जगदलपुर

पूरे भारत में कहीं नहीं होती ऐसी परंपरा जो सिर्फ बस्तर में निभाई जाती है, जानिए गोंचा का पूरा इतिहास

बस्तर अंचल में Rath Yatra उत्सव का श्रीगणेश चालुक्य राजवंश के महाराजा पुरूषोत्तम देव की Jagannath Puri यात्रा के पश्चात् हुआ।

जगदलपुरJul 04, 2019 / 01:53 pm

Badal Dewangan

पूरे भारत में कहीं नहीं होती ऐसी परंपरा जो सिर्फ बस्तर में निभाई जाती है, जानिए गोंचा का पूरा इतिहास

जगदलपुर – हजारों श्रद्धालु तुपकी दागकर रथारुढ़ भगवानों को सलामी देते है बस्तर में बंदूक को ‘तुपक’ कहा जाता है। ‘तुपक’ शब्द से ही ‘तुपकी’ शब्द बना है। यहांँ रथयात्रा गोंचा पर्व के दौरान बच्चे, युवक-युवतियाँ, रंग-बिरंगी तुपकी लेकर अपने-अपने निशाने की फिराक में रथ के चारों ओर मंडराते रहते हैं। पूरे नगर में हजारों की संख्या में अंचल के आदिवासी तथा गैर आदिवासी, श्रद्धालु जुटते हैं, जिससे नगर में मेले सा माहौल बना रहता है।

गुण्डिचा का स्मृति पर्व जो कालांतर में गोंचा बन गया
बस्तर अंचल में रथयात्रा उत्सव का श्रीगणेश चालुक्य राजवंश के महाराजा पुरूषोत्तम देव की जगन्नाथपुरी यात्रा के पश्चात् हुआ। लोकमतानुसार ओडि़सा में सर्वप्रथम राजा इन्द्रद्युम्न ने रथयात्रा प्रारंभ की थी, उनकी पत्नी का नाम ‘गुण्डिचा’ था। ओडि़सा में गुण्डिचा कहा जाने वाला यह पर्व कालान्तर में परिवर्तन के साथ बस्तर में ‘गोंचा’ कहलाया।

जानिए क्यों 611 साल से बस्तर के ही होकर रह गए है जग के ‘नाथ’

विभिन्न धर्म एवं जातियों के लोगों का पर्व है
लगभग 6११ वर्ष पूर्व प्रारंभ की गई रथयात्रा की यह परंपरा आज भी निर्बाध रूप से इस अंचल में कायम है। वैसे तो जगन्नाथपुरी, ओडि़सा के गाँवों के अलावा भारत के विभिन्न राज्यों में मनाया जाता है। परन्तु जगन्नाथपुरी की रथयात्रा विश्वप्रसिद्ध है। यहांँ के मंदिरों में सदियों से मनाए जाने वाले रथयात्रा उत्सव के अवसर पर देश-विदेश से जनसमूह उमड़ता है, जहांँ भगवान जगन्नाथ के दर्शन किए जाते हैं। बस्तर का गोंचा पर्व किसी एक समुदाय का नही वरन् बस्तर में निवास कर रहे विभिन्न धर्म एवं जातियों के लोगों का पर्व है।

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