर पर लेकर आया था। चेयर के लिए अटेंडेन्ट नहीं मिला था। एक्स-रे के बाहर 03 स्ट्रेचर पर मरीज थे। एक स्टे्रचर तो अटेंडेन्ट लाया था लेकिन अन्य दो स्ट्रेचर परिजन ही खींचकर लाए थे।
ओपीडी में बैठने की जगह नहीं थी, इसलिए मरीज और अटेंडेन्ट बरांडे और कॉरीडोर में अपने नंबर के इंतजार में जमीन पर बैठे हुए थे।
अस्पताल के वार्डों में वार्ड अटेंडेन्ट हैं, जो मरीजों को जांच आदि के लिए ले जाते हैं। पैसा मांगने की शिकायत नहीं मिली है। जानकारी ली जाएगी। यदि एेसा हो रहा है तो कार्रवाई की जाएगी।
डॉ. राजेश तिवारी, अधीक्षक, मेडिकल
मरीज के रिश्तेदार से बातचीत के अंश
आपका मरीज किस वार्ड में भर्ती है?
चौथी मंजिल पर हैं।
इन्हें व्हील चेयर पर लेकर आए हो?
हां।
अटेंडेन्ट कहां गया, जो व्हीलचेयर लेकर
आया होगा?
कौन! अटेंडेन्ट कैसा? इन्हें तो हम ही लेकर आए हैं।
अच्छा तो फिर लौटाकर तो अटेंडेन्ट ले जाएगा?
अरे, नहीं भैया। हमारा मरीज है हमें ही वापस लेकर जाना होगा। वार्ड में जाकर व्हील चेयर देंगे तब हमें आधार कार्ड मिलेगा।
मतलब?
आधार कार्ड जमा करते हैं, तभी ये चेयर मिली है।
वार्ड में .या अटेंडेन्ट नहीं है?
हैं, लेकिन वह पैसा मांगता है। हम दे नहीं सकते हैं, इसलिए खुद ही लेकर आए हैं।
तो .या बिना पैसे के काम नहीं होता है?
अरे, भैया। सब दिखावा है। यहां तो पट्टी करने वाले को भी पैसा देना होता है। तभी वह ड्रेसिंग करके जाता है। वरना पड़े रहो।
इसकी शिकायत .यों नहीं करते हो?
कौन करेगा। हमारा मरीज यहां भर्ती है।
(नोट- यह बातचीत वीडियो रिकार्ड की गई है।)

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