अमरीकन सेटेलाइट भारत पर खास नजरें गड़ाएं हुईं थी, लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में कलाम और उनकी टीम ने इस ऑपरेशन को ऐसे अंजाम दिया कि अमेरिका सहित पूरी दुनिया आवाक रह गई थी। इसका नाम दिया गया था ऑपरेशन शक्ति।
मरुधरा से हुए इस परीक्षण ने हिंदुस्तान के इतिहास में देशवासियों का मान पूरी दुनिया में न सिर्फ मान बढ़ाया बल्कि अपनी मौजूदगी भी दर्ज कराई थी। दरअसल, 11 और 13 मई, 1998 को राजस्थान के पोरखरण परमाणु स्थल पर पांच परमाणु परीक्षण हुए थे।
इनमें 45 किलोटन का एक फ्यूजन परमाणु उपकरण शामिल था। इसे आमतौर पर हाइड्रोजन बम के नाम से जाना जाता है। 11 मई को हुए परमाणु परीक्षण में 15 किलोटन का विखंडन (फिशन) उपकरण और 0.2 किलोटन का सहायक उपकरण शामिल था।
जब राजस्थान के पोखरण में परमाणु बम फट रहे थे ताे अटल बिहारी वाजपेयी क्या कर रहे थे? इन परमाणु परीक्षण के बाद जापान और संयुक्त राज्य अमरीका सहित प्रमुख देशों द्वारा भारत के खिलाफ विभिन्न प्रकार के प्रतिबंधों लगाए गए थे। भारत सरकार ने पांच परमाणु परीक्षण की ऐतिहासिक 11 मई की तारीख को आधिकारिक तौर पर भारत में राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस के रूप में घोषित किया।
इसे आधिकारिक तौर पर 1998 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा हस्ताक्षरित किया गया और दिन को विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विभिन्न व्यक्तियों और उद्योगों को पुरस्कार देकर मनाया जाता है।
2015 में सामने आई थी अटल बिहारी वाजपेयी की आखिरी तस्वीर भारतीय खुफिया एजेंसी अमरीकी जासूसी उपग्रहों के प्रति जागरूक थी और सीआइए 1995 के बाद से ही भारतीय टेस्ट की तैयारियों का पता लगाने की कोशिश कर रही थी। लिहाजा, परीक्षण को भारत में पूर्ण गोपनीय रखा गया ताकि अन्य देशों द्वारा पता लगाने की संभावना से बचा जा सके।
भारतीय सेना के कोर इंजीनियर्स की 58वें इंजीनियर रेजिमेंट को बिना अमरीकी जासूसी उपग्रहों द्वारा नजर में आए परीक्षण साइटों को तैयार करने के लिए नियुक्त किया गया। इंजीनियर के कमांडर कर्नल गोपाल कौशिक ने परीक्षण की तैयारी की देखरेख की और अपने स्टाफ अधिकारियों को गोपनीयता सुनिश्चित करने के लिए सभी उपाय करने का आदेश दिया।
व्यापक योजना को वैज्ञानिकों, वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों और वरिष्ठ नेताओं के एक बहुत छोटे समूह के द्वारा तैयार किया गया। जिससे यह सुनिश्चित किया गया कि परीक्षण की तैयारी रहस्य बनी रहे और यहां तक की भारत सरकार के वरिष्ठ सदस्यों को भी पता नहीं था कि क्या हो रहा था।
मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार और डीआरडीओ के निदेशक, डॉ अब्दुल कलाम और परमाणु ऊर्जा विभाग के निदेशक, डॉ आर चिदंबरम, इस परीक्षण की योजना के मुख्य समन्वयक (कोओरडीनेटर) थे। परीक्षण के बाद किसने क्या कहा-
संयुक्त राज्य अमरीका ने एक सख्त बयान जारी करते हुए भारत की निंदा की थी। साथ ही वादा किया था कि प्रतिबंधों को भी लगाया जाएगा। कनाडा ने भारत की सख्त आलोचना की। भारत पर जापान ने भी प्रतिबन्ध लगाए गए और भारत पर मानवीय सहायता के लिए छोड़कर सभी नए ऋण और अनुदानों को रोक दिया। कुछ अन्य देशों ने भी भारत पर प्रतिबंध लगा दिए। मुख्य रूप से गवर्नमेंट टू गवर्नमेंट क्रेडिट लाइनों और विदेशी सहायता के निलंबन के रूप में। हालांकि, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस ने भारत की निंदा से परहेज किया।
चीन जतार्इ थी चिंता
12 मई को चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा कि चीनी सरकार गंभीरता से भारत द्वारा किए गए परमाणु परीक्षण के बारे में चिंतित है। परमाणु परीक्षण वर्तमान अंतरराष्ट्रीय प्रवृत्ति के लिए और दक्षिण एशिया में शांति और स्थिरता के लिए अनुकूल नहीं हैं। अगले दिन चीन के विदेश मंत्रालय के एक बयान ने स्पष्ट रूप से बताते हुए कहा कि यह हैरानी की बात है और हम इसकी निंदा करेंगे।
पाकिस्तान काे आया गुस्सा
भारत के परमाणु परीक्षण पर सबसे कड़ी प्रतिक्रिया पड़ोसी देश पाकिस्तान की आेर से आर्इ थी। पाकिस्तान में परीक्षण के खिलाफ बहुत गुस्सा था। पाकिस्तान ने दक्षिण एशियाई क्षेत्र में परमाणु हथियारों की होड़ को भड़काने के लिए भारत को दोषी करार दिया। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने कसम खाई कि उनका देश भारत को इसका करारा जबाब देगा।