हरिसिंह के पुत्र जयेन्द्रसिंह गलथनी के अनुसार, मृत्यु से पहले वर्ष 2003 में उनके पिता अक्सर अपने युद्ध अभियानों का जिक्र करते थे। उसमें पाकिस्तान फतह को वे बहुत गर्व से सुनाते थे। दूसरे विश्वयुद्ध में हरिसिंह ने ईरान में भारतीय सेना का नेतृत्व किया। हरिसिंह के भतीजे मानसिंह देवड़ा बताते हैं कि बचपन से बड़े पिताजी भारतीय सेना की उपलब्घियां बताते थे और कहते थे कि कुछ कारणों से हमें वापस लौटना पड़ा अन्यथा आज भारत की सीमा लाहौर से भी आगे तक होती।
सिंह की डायरी के अंशों के अनुसार वे उन दिनों सियालकोट में एक मुस्लिम टुकड़ी का नेतृत्व कर रहे थे। उनकी टुकड़ी खेमकरण सेक्टर के बर्की पुलिस स्टेशन को फतह कर इच्छोगिल नहर तक पहुंची तो एक वायरलैस मैसेज से पता चला कि वे पाकिस्तान में बहुत आगे तक पहुंच चुके हैं और दोनों ओर से पाक सेना से घिर चुके हैं। सूबेदार अयूब खां (जो बाद में सांसद बने) के सहयोग से आर्टीलरी फायर खोल दिया।
करो या मरो की स्थिति में लेफ्टिनेंट कर्नल देवड़ा ने अपनी खुली रॉवर जीप में सवार होकर टुकड़ी का हौसला बढ़ाया। वहां 18 कैवेलरी के दस्ते ने 13 टैंक नष्ट किए। पाकिस्तान की इच्छोगिल नहर के पास पहुंचने वाले पहले भारतीय सैन्य अधिकारी देवड़ा ने बर्की पुलिस स्टेशन लाहौर को अपने कब्जे में कर तिरंगा फहराया। इसी के चलते उन्हें गैलेन्ट्री प्रमोशन दिया। देवड़ा की रॉवर जीप आज भी 18 कैवेलरी मुख्यालय की शोभा बढ़ा रही है। अप्रतिम शौर्य के लिए सूबेदार अयूब खां को वीर चक्र दिया गया।