अनिल चौबे ने भारत में फिल्मों की शुरुआत से लेकर 1965 तक की फिल्मों और गानों में छिपी एेसी सच्चाई को सामने लाने का प्रयास किया जिसे आम लोग देखकर भी अनदेखा कर देते हैं। उन्होंने कल आज और कल फिल्म के दृश्य को दिखाकर कहा कि इस फिल्म में तीन पीढि़यों की कहानी है। एेसा नहीं है कि दादा या पिता के समय फैशन नहीं था। उस जमाने में भी फैशन हुआ करता था, आज भी है और कल भी रहेगा। जेनरेशन गैप कोई चीज नहीं होती। उन्होंने एक पुरानी फिल्म का गीत सुनाया, जिसके बोल अच्छे दिन आएंगे है।
यह बात वर्तमान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कही है, लेकिन यह गीत बहुत पहले ही लिखा जा चुका है। उन्होंने1960 में बनी एक फिल्म का दृश्य दिखाया जिसमें एक व्यक्ति कह रहा है कि 10 साल हो गए हैं भारत को आजाद हुए कहां है विकास, दूसरा व्यक्ति बोलता है, आम का पौधा आप लगाए हो फल के लिए इंतजार करना होगा। आपकी पीढ़ी सुख भोगेगी, आज भी राजनेता इसी तरह के वाक्य बोलते हैं, गरीबी, बेरोजगारी पहले भी थी और आज भी है, बस उसके रूप बदल गए है। उन्होंने तकदीर, जागते रहो, मदर इंडिया, लव मैरिज, नाच घर, हम कहां जा रहे हैं, लीडर, हम सब चोर हैं, भाई-भाई फिल्म के क्लिप दिखाए। जागते रहो फिल्म के अंतिम सीन में पानी पीने के लिए गए बेरोजगार युवक को लोग चोर-चोर कह कर दौड़ा रहे हैं, फिल्म के अंतिम सीन में ही हीरो डायलोग बोलता है, हां अब मै चोर बनूंगा, लोगों को ठगूंगा।
कुलपति शैलेंद्र कुमार सिंह ने कहा कि फिल्म हमारे जीवन का महत्वपूर्ण अंग है। फिल्म समाज में संदेश पहुंचाने का सशक्त माध्यम है। अनिल चौबे ने जिस तरीके से संदेश हमे दिया है, इस तरीके से बहुत कम लोग ही बता पाते हैं। आभार प्रदर्शन आनंद मूर्ति मिश्रा ने किया। मंच संचालन तुलेंद्र कुमार वर्मा ने किया। इस अवसर पर आराधना चौबे, जिला सत्र न्यायाधीश हरिशंकर त्रिपाठी, शबाना खान, आदि उपस्थित थे।