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जगदलपुर

माओवादी मोर्चे पर डटे जवान डिप्रेशन में, 10 साल में 115 ने की आत्महत्या, साथियों पर भी दागी गोलियां, और अब….

पीएचक्यू से मिले आंकड़े के अनुसार 2007 से 2017 तक 76 राज्य पुलिस और 39 अर्धसैनिक बल के जवानों ने की खुदकुशी- 2018 के बाद से अब तक के आंकड़े मौजूद नहीं पर हर साल बढ़ रहे मामले

जगदलपुरMar 13, 2020 / 10:39 am

Badal Dewangan

माओवादी मोर्चे पर डटे जवान डिप्रेशन में, 10 साल में 115 ने की आत्महत्या, साथियों पर भी दागी गोलियां, और अब....

माओवादी मोर्चे पर डटे जवान डिप्रेशन में, 10 साल में 115 ने की आत्महत्या, साथियों पर भी दागी गोलियां, और अब….

जगदलपुर. छत्तीसगढ़ के माओवादी मोर्चे पर तैनात जवान डिप्रेशन से जूझ रहे हैं। वे अपनी सर्विस राइफल से दुश्मन की जगह खुद को गोली मार रहे हैं। साल दर साल जवानों की आत्महत्या का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है। जहां एक ओर जवान माओवादी हमले में मारे जा रहे हैं तो दूसरी तरफ उनकी मौत की प्रमुख वजह उनका डिप्रेशन में होना भी है। राज्य पुलिस मुख्यालय से पत्रिका को मिले आंकड़ों के अनुसार साल २००७ से अक्टूबर २०१७ तक ११५ जवानों ने आत्महत्या की। इनमें ७६ जवान राज्य पुलिस के तो वहीं ३९ अर्धसैनिक बल के हैं। सबसे ज्यादा आत्महत्या के मामले बस्तर संभाग से सामने आए हैं। यहां के सातों जिलों में हर साल दर्जनभर से ज्यादा जवान डिप्रेशन की वजह से मौत को गले लगा रहे हैं। पीएचक्यू के पास फिलहाल २०१७ तक के आंकड़े हैं लेकिन इसके बाद भी आत्महत्या के मामले बढ़े हैं। 2018 से अब तक 14 जवान सिर्फ बस्तर में आत्महत्या के साथ अपने साथी जवानों की हत्या कर चुके हैं।

कई अति संवेदनशील थानों और कैंप में नेटवर्क तक नहीं
दक्षिण बस्तर के ८ ऐसे थाने और कैंप हैं जहां तक पहुंचना हिमालय फतह करने के बराबर है। इन थानों तक सिर्फ हेलीकॉप्टर से पहुंचा जा सकता है। यहां जवानों को तैनाती के लिए हेलीकॉप्टर से ही पहुंचाया जाता है। उनका राशन और अन्य जरूरी सामान भी वायु सेना के हेलीकॉप्टर से भी भेजा जाता है। ऐसे इलाके में तैनात जवान अपने परिवार से महीनों बात नहीं कर पाते हैं। डिप्रेशन बढऩे का यही प्रमुख कारण होता है। अकेलेपन और माओवादी मोर्चे पर जान का खतरा उनके भीतर अवसाद की स्थिति पैदा करता है और वे आत्महत्या जैसे कदम उठाने को मजबूर हो जाते हैं। देश के लिए जान की बाजी लगाने को तैयार ये जवान हालात की दुष्वारियों से इस कदर परेशान हो जाते हैं कि अपना ही अंत कर लेते हैं।

रोड आपनिंग पार्टी लगने पर ही मिलती है छुट्टी
‘पत्रिका’ की टीम ने पिछले दिनों दंतेवाड़ा जिले के अतिसंवेदनशील कैंपों का दौरा किया था। हम अरनपुर, कमल पोस्ट, जोड़ा नाला, पोटाली-बुरगुम कैंप तक गए। वहां तैनात जवानों से कैंप के बाहर ही मुलाकात और बातचीत हुई। उन्होंने हमसे अपना अनुभव साझा करते हुए कहा कि सियाचीन से भी मुश्किल हालात में वे यहां ड्यूटी दे रहे हैं। अगर किसी के परिवार में किसी की मृत्यु भी हो जाए तो छुट्टी तब ही मिल पाती है, जब रोड ओपनिंग पार्टी लगती है। इन कैंपों में जवानों को लाने-ले जाने के लिए हेलीकॉप्टर की सुविधा भी नहीं है। वरिष्ठ अफसर ही यहां हेलीकॉप्टर से आते जाते हैं।

कैंप में पारिवारिक माहौल की जरूरत: मनोरोग विशेषज्ञ
मेडिकल कॉलेज डिमरापाल की मनोरोग विभाग की प्रमुख डॉ. वत्सला मरियम जवानों की आत्महत्या की प्रमुख वजह उनके अकेलेपन को मानती हैं। डॉ. मरियम कहती हैं कि कैंप में पारिवारिक माहौल की जरूरत है। अफसरों को चाहिए कि वे जवानों की समस्या सुनें, उनके साथ एक गार्जियन की तरह व्यवहार करें। पुलिस विभाग कुछ ऐसे विभागों में से एक है जहां तनाव अधिक होता है। माओवाद प्रभावित क्षेत्रों में तैनात जवान जो लगातार नक्सल विरोधी अभियान में रहते हैं उन्हें ज्यादा परेशानी का सामना करना पड़ता है। यह परेशानी पारिवारिक समस्याओं की जानकारी मिलने पर और बढ़ जाती है और आत्महत्या का कारण बन जाती है।

बस्तर पुलिस चला रही नो योर मैन नो योर ऑफिसर्स कैंपेन
बस्तर पुलिस जवानों का तनाव दूर करने के लिए नो योर मैन नो योर ऑफिसर्स (अपने जवान को जानो, अपने ऑफिसर्स को जानो) कैंपेन चला रही है। इसके तहत पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी जवानों के बीच जाकर उनकी समस्या पूछते हैं। जवानों से एसपी और आईजी जैसे अफसर अलग से बातचीत करते हैं ताकि जहां तक संभव हो सके उनकी परेशानी का हल निकाला जा सके। इस मुलाकात में पारिवारिक बातों पर भी चर्चा का प्रयास किया जाता है।

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