एबीवीपी एनएसयूआई में टिकिट वितरण की माथापच्ची,अपनों का ही सता रहा ड़र
तीन साल से छात्र संगठनों से बागी हुए प्रत्याशियों नेनहीं होने दिया एबीवीपी एनएसयूआई को सत्ता पर काबिज
ldc recruitment examination process can not be completed even till the code of conduct is complete
जयपुर
प्रदेश में 27 अगस्त को होने वाले छात्रसंघ चुनावों को लेकर छात्र संगठनों में टिकिट वितरण को लेकर माथापच्ची शुरू हो गई हैं। दोनों ही छात्र संगठनों को आपस में प्रतिद्वंद्वी संगठन से हार का खतरा नहीं बल्कि अपनों का ही ड़र सता रहा हैं। यही कारण है कि इस बार छात्र संगठन एबीवीपी और एनएसयूआई ऐसे समीकरण बैठाकर टिकिट वितरण करने के लिए माथापच्ची में जुटे है जिससे कि फिर कोई अपने ही संगठन के किसी बागी से हार से सामना नहीं करना पड़े। गत तीन सालों से टिकिट वितरण के बाद अपने प्रत्याशियों को जीताने में नाकाम रहे एबीवीपी और एनएसयूआई इस बार भी बागियों से मुकाबले की रणनीति को बनाकर टिकिट वितरण करने पर विचार कर रहे है। जिससे की गत तीन सालों में अपनों से ही मिली हार को फिर से नहीं झेलना पड़े। राजस्थान विश्वविद्यालय के गत छात्रसंघ चुनावों में एनएसयूआई की टिकिट कटने से नाराज हुए विनोद जाखर ने बागी होकर चुनाव लड़ा और एनएसयूआई को सत्ता में काबिज नहीं होने दिया। वहीं इससे पहले 2017.18 के चुनावों में एबीवीपी के बागी पवन यादव ने एबीवीपी प्रत्याशी संजय को हराकर निर्दलीय अध्यक्ष बन संगठन से सत्ता को छीन लिया था। तो इससे पहले भी 2016.17 में ऐसा ही हुआ और टिकिट कटने से नाराज होकर निर्दलीय चुनाव लड़े एबीवीपी के बागी अंकित ने एबीवीपी के अखिलेश को हराकर सत्ता पर कब्जा किया था। लगातार तीन साल से हार झेल रहे छात्र संगठन अब टिकिट वितरण से पहले फुंक फुंक कर कदम रख रहे है जिससे की किसी अपने से ही फिर हार का सामना नहीं करना पड़े।
कल तक घोषित करनी होगी टिकिट
22 अगस्त को सुबह 10 से दोपहर 3 बजे तक नामांकन भरे जाएंगे। इससे लिए आज दोनों ही संगठन नामों पर विचार करेगा और नामांकन भरने से पहले अब उसे कल रात तक हर हाल में टिकिट घोषित करनी होगी। आज टिकिट वितरण को लेकर छात्र संगठनों में बैठकों का दौर चलेगा। वहीं एनएसयूआई ने अपने संभावित प्रत्याशियों को आज अपने समर्थकों के साथ बुलाया है। इस बार समर्थक बाहरी नहीं होंगे बल्कि टिकिट के दावेदारों को उन्ही समर्थकों को साथ लाना होगा जो विश्वविद्यालय के वोटर है और जिनके पास आईकार्ड हैं। पहने महाविद्यालयों में और फिर विभागों में दावेदारों को अपने पदाधिकारियों के सामने आईकार्ड वाले वोटर्स के साथ ताकत दिखानी होगी। जिससे की एक अंदाजा लगाया जा सके कि किसके पास कितने वोट है और कौनसा दावेदार टिकिट देने पर संगठन को जीत दिला सकता हैं।