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जयपुर

climate change: रहने लायक नहीं बचेगा अंडमान निकोबार

2100 तक 1 मीटर बढ़ सकता है समुद्र का स्तर : संयुक्त राष्ट्रअंडमान निकोबार, मालदीव को कराना पड़ेगा खालीतूफान और अल नीनो का ज्यादा खतराप्रकृति और मानवता के लिए एक गंभीर खतरायूएन ने दी चेतावनी

जयपुरSep 26, 2019 / 07:12 pm

Rakhi Hajela

climate change: रहने लायक नहीं बचेगा अंडमान निकोबार

climate change: रहने लायक नहीं बचेगा अंडमान निकोबार

संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक जलवायु परिवर्तन के कारण अंडमान और निकोबार जैसे द्वीप समुद्र के स्तर में हो रही वृद्धि और चक्रवात जैसी घटनाओं में वृद्धि के कारण कुछ वर्षों बाद रहने लायक नहीं बचेंगे। अगर जलवायु परिवर्तन का वर्तमान रुझान लगातार बिना रुकावट के जारी रहा तो समुद्र का स्तर एक मीटर तक बढ़ सकता है और लाखों लोगों को 2100 तक पलायन करने को मजबूर होना पड़ सकता है।
जलवायु परिवर्तन पर अंतरसरकारी समिति के कड़े निष्कर्ष में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित नहीं किया गया तो समुद्र के जलस्तर में 30 से 60 सेमी के बीच में बढ़ोतरी होगी और वैश्विक तापमान पूर्व औद्योगिक स्तर से दो डिग्री सेल्सियस ऊपर हो जाएगा। हालांकि, वैश्विक तापमान से निपटने में विफल रहने पर समुद्र स्तर 110 सेमी तक बढ़ सकता है। इस विश्लेषण को यूएन समर्थित समिति ने पेश किया है, जिसे मोनाको में प्रस्तुत किया गया। इसमें कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन ने समुद्र का तापमान बढ़ाया है और उसे ज्यादा अम्लीय व कम उर्वर बनाया है। इसका मतलब है कि मौसम संबंधी घटनाएं जैसे तूफान व अल नीनो ज्यादा गंभीर हो गए हैं और बार.बार आने लगे हैं। इस रिपोर्ट पर 36 देशों के 100 से ज्यादा लेखकों ने शोध किया है और 7000 से ज्यादा वैज्ञानिक प्रकाशन इसके स्रोत है। समुद्र व धरती का वह हिस्सा जहां बरफ होती है, के दायरे में बदलाव को लेकर काफी व्यापक है। आईपीसीसी के वाइस चेयर को बैरेट ने कहा, दुनिया का सागर व क्रायोस्फीयर दशकों से जलवायु परिवर्तन से गर्म हो रहा है और इसका मानव व प्रकृति पर गंभीर असर होगा।
अंडमान निकोबार, मालदीव को कराना पड़ेगा खाली
जलवायु परिवर्तन के कारण अंडमान और निकोबार जैसे द्वीप समुद्र के स्तर में हो रही वृद्धि और चक्रवात जैसी घटनाओं में वृद्धि के कारण कुछ वर्षों बाद रहने लायक नहीं बचेंगे। अंडमान और निकोबार, मालदीव जैसे द्वीपों को खाली करना होगा। समुद्र के बढ़ते स्तर के कारण लोगों को वहां से पलायन करना पड़ेगा। वहीं, महासागरों के गर्म होने से भारत में चक्रवात जैसी जलवायु घटनाओं की गंभीरता बढ़ जाएगी।
तूफान और अल नीनो का ज्यादा खतरा
संयुक्त राष्ट्र समर्थित पैनल द्वारा मोनाको में प्रस्तुत किए गए विश्लेषण में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन ने समुद्र के तापमान को बढ़ा दिया है, जिससे वे ज्यादा एसेडिक, कम उपजाऊ हो गए हैं। साथ ही तूफान और अल नीनो जैसे मौसम संबंधी घटनाओं के और घातक होने का खतरा बढ़ गया है।
प्रकृति और मानवता के लिए एक गंभीर खतरा

इस रिपोर्ट को तैयार करने में 36 देशों के 100 से अधिक लेखकों और 7ए000 से अधिक वैज्ञानिक प्रकाशनों के स्रोतों द्वारा शोध कर तैयार किया गया है। आइपीसीसी के वाइस चेयरमैन को बैरेट ने कहा कि दुनिया के महासागर दशकों से जलवायु परिवर्तन से गर्मी ले रहे हैं। जो की प्रकृति और मानवता के लिए एक गंभीर खतरा है। महासागर में तेजी से बदलाव और हमारे धरती के जमे हुए हिस्से दूरदराज के आर्कटिक समुदायों के लोगों को मौलिक रूप से उनके जीवन के तरीकों को बदलने के लिए मजबूर कर रहे हैं।
बदलावों से पानी की गुणवत्ता प्रभावित
चेंजिंग क्लाइमेट में ओशन एंड क्रायोस्फीयर पर विशेष रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर जलवायु परिवर्तन वर्तमान गति से बढ़ता रहा तो यूरोप, पूर्वी अफ्रीका के ग्लेशियर, एंडीज और इंडोनेशिया की उष्णकटिबंधीय सदी के अंत तक अपने द्रव्यमान का 80 प्रतिशत खो सकते हैं। इस तरह के बदलावों से पानी की गुणवत्ता, कृषि, पर्यटन और ऊर्जा उद्योग प्रभावित होगा।
पर्वतीय क्षेत्रों में रहने वाले लोगों पर खतरा
आइपीसीसी ने निष्कर्ष निकाला है कि महासागरों ने 1980 के दशक से वैश्विक गैस उत्सर्जन का एक चौथाई हिस्सा अवशोषित किया हैए जिससे उन्हें अधिक एसेडिक बना दिया है। वैज्ञानिकों के पैनल ने यह भी चेतावनी दी थी कि आर्कटिक के बर्फ में कमी आ रही है। समुद्र का बढ़ता स्तर और बर्फ पिघलना विशेष रूप से पर्वतीय क्षेत्रों में रहने वाले 670 मिलियन लोगों, 680 मिलियन निचले इलाकों में रहने वाले लोगोंए चार मिलियन आर्कटिक क्षेत्रों में रहने वाले और 65 मिलियन छोटे द्वीपों पर रहने वाले लोगों के जीवन को प्रभावित करेगा।

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