सरकार को लाखों की चपत लगाने वालों को जारी हुआ नोटिस, दफ्तर के अन्य कर्मचारी भी आए लपेटे में
हम एकेडमी मामले की जांच में भी हाथ खाली
पत्रिका ने ही इसी साल फरवरी में शहर के हम एकेडमी स्कूल में अपात्रों को एडमिशन देने के मामले का खुलासा किया था। इस मामले में भी डीईओ ऑफिस की कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में आई थी। तब जांच पूरी करने में ४ महीने का वक्त लगाया गया। जांच में क्या मिला जब इस बारे में डीईओ से सवाल किया गया तो उन्होंने कह दिया जांच रिपोर्ट गोपनीय है आरटीआई लगा लें। जबकि इस मामले में सारे साक्ष्य पत्रिका ने पहले ही विभाग को उपलब्ध करवा दिए थे। ऐसा कोई नियम भी शासन ने नहीं बनाया है कि जांच रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की जए। जांच में स्कूल प्रबंधन का शिक्षा महकमे में भरपूर साथ दिया था। सहायक संचालक स्तर के एक अधिकारी को इस मामले में जांच का जिम्मा दिया गया था। इन्हीं साहब के जिम्मे फिलहाल तोकापाल सैलरी स्कैम की जांच भी है। ऐसे में ख्चर्चा ये भी है कि कहीं इस मामले को भी विभाग रफा-दफा ना कर दे।
जांच पांच दिन में ही पूरी हो गई पर फाइल आगे नहीं बढ़ाई
विभागीय सूत्र बताते हैं कि इस मामले की जांच ५ दिन के अंदर ही पूरी कर ली गई थी लेकिन जांच दल ने फाइल उच्च अधिकारियों की तरफ बढ़ाई ही नहीं। कार्रवाई के लिए डीईओ और जिला पंचायत सीईओ तक फाइल पहुंचनी थी लेकिन इन दोनों तक रिपोर्ट पहुंचाने का काम जांच दल ने किया ही नहीं। इस बीच विभाग में ये भी चर्चा है कि अगर जांच दल ने ढिलाई बरती तो विभाग के मुखिया डीईओ क्यों मौन साधे बैठे रहे।
दो साल में 23 शिक्षकों के बीच बांटे 66 लाख से ज्यादा
दो साल पहले जिला पंचायत के सीईओ प्रभात मलिक ने उन २११ शिक्षक पंचायत का डिमोशन कर दिया था जो अंग्रेजी विषय में अर्हता नहीं रखते थे। उस वक्त ५४३ शिक्षकों का प्रमोशन हुआ था, जिनमें २११ अपनी अर्हता साबित नहीं कर पाए और उनका डिमोशन हुआ। अर्हता साबित करने के लिए सभी शिक्षक पंचायत को जून २०१९ तक का वक्त सीईओ ने हाई कोर्ट के निर्देश पर दिया था। इस पूरी कार्रवाई के दौरान यानी डेढ़ वर्ष की अवधि में २११ शिक्षकों का प्रमोशन रोका गया था, सभी बीईओ से संबंधित शिक्षकों को बढ़ा हुआ वेतन नहीं देने और उन्हें पूर्व के पद पर यथावत रखने के लिए कहा गया था लेकिन जिले के ७ ब्लॉक में से तोकापाल ब्लॉक ही ऐसा था जहां सीईओ के आदेश को ताक पर रखकर शिक्षकों को प्रमोशन के आधार पर वेतन दिया जाता रहा। वेतन का बंदरबांट होता रहा और किसी को पता ही नहीं चला मामले में तत्कालीन से वर्तमान बीईओ तक वेतन का बंदरबांट करते रहे और उच्च अधिकारियों को इसकी जानकारी ही नही मिली। दोनों ही अफसर अपने वेतन आहरण अधिकारी का बेजा फायदा उठाते रहे और शासन को आधा करोड़ से ज्यादा का चूना लगा दिया।