बापू से जुड़ी इतनी अहम निशानी पूरे प्रदेश में कहीं पर भी नहीं है। इस लिहाज से इस स्थान को जितना महत्व मिलना चाहिए था वह पिछले 74 साल में नहीं मिल पाया है। इस स्थान का उतना प्रचार-प्रसार नहीं हुआ जितना होना चाहिए। हालांकि अब बस्तर जिला प्रशासन ने इस स्थान को डेवलप करने के लिए प्रोजेक्ट तैयार किया है। आजादी की लड़ाई में भाग लेने वाले बस्तर के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और उनके परिवार के लोग समय-समय पर इस स्थान को बेहतर तरीके से डेवलप करने की मांग करते रहे हैं ताकि बस्तर के अलावा यहां देशभर से पहुंचने वाले पर्यटक भी इस स्थान पर आकर बापू को नमन कर सकें। छत्तीसगढ़ के राजघाट के रूप में इसे विकसित किया जा सकता है।
बस्तर के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी दिल्ली से लाए थे 74 साल पहले बापूजी की भस्म
बस्तर की 95 फीसदी आबादी 2021 तक यह नहीं जानती थी कि उनके बस्तर में बापू की भस्म कलश स्थापित है। इसलिए जिला प्रशासन ने ऐतिहासिक स्थल को संरक्षित करते हुए यहां महात्मा गांधी की दस फीट ऊंची प्रतिमा स्थापित की। इस प्रतिमा का अनावरण 16 अक्टूबर 2021 को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने किया था। बताया गया कि वर्ष 1948 में महात्मा गांधी की शहादत के बाद बापू का एक भस्म कलश बस्तर के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी दिल्ली से जगदलपुर लाए थे। इस भस्म कलश को इंद्रावती में विसर्जित नहीं किया गया था। पुष्पांजलि पश्चात यह कलश गोल बाजार में ही गड्डा खोदकर ससम्मान दबा दिया गया था। उक्त स्थल के ऊपर एक झंडाचौरा तैयार किया गया है। अब गांधी उद्यान में महात्मा गांधी की दस फीट ऊंची प्रतिमा स्थापित कर लोगों को इस एतिहासिक स्थल का महत्व बताने का प्रयास किया गया है।
राष्ट्रीय महत्व के इस स्थान को मिलनी चाहिए पहचान: पद्मश्री सैनी
बस्तर के गांधीवादी समाजसेवक और माता रुक्मणी सेवा संस्थान के संस्थापक पद्मश्री धर्मपाल सैनी बताते हैं कि पिछले 40 साल से लगातार हर साल 2 अक्टूबर गांधी जयंती और 30 जनवरी शहीद दिवस को यहां आश्रम की छात्राओं के साथ पहुंचते हैं और श्रमदान कर बापू को श्रद्धांजलि देते हैं। पद्मश्री सैनी कहते हैं यह राष्ट्रीय महत्व का स्थान है और इसकी उपेक्षा कभी नहीं होनी चाहिए। इसका ज्यादा से ज्यादा प्रचार होना चाहिए।