भितरघात का ज्वर भी तीव्रता के साथ वर्ष 2013 में भाजपा हो अथवा कांग्रेस दोनों ही दलों ने टिकट वितरण में अलग ही फार्मूला इजाद किया है। जहां भाजपा ने बहुत पहले प्रत्याशियों की पहली सूची जारी कर दी थी तो कांग्रेस ने नामांकन के ऐन टाइम तक प्रत्याशी चयन को लेकर माथापच्ची की। इसका असर जमीनी स्तर पर कार्यकर्ता अथवा चुनाव की तैयारी कर रहे नेता पर पड़ा। कई सीटों पर उच्च पदस्थ सूत्रों से मिले इशारे के बाद कई नेताओं ने स्वयं को प्रत्याशी मानते हुए क्षेत्र में जनसंपर्क भी प्रारंभ कर दिया और अपनी गोटियां बैठानी शुरू कर दी थीं, लेकिन पार्टी की सूची जारी होने के बाद स्वयं को ठगा हुआ महसूस किया। चरम पर पहुंच चुके चुनावी बुखार में भितरघात का ज्वर भी तीव्रता के साथ थर्मामीटर के सूचकांक में वृद्धि करता दिख रहा है। नगरीय इलाके में इसका प्रभाव कुछ अधिक नजर आ रहा है। राजनीतिक जानकारों के अनुसार बस्तर की 12 सीटों में 18 दावेदार प्रत्यक्ष रूप से इस रोग से पीड़ित हैं।
पार्टी को ताकत का एहसास कराना उद्देश्य
तमाम उम्मीद और जीत का भरोसा होने के बाद भी टिकट न मिलने से जितना नेता दुखी नहीं है उससे कहीं अधिक नाराज उसके समर्थक हैं। पार्टी के निर्णय को गलत साबित करने के उद्देश्य को लेकर यह किसी भी स्तर पर जाने के लिए तैयार हैं। ऐसे में सबसे सरल रास्ता पार्टी प्रत्याशी को हराना और विपक्षी के पक्ष में मतदान कराना है।
दोनों दलों में बागी किसी एक दल अथवा प्रत्याशी नहीं बल्कि भाजपा, कांग्रेस और कहीं आप को भी विभीषण से जूझना पड़ रहा है। कुछ सीटों पर तो दोनों ही दलों के विभीषण अपनी पार्टी के प्रत्याशी के खिलाफ मैदान में हैं। ऐसे में तस्वीर स्पष्ट ही नहीं हो पा रही है और न यह तय हो पा रहा है कि कौन कहां किसको कितना नुकसान पहुंचा रहा है।
अंतागढ़ खुली किताब कांग्रेस की लिस्ट में बतौर प्रत्याशी नाम न होने से नाराज निवर्तमान विधायक खुलकर विद्रोह पर उतारू हो गए और उन्होंने नामांकन तक दाखिल कर दिया। यह सीट स्पष्ट हो गई जबकि अन्य सीटों पर दावेदार दलीय नेता अन्य तरकीबों को अपनाकर संगठन के उच्च पदस्थ अधिकारियों को अपनी ताकत दिखा रहे हैं तो कुछ भविष्य में एडजेस्ट होने की उम्मीद के साथ कोपभवन में पड़े हुए हैं।