अजमेर दरगाह बम विस्फोट: दोषियों की सजा स्थगित, जेल से बाहर आएंगे
— हाईकोर्ट ने देवेन्द्र गुप्ता और भावेश पटेल की अपील पर दिया आदेश
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हाईकोर्ट ने अजमेर दरगाह बम विस्फोट के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे देवेंद्र गुप्ता और भावेश अरविन्द भाई पटेल की सजा को स्थगित कर दिया है। इससे दोनों जेल से बाहर आ सकेंगे।
न्यायाधीश मनीष भण्डारी व न्यायाधीश दिनेश चन्द्र सोमानी की खण्डपीठ ने दोनों की अपील व सजा स्थगित करने के लिए पेश प्रार्थना पर गुरुवार को यह आदेश दिया। देवेन्द्र गुप्ता व भावेश अरविन्द भाई पटेल दोनों को जयपुर स्थित एनआइए मामलों की विशेष अदालत ने 8 मार्च 17 को दोषी मान लिया था और 22 मार्च 17 को दोनों को उम्रकैद की सजा दी गई थी। विशेष अदालत ने इसी मामले में सात जनों को अभियुक्त मानने से इंकार करते हुए दोषमुक्त कर दिया था। हालांकि एन आई ए ने नो जनों के खिलाफ चार्जशीट पेश की थी।
सुनवाई में समय लगेगा, इसलिए सजा स्थगित
कोर्ट ने कहा कि अपील पर सुनवाई में समय लगेगा और सजा आशंका पर आधारित है। ठोस साक्ष्य होने पर ही सजा दी जा सकती है। कोर्ट ने सजा स्थगित करते हुए दोहराया कि भावेश अरविन्द भाई पटेल को केवल दो दिन तक मोबाइल बंद रहने के कारण लिप्त माना गया और वह साढ़े पांच साल गायब रहा। इसी तरह देवेन्द्र गुप्ता को उसके नाम वाले फर्जी ड्राइविंग लाइसेंस से सिम खरीदने के आधार पर दोषी माना गया है। कोर्ट ने अपीलार्थी पक्ष की ओर से इन बिन्दुओं को लेकर उठाए सवालों को गंभीर मानते हुए राहत दी है।
अपीलार्थियों ने कहा—पुख्ता प्रमाण नहीं है, इसलिए सजा निरस्त हो
अपीलार्थियों की ओर से अधिवक्ता मनोज शर्मा, जे एस राणा व अभिषेक शर्मा ने हाईकोर्ट को बताया कि अजमेर दरगाह बम ब्लास्ट मामले में देवेन्द्र गुप्ता और भावेश पटेल को सजा के पर्याप्त प्रमाण नहीं है। केवल मात्र आशंका के आधार पर दोषी करार दिया गया था, जबकि संदेह का लाभ तो आरोपित को मिलना चाहिए। भावेश को केवल इसलिए सजा दी गई कि घटना के समय 10 अक्टूबर से 12 अक्टूबर 2007 तक उसका फोन बंद रहा और साढ़े पांच साल तक गायब रहा। अपीलार्थी पक्ष का तर्क था कि कोर्ट में अभियोजन पक्ष फोन घटना में लिप्त होने के कारण बंद होने की बात को साबित नहीं कर पाया। वहीं दरगाह के पास मिली सिम देवेन्द्र गुप्ता के नाम वाले ड्राइविंग लाइसेंस के आधार पर लेना सामने आया है, जो लाइसेंस फर्जी था। इस सिम के इस्तेमाल का प्रमाण नहीं है और यह सिम भी बाबूलाल यादव के नाम से खरीदी गई। यह भी प्रमाणित नहीं है कि फर्जी वाहन लाइसेंस आरोपी ने ही तैयार किया।
एनआइए ने कहा— सजा के लिए प्रमाण पर्याप्त हैं
एनआइए की ओर से अधिवक्ता अश्विनी शर्मा ने सजा स्थगन प्रार्थना का विरोध करते हुए कहा कि सजा प्रमाण के आधार पर दी गई है, जो अपराध से जोड़ने के लिए काफी हैं। भावेश का सीआरपीसी की धारा 164 के तहत बयान दर्ज किया गया, लेकिन उसे तकनीकी आधार पर दरकिनार किया गया। उस बयान में जुर्म स्वीकार किया गया। इस घटना में तीन लोगों की मौत हुई और कई लोग घायल हुए। ऐसे में सजा स्थगित करना उचित नहीं होगा।
दो बम थे, एक बम फट गया था
अजमेर दरगाह परिसर में 11 अक्टूबर 2007 को बम ब्लास्ट हुआ। इसमें हैदराबाद के तीन जायरीनों की मौत हो गई और 15 से अधिक लोग घायल हो गए थे। इस मामले की पहले सीबीआइ और एटीएस ने जांच की, फिर जांच एनआइए को सौंप दी गई। इस मामले में 9 लोगों के खिलाफ आरोप पत्र पेश किए गए।
घटनाक्रम
11 अक्टूबर 2007— अजमेर दरगाह परिसर में विस्फोट
8 मार्च 2017— एनआइए विशेष न्यायालय ने भावेश अरविन्द भाई पटेल, देवेन्द्र गुप्ता और सुनील जोशी को दोषी करार दिया।
22 मार्च 2017— भावेश पटेल व देवेन्द्र गुप्ता को उम्रकैद की सजा, लेकिन सुनील जोशी की पूर्व में ही मृत्यु हो गई थी।
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