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जगदलपुर

खतरे में बाघ ; बढ़ रहा बज़ट,सिकुड़ रहा जंगल, कम हो रहे वनराज

बस्तर के जंगल मे एक वर्ष के दौरान आधा दर्जन बाघ की खाल जब्त हुई है। यह आंकड़े बताते है कि जंगल मे वन्य प्राणियों के सरदार बाघ (टाइगर) की जान खतरे में है। शिकारी बेख़ौफ़ होकर बाघ का शिकार कर रहे हैं.

जगदलपुरMar 03, 2022 / 03:16 pm

मनीष गुप्ता

जंगलो में सुरक्षित नहीं है वन्य प्राणी

शिकारी बेख़ौफ़ होकर बाघ का शिकार कर रहे हैं.

जगदलपुर . बस्तर के जंगल मे एक वर्ष के दौरान आधा दर्जन बाघ की खाल जब्त हुई है। यह आंकड़े बताते है कि जंगल मे वन्य प्राणियों के सरदार बाघ (टाइगर ) की जान खतरे में है। शिकारी बेख़ौफ़ होकर बाघ का शिकार कर रहे हैं और वन विभाग चैन की नींद ले रहा रहा है। आलम यह है कि बाघ के संरक्षण के लिए इंद्रावती नेशनल पार्क को टाइगर रिजर्व घोषित किया गया है। इसके लिए बाकायदा पृथक से बजट की भी मंजूरी होती है लेकिन सर्वाधिक शिकार इंद्रावती टाइगर रिजर्व मे ही हो रहा है। कुछ मामलों में वन एवं पुलिस कर्मियों की भी संलिप्तता प्रमाणित हुई है। पिछले एक दशक में छत्तीसगढ़ के विभिन्न हिस्सों में बाघ की 29 खालें जब्त हुई हैं। जिसमे 14 से अधिक खाल बस्तर संभाग के विभिन्न इलाकों में पकड़ी गईं हैं।
शिकारियों के खिलाफ मजबूत पैरवी नही
वन विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी की मानें तो छग राज्य निर्माण के बाद से एक भी शिकारी को अब तक कोर्ट से सजा नही हुई है इससे पता चलता है कि वन विभाग कितना लापरवाह है। वन्य प्राणियों के शिकार के कई मामलो में वन विभाग की दलील और साक्ष्य कमज़ोर होने के कारण निचली अदालत में केस हार जाने के बाद विभाग ऊपरी अदालत में अपील तक नही कर पाया है। वन अफसरों की उदासीनता का आलम यह है कि कुछ इलाकों में इन मामलों की पैरवी के लिए सरकारी वकीलों पर निर्भर रहते हैं। जबकि विशेष पैरवी के लिए एक्ट में अलग से अधिवक्ता की मदद लेने का प्रावधान भी है ।
500 वर्ग किमी होता है एक बाघ का रहवास
यूं तो वनराज का रहवास पूरा जंगल माना जाता है। किन्तु विशेषज्ञों के मुताबिक एक बाघ का न्यूनतम रहवास 500 वर्ग किमी माना जाता है। पूर्व के वर्षों में बीजापुर का कुटरू-सेंड्रा वर्तमान में इंद्रावती नेशनल पार्क और बस्तर का माचकोट जंगल आखेट के लिए प्रसिद्ध थे। जानकारों के मुताबिक 1950 से 70 के दशक में महाराष्ट्र के मुम्बई से भी कुछ शिकारी कुटरू इलाके में शिकार के लिए आते थे। यहां बड़ी संख्या में शेर-बाघ हुआ करते थे। वाइल्डलाइफ एक्ट लागू होने के बाद यह परंपरा बंद हो गई पर चोरी छिपे शिकार अब भी जारी है । इस इलाके को टाइगर रिजर्व घोषित किए जाने के बावजूद यहाँ वनों की अवैध कटाई, शिकार और संरक्षित क्षेत्र में दो दर्जन से अधिक गाँव की बसाहट वन्यजीवों की आज़ादी में बड़ी बाधा है साथ ही नक्सलियों की मौजूदगी के चलते इलाके का पर्याप्त संरक्षण नही हो पाता है।
बाघों की संख्या को लेकर भ्रम
वर्ष 2014 में हुई बाघों की गणना में छत्तीसगढ़ में 46 बाघ होने दावा वन विभाग ने किया था। इसके पश्चात 2018 में राज्य सरकार ने राज्य में कुल 19 बाघ होने की पुष्टि की थी। इसके बाद से अब तक बस्तर में ही 6 बाघ की खाल की जब्ती के मामले सामने आए हैं। यदि सरकारी आंकड़े सही है तो राज्य में अब 13 बाघ होने चाहिए जो कि वर्ष 2014 के 46 के आंकड़े से 33 कम हंै। इन आठ वर्षों में बाघों की संख्या में इतनी कमी पाया जाना वन विभाग की घोर लापरवाही दर्शाता है।
नक्सल प्रभावित है इंद्रावती रिजर्व
छतीसगढ़ में इंद्रावती, उदंती-सीतानदी और अचानकमार तीन टाइगर रिजर्व हंै। लेकिन हाल ही में गुरुघासी दास टाइगर रिजर्व को राज्य का चौथा टाइगर रिजर्व घोषित किया गया है। वर्ष 1983 में इंद्रावती नेशनल पार्क को टाइगर रिजर्व घोषित किया गया था। तब से इसका पूरा इलाका नक्सल प्रभावित है यही कारण है वन अफसर-कर्मी अंदर जाते ही नही हंै। विभाग की गतिविधियां कागजों तक ही सीमित होकर रह गई हैं।
400 करोड़ का बजट 2020-21 में
नेशनल टाइगर कंजर्वेशन एथॉरिटी ( एनटीसीए ) बाघों के सरक्षण के लिए हर साल अपना बज़ट बढ़ा रहा है पर बावजूद इसके बाघों की संख्या में लगातार कमी आ रही है जारी ताजा आंकड़ो के मुताबिक वर्ष 2008 से 2023 तक देश मे 447 बाघों की मौत हुई है। बाघों के संरक्षण हेतु एनटीसीए वर्ष 2016-17 में जहां 348 करोड़, 2017-18 में 354, 2018-19 में 363 करोड़, 2019-20 में 280 तथा 2020-21 में 400 करोड़ का बजट मंजूर किया गया है।
बस्तर संभाग में जब्त बाघ की खाल
07 फरवरी 2021 को बस्तर में
24 जनवरी 2021 को आमाबेड़ा
11 मार्च 2021 को जगदलपुर
15 जून 2021 को बस्तर
21 अगस्त 2021 को पखांजुर
1 अगस्त 2021 को चन्दूर ( तारलागुड़ा)
18 दिसम्बर 2019 कांकेर
28 अप्रैल 2017 भानुप्रतापपुर
21 अप्रैल 2016 कोंडागांव
6 जनवरी 2016 भानुप्रतापपुर

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