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जगदलपुर

अगर आप भी रखते हैं ट्रैकिंग का शौक तो बस्तर में यहां जरूर जाएं जहां भगवान गणेश व परशुराम के बीच हुआ था युद्ध

पौराणिक कथाओं में (In mythology stories) परशुराम और भगवान गणेश के बीच जिस युद्ध का वर्णन है वह छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले के ढोलकल पहाडिय़ों पर हुआ था।
 

जगदलपुरJul 15, 2019 / 04:13 pm

Badal Dewangan

hindu temple

अगर आप भी रखते हैं ट्रैकिंग का शौक तो बस्तर में यहां जरूर जाएं जहां भगवान गणेश व परशुराम के बीच हुआ था युद्ध

जगदलपुर. पौराणिक कथाओं में परशुराम और भगवान गणेश के बीच जिस युद्ध का वर्णन है वह छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले के ढोलकल पहाडिय़ों पर हुआ था। यहां आज भी इस बात के प्रमाण मिलते हैं। यहां समुद्र तल से 2994 फीट ऊंची चोटी पर भगवान गणेश विराजे हुए हैं। यह कोई नहीं जानता कि इतनी ऊंचाई पर गणेश की प्रतिमा कैसे पहुंची। स्थानीय आदिवासी भगवान गणेश को अपना रक्षक मानकर पूजा करते हैं। यहां के आदिवासी बताते हैं ढोलकल शिखर के पास स्थित दूसरे शिखर पर सूर्यदेव की प्रतिमा स्थापित थी जो 15 साल पहले चोरी हो चुकी है।

पूरे बस्तर में ऐसी प्रतिमा और कहीं नही
पुरातत्ववेत्ताओं के मुताबिक यह प्रतिमा 11 वीं सदी की है। तब यहां नागवंशी राजाओं का शासन था। गणेश प्रतिमा के पेट पर नाग का चित्र अंकित है। इस आधार पर माना जाता है कि, इसकी स्थापना नागवंशी राजाओं ने की होगी। यह प्रतिमा पूरी तरह सुरक्षित और ललितासन में है। हालांकि इतनी ऊंचाई पर ले जाने या इसे बनाने के लिए कौन सी तकनीक अपनाई गई यह रहस्य है। आर्कियोलॉजिस्ट के मुताबिक पूरे बस्तर में ऐसी प्रतिमा और कहीं नहीं है। इसलिए यह रहस्य और भी गहरा हो जाता है कि ऐसी एक ही प्रतिमा यहां कहां से आई।

लोक मान्यता है प्रचलित
यहां प्रचलित किवदंतियां भी इस बात की पुष्टि करती है। दक्षिण बस्तर के भोगामी आदिवासी परिवार अपनी उत्पत्ति ढोलकट्टा ;ढोलकलद्ध की महिला पुजारी से मानते हैं। क्षेत्र में यह कथा प्रचलित है कि भगवान गणेश और परशूराम का युद्ध इसी शिखर पर हुआ था। युद्ध के दौरान भगवान गणेश का एक दांत यहां टूट गया। इस घटना को चिरस्थाई बनाने के लिए छिंदक नागवंशी राजाओं ने शिखर पर गणेश की प्रतिमा स्थापति की। चूंकि परशूराम के फरसे से गणेश का दांत टूटा थाए इसलिए पहाड़ी की शिखर के नीचे के गांव का नाम फरसपाल रखा गया। बगल में कोतवाल पारा गांव है। कोतवाल मतलब रक्षक या पहरेदार। लोग यहां गणेश को अपने क्षेत्र का रक्षक मानते हैं। पुराण में वर्णित कथा के मुताबिक कैलाश स्थित भगवान शंकर के अन्तरूपुर में प्रवेश करते समय गणेश जी ने जब परशुराम को रोका तो वह बलपूर्वक अन्दर जाने की चेष्ठा की। तब गणपति ने उन्हें स्तंभित कर अपनी सूँड में लपेटकर समस्त लोकों का भ्रमण कराया। इसके बाद गोलोक में भगवान श्रीकृष्ण का दर्शन करा कर भूतल पर पटक दिया। चेतनावस्था में आने पर कुपित परशुराम ओर गणेश के बीच भूलोक पर युद्ध हुआ। परशुराम ने फरसे से गणेश जी पर प्रहार किया। इससे गणेश जी का एक दाँत टूट गयाए जिससे वे एकदन्त कहलाये।

अद्भुत है प्रतिमा
प्रतिमा के दर्शन के लिए उस पहाड़ पर चढऩा बहुत कठिन है। विशेष मौकों पर ही लोग वहां पूजा.पाठ के लिए जाते हैं। करीब तीन फीट ऊंची और ढाई फीट चौड़ी ग्रेनाइट पत्थर से बनी यह प्रतिमा बेहद कलात्मक है। गणपति की इस प्रतिमा में ऊपरी दाएं हाथ में फरसा और ऊपरी बाएं हाथ में टूटा हुआ एक दांत है जबकि आशीवाज़्द की मुद्रा में नीचले दाएं हाथ में वे माला धारण किए हुए हैं और बाएं हाथ में मोदक है।

इसलिए पड़ा ढोलकल नाम
ढोलकल पहाड़ी दंतेवाड़ा शहर से करीब 22 किलोमीटर दूर है। कुछ ही साल पहले पुरातत्व विभाग ने प्रतिमा की खोज की। स्थानीय भाषा में कल का मतलब पहाड़ होता है। इसलिए ढोलकल के दो मतलब निकाले जाते हैं। एक तो ये कि ढोलकल पहाड़ी की वह चोटी जहां गणपति प्रतिमा है वह बिलकुल बेलनाकार ढोल की की तरह खड़ी है और दूसरा, वहां ढोल बजाने से दूर तक उसकी आवाज सुनाई देती है।

कठिन है यहां तक पहुंचना
दंतेवाड़ा से 22 किमी दूर ढोलकल शिखर तक पहुंचने के लिए दंतेवाड़ा से करीब 18 किलोमीटर दूर फरसपाल जाना पड़ता है। यहां से कोतवाल पारा होकर जामपारा तक पहुंच मार्ग है। जामपारा में वाहन खड़ी कर तथा ग्रामीणों के सहयोग से शिखर तक पहुंचा जा सकता है। जामपारा पहाड़ के नीचे है। यहां से करीब तीन घंटे पैदल चलकर तक पहाड़ी पगडंडियों से होकर ऊपर पहुंचना पड़ता है। बारिश के दिनों में पहाड़ी नाला बाधक है।

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