जागरूकता की जरूरत है
डॉक्टर्स का कहना है कि शहर में ज्यादातर लोगों को इस बारे में जानकारी नहीं हैं कि उन्हें हीमोफीलिया है। एक्सीडेंट और गंभीर चोट लगने की स्थिति में होने वाली जांचों के दौरान इसके बारे में पता चलता है। हीमोफीलिया होने का सबसे बड़ा कारण क्लोटिंग फैक्टर 8 की कमी का होना है। प्रति 10 हजार लड़कों में किसी एक को यह बीमारी मिलती है। इसके लिए जरूरी है कि सभी को एक बार हीमोफीलिया से संबंधित जांच करवानी चाहिए।
ऐसे होते हैं प्रकार
1. हीमोफीलिया बी
– इसमें थक्का जमाने वाले क्लोङ्क्षटग फैक्टर में 9 की कमीं होती है।
– यह मामता प्रति 50 हजार लड़कों में किसी एक को जन्म के समय होता है।
2. हीमोफीलिया सी
– इसके बहुत कम मामले सामने आते हैं। यह क्रोमोजोन की कार्यप्रणाली बिगडऩे से होता है।
– इसमें ब्लीडिंग तेजी से होती है।
ऐसे पड़ता है असर
– 15 से 25 हीमोफीलिया के मरीजों में ट्रीटमेंट के दौरान इम्युनिटी पावर कम हो जाती है।
– रोगी पर दवाओं का असर नहीं होता।
– कई बार स्थिति गंभीर बन जाती है।
– छोटी चोट लगने पर भी अधिक खून का बहना।
– शरीर के हिस्सों में हमेशा दर्द बना रहा।
– आम लोगों ने इनकी जिन्दगी 10 से 12 साल कम होती है।
ऐसे होता है इलाज
शहर में हीमोफीलिया रोगियों को योग और फिजिकल थैरेपी के जरिए ट्रीटमेंट दिया जाता है। इसमें मरीज को पहले योग और प्राणायाम सिखाया जाता है और फिर इसके बाद फिजिकल एक्टिविटीज कराई जाती हैं। इससे बोन्स और मसल्स मजबूत मिलने में मदद मिलती है।