जयपुर

Navratri 2020 Day 6 Maa Katyayani Puja विज्ञान—शोध की देवी हैं कात्यायनी पर बढ़ाती हैं प्रेम, कृपा पाने के लिए ऐसे करें स्तुति

उनका दिव्य स्वरूप है। सिंह पर सवार माता कात्यायनी की चार भुजाएं हैं। मां के एक हाथ में तलवार है व एक अन्य हाथ में कमल का फूल रहता है। ऊपर वाला एक हाथ अभयमुद्रा में है तथा नीचे वाला एक हाथ वर मुद्रा में रहता है। मां कात्यायनी अमोघ फलदायिनी हैं। माता अपने सच्चे उपासक को परम पद दे देती हैं।

जयपुरOct 22, 2020 / 06:36 am

deepak deewan

6th Day Of Navratri 2020 Maa Katyayani Puja Vidhi

जयपुर. मां दुर्गा का छठा स्वरूप माता कात्यायनी जिनकी पूजा नवरात्रि के छठे दिन की जाती है। महर्षि कात्यायन की पुत्री होने के रूप कारण देवी कात्यायनी कहलाती हैं। महिषासुर नामक राक्षस का अत्याचार बहुत बढ़ जाने के बाद ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने अपने सम्मिलित तेज से देवी कात्यायनी को उत्पन्न किया था। माता कात्यायनी ने महिषासुर का वध कर दिया।
ज्योतिषाचार्य पंडित सोमेश परसाई बताते हैं कि उनका दिव्य स्वरूप है। सिंह पर सवार माता कात्यायनी की चार भुजाएं हैं। मां के एक हाथ में तलवार है व एक अन्य हाथ में कमल का फूल रहता है। ऊपर वाला एक हाथ अभयमुद्रा में है तथा नीचे वाला एक हाथ वर मुद्रा में रहता है। मां कात्यायनी अमोघ फलदायिनी हैं। माता अपने सच्चे उपासक को परम पद दे देती हैं।
वर्तमान के युग में मां कात्यायनी का सर्वाधिक महत्व है। ज्योतिषाचार्य पंडित नरेंद्र नागर के अनुसार इसकी अहम वजह भी है. यह युग वैज्ञानिक युग माना जाता है और मां कात्यायनी विज्ञान—शोध की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं। शोधकार्य करना इनका प्रमुख गुण माना गया है। इसीलिए खासतौर पर युवाओं को माता कात्यायनी की उपासना जरूर करना चाहिए।
विशेष बात यह है कि मां कात्यायनी प्रेमल हैं, पति—पत्नी, प्रेमी—प्रेमिका में परस्पर प्यार बढ़ाती हैं. कृष्ण को पति के रूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने यमुना तट पर माता कात्यायनी की ही आराधना की थी। यही कारण है कि मां कात्यायनी ब्रज की अधिष्ठात्री देवी मानी गई हैं. कात्यायनी माता की पूजा से सभी दुख दूर हो जाते हैं।
मंत्र:
1.
या देवी सर्वभूतेषु मां कात्यायनी रूपेण संस्थिता
नमस्तमै, नमस्तमै, नमस्तमै नमो नम:
2.
मंत्र – ॐ देवी कात्यायन्यै नमः॥
3.
मंत्र – ‘ॐ ह्रीं नम:।।
4.
चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानव-घातिनी॥

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