अंदर 25-27 साल की एक महिला की गोद में मासूम सी बच्ची दुबकी हुई बैठी थी। बच्ची की उम्र मुश्किल से चार साल होगी। बच्ची से नाम पूछा तो वह मां के गले लग गई। अगले पांच-सात मिनट बच्ची को मोबाइल पर गेम खिलाया। तब जाकर वह सामान्य हुई। तभी बच्ची से फिर पूछा, बेटा क्या नाम है आपका। इस बार बच्ची तुतलाते हुए अपना नाम बताया। मां ने बताया, उस दरिंदे ने इसकी जीभ पर चाकू से काटा है, ताकि यह किसी को कुछ बता ना सके। इतने में बच्ची ने जीभ दिखा दी। जीभ पर बाहर करीब आधे सेंटीमीटर का कट था। उसे देखकर मेरी रूह कांप गई। जो मैं देख नहीं पा रही थी। पता नहीं, उस बच्ची ने सहा कैसे होगा।
बच्ची की मां ने बोली, बारह दिन हो गए। डॉक्टरों ने अस्पताल से छुट्टी देकर घर भी भेज दिया। मगर रोज रात को डर के मारे बुखार हो जाता है। जो सारा दिन खेलती रहती थी, वह अगले एक महीने तक पलंग से उतर भी नहीं सकती। डॉक्टरों ने टांके लगाए हैं और चलने को मना किया है। दूसरे बच्चों से दूर रखने को कहा है। मैंने पूछा, बाहर खेलने चलें। तुतलाते हुए वह बोली, नहीं बाहर वो आ जाएगा। कौन आ जाएगा? बच्ची ने कहा दादा का दोस्त, जो गाड़ी पर मौजी खिलाने ले गया था। उसने मारा। इतना बोलकर बच्ची चुप हो गई।
कुछ देर बाद बच्ची की मां बोली, इस साल यह यूकेजी में जाती। अब तो एक-दो महीने स्कूल नहीं जा जाएगी। घटना वाले दिन की बात बताते हुए वह बोली, रात के करीब 11 बजे थे। घर में सभी बच्चे सोने लगे थे, लेकिन बेटी कहीं दिखी नहीं। चाचा, दादी सबके कमरे में देखा, कही नहीं दिखी। तभी पास वाली भाभी ने बताया कि बच्ची किसी मोटरसाइकिल वाले से बात कर रही थी। दो घंटे तक हम लोग यहां-वहां देखते रहे। रात दो बजे देखा बेटी खुद चौराहे की तरफ से घर आ रही थी। इसके जख्म देखकर सब कुछ समझ आ गया। पहले चार-पांच दिन कांवटिया अस्पताल में रखा, फिर जेकेलॉन में।
पुलिस के अलावा कोई नेता या अधिकारी मिलने नहीं आया। तीन दिन पहले जब एक दूसरी बच्ची को भी मोटरसाइकिल वाला ले गया और लोगों एकत्र हो गए तो उससे मिलने नेता, मंत्री सब मिलने चले गए। हमने सिर्फ एफआइआर करवाई, शोर नहीं मचाया तो हमारी कोई सुनता ही नहीं। न कोई सांत्वना देने आया न मुआवजा। बच्ची की मां ने कहा, बस मैं यहीं चाहती हूं कि उस दरिंदे को कड़ी से कड़ी सजा मिले, उसे फांसी पर लटकाया जाए।