2017 में हुए इस योजना के एेलान के बाद
एेसे में अब तक खाकी और डंडे धारण कर अपनी जिम्मेदारी निभा रहे आरपीएसएफ के जवानों को गोरिल्ला वॉरफेयर की ट्रेनिंग देकर बस्तर और दंतेवाड़ा जिले में 300-300 सशस्त्र जवान तैनात करने पर सहमति बनी। वर्ष 2017 में हुए इस योजना के एेलान के बाद, बाकायदा 600 जवान बस्तर भी पहुंच गए, लेकिन अब रेलवे ने अब तक इन जवानों को ट्रेनिंग देने के लिए बस्तर पुलिस से संपर्क नहीं किया है। यही कारण है कि बस्तर पहुंचे यह 600 जवान खाली बैठे हुए हैं।
गुरिल्लावार ट्रेनिग दिए जानें के पीछे मुख्य वजह ये है
गौरतलब है कि इस्ट कोस्ट रेलवे के आइजी अतुल पाठक ने इस फैसले को लेकर कहा था कि बस्तर के माओवाद प्रभावित इलाकों में रेल सम्पति की करोड़ों रुपए के नुकसान के बाद सुरक्षा करने के लिए अब आरपीएसएफ के हाथों में हथियार थमाया जा रहा है। इस कवायद से माओवादी घटनाओं पर अंकुश लग सकेगा। आरपीएसएफ के जवानों को गुरिल्लावार ट्रेनिग दिए जानें के पीछे मुख्य वजह ये है कि बस्तर में माओवादियों द्वारा सुरक्षा बलों पर जो हमले किए गए उनमें मुख्य मकसद हथियार लूटना ही रहा है। इसके बाद बस्तर पुलिस ने अपनी तरफ से पूरी तैयारी भी कर ली थी, उन्हें कांकेर स्थित सीटीजेडब्लू में में गुरिल्ला वारफेयर के लिए ट्रेनिंग देने की भी तैयारी कर ली थी। लेकिन जैसे ही जवानों की टोली बस्तर पहुंची रेलवे ने इन पर से नजर ही हटा ली। अब आलम यह है कि बस्तर में रेलवे के 600 जवानों की भर्ती जिस उद्येश्य से की गई थी, वह पूरी ही नहीं हो पा रही है।
किरंदूल-भांसी के बीच बनेगाआरपीएसएफ का कैंप
बस्तर आइजी विवेकानंद ने बताया कि रेलवे का सबसे अधिक माओवाद प्रभावित इलाका किरंदूल से भांसी के बीच का है। अक्सर माओवादी इसी बीच घटना को अंजाम देते हैं। वहीं एक से दो बार स्टेशन पर भी हमला किया था। एेसे में यहां कैंप बनाने की योजना है। लेकिन आरपीएसएफ के जवानों को ट्रेनिंग देने के बाद ही यह संभव है।
31 से अधिक बार रेलवे ट्रैक को किया क्षतिग्रस्त
वर्ष 2018 में अब तक माओवादियों ने 31 बार रेलवे ट्रेक को नुकसान पहुंचाया है। इन नौ महीनों में कुछ बार तो डिरेल होने से ट्रेन को बचा लिया गया। लेकिन 20 से अधिक बार ट्रेन डीरेल हो गई। दोनो ही दशा में परिवहन प्रभावित हुए और करोड़ों की चपत लगी है।
साझा जिम्मेदारी से संभाल रहे रेलवे की सुरक्षा
अब तक रेलवे की सुरक्षा रेल सुरक्षा बल के साथ ही छत्तीसगढ पुलिस साझा जिम्मेदारी संभाल रही है। एेसे में रेलवे इन जवानों और कैंप के माध्यम से रेलवे की सुरक्षा कर लेती और व्यवस्था चाक चौबंद हो जाती है। वहीं दूसरी तरफ अब तक रेलवे की सुरक्षा में लगे पुलिस के जवान भी जंगलों में जाकर माओवादियों के खिलाफ मोर्चा खोलते। इससे रेलवे और माओवाद मोर्चें में फायदा मिलता।
2017 में जवान भी पहुंचे, पर उपयोगिता शून्य
इस नए योजना की घोषणा वर्ष 2017 में की गई थी, इसके बाद फरवरी से मार्च के बीच जवान बस्तर भी पहुंचे लेकिन इसके बाद से योजना ठंडे बस्ते में है। योजना के ठंडे बस्तें में जाने से रेलवे इन जवानों को हर माल लाखों रुपए वेतन दे रही है, लेकिन इसकी उपयागिता शून्य है।
छह कंपनियों के एक हजार जवान होने थे तैनात
बस्तर के रेलवे क्षेत्रों में करीब छह कम्पनियों के एक हजार आरपीएफ के जवान ये जिम्मा संभालने की बात कही गई थी। यह सभी जवान दंतेवाड़ा और बस्तर जिले के माओवाद प्रभावित इलाके में तैनात होते।
रेलवे ने अबतक ट्रेनिंग के लिए कोई सूची अब तक नहीं दी
बस्तर रेंज के आइजी विवेकानंद सिन्हा ने बताया कि, बस्तर पुलिस की तरफ से पूरी तैयारी है। लेकिन रेलवे ने अबतक ट्रेनिंग के लिए कोई सूची उन्हें अब तक नहीं दी है। सूची मिलते ही तुरंत कांकेर में इन जवानों की गुरिल्ला वॉर फेयर की ट्रेनिंग के लिए भेजा जाएगा।