दरअसल, राष्ट्रीय कृषि आयोग के मुताबिक 5 हजार पशुओं पर एक वेटरनरी आॅफिसर यानि एक पशुचिकित्सक होना चाहिए। वर्ष 2012 की पशुगणना के मुताबिक राज्य में 5 करोड़ 77 लाख से अधिक पशुधन है। इस हिसाब से राज्य में वेटरनरी चिकित्सकों के 11 हजार से अधिक पद होने चाहिए। लेकिन राज्य में पशुचिकित्सकों के सिर्फ 1914 पद ही स्वीकृत हैं। यानि जरूरत के हिसाब से काफी कम पद स्वीकृत है। इनमें से भी आधे से अधिक पद खाली पड़े हुए हैं। ऐसे में राज्य में कार्यरत पशुचिकित्सकों के कंधों पर पशुधन के उपचार का पहले ही काफी भार है। रही सही कसर अब सरकार की ओर से घोषित की गई 900 पशुचिकित्सकों की भर्ती की प्रक्रिया पिछले डेढ साल से शुरू ही नहीं होे पाने से बिगड़ गई है।
राज्य सरकार ने पिछले साल 900 वेटरनरी आॅफिसर्स की भर्ती की घोषणा बजट में की थी। इसके लिए वित्तीय स्वीकृति भी मिल चुकी है। लेकिन भर्ती नियमों में बदलाव की फाइल इधर उधर धक्के खाने के कारण अभी तक भर्ती प्रक्रिया शुरू ही नहीं हो पा रही है। पशुपालन विभाग ने लिखित परीक्षा के आधार पर भर्ती का प्रस्ताव भिजवाया हुआ है लेकिन आरपीएससी की ओर से बार बार आपत्तियां लगाने से नियमों में संशोधन की प्रक्रिया पूरी ही नहीं हो पा रही है।
फाइल ऐसे हो रही चक्करघिन्नी
पिछले साल अप्रेल में पशुपालन विभाग ने लिखित परीक्षा के आधार पर भर्ती का प्रस्ताव बनाने की प्रक्रिया शुरू की। इसके बाद इसे कई विभागों से अनुमोदित करवाते हुए इस साल 5 फ़रवरी 2018 को आरपीएससी भिजवाया गया। एक महीने के बाद 7 मार्च को आरपीएससी ने सिर्फ 4 प्रश्न के जवाब विभाग से मांगे। करीब तीन महीने के बाद 7 जून पशुपालन विभाग ने जवाब भिजवाए। 18 जून आरपीएससी में इस फाइल पर चर्चा हुई। 20 जून को भर्ती लिखित आधार पर होने की के लिए सहमत होने की खबर सामने आई। 25 जून को चर्चा में फिर से आरपीएससी ने फाइल लौटाते हुए दो बिंदुओं पर जवाब मांगा। 5 जुलाई को पशुपालन विभाग के अफसर फिर से आरपीएससी में चर्चा के लिए गए।