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जयपुर

राजस्थान की सियासत को इन खास मुद्दों ने बना रखा है गर्म, चुनावी समर में इनसे कैसे निपटेगी सरकार

बात की जाए सत्तारूढ़ बीजेपी सरकार की तो उसके सामने दुबारा सत्ता में आने के लिए कई तरह की चुनौतियां रहेंगी। जिनमें काला कानून, सातवें वेतनमान के अलावा य

जयपुरNov 05, 2017 / 05:45 pm

पुनीत कुमार

Rajasthan Political issue
राजस्थान में मौजूदा बीजेपी सरकार के पांच साल का कार्यकाल ख़त्म होने को है। अभी लोकसभा और विधानसभा के उपचुनाव हैं और फिर देखते ही देखते अगले साल विधानसभा के चुनाव का समय भी आ जाएगा। जैसा की विदित है प्रदेश में सत्ता परिवर्तन होने का सिलसिला चलता है, लिहाज़ा इस बार भी सत्तारूढ़ बीजेपी पार्टी के लिए जीत का सिलसिला बरकार रखते हुए सत्ता में काबिज़ होने की चुनौती रहेगी तो वहीं विपक्ष पर बैठी कांग्रेस को सत्ता का सुख भोगने के लिए खासा ज़ोर लगाना होगा।
बात की जाए सत्तारूढ़ बीजेपी सरकार की तो उसके सामने दुबारा सत्ता में आने के लिए कई तरह की चुनौतियां रहेंगी। जिनमें काला कानून, सातवां वेतनमान, किसान कर्जमाफी के अलावा अपनों का विरोध प्रमुख हैं। तो वहीं राज्य सरकार की अड़ियल रवैया को लेकर विपक्ष भी उसे लगातार घेरने में जुटा हुआ है। इन चुनौतियों से निपटना राज्य सरकार के लिए काफी मायने रखती हैं क्योंकि चुनावी रण में उतरने से पहले इन्हें दूर नहीं किया गया तो यह सरकार के लिए मुसबित बन सकता है। आइए जानते हैं आखिर वो कौन-कौन से मुद्दे हैं जिनपर मौजूदा सरकार घिरी हुई है…
काला कानून- राज्य सरकार के प्रस्तावित काले कानून यानि की क्रिमिनल लॉज (राजस्थान अमेंडमेंट) बिल 2017 की राज्य ही नहीं पूरे देश में आलोचना हो रही है। तो वहीं लोकसेवकों को संरक्षण देने और मीडिया पर पाबंदी लगाने वाले राजस्थान सरकार के इस विवादित बिल ने प्रदेश की सियासत को एक नया रुप दे चुका है। खास तौर पर सोशल मीडिया पर इसे लेकर राज्य सरकार की खूब आलोचना हो रही है। जबकि इस मामले को लेकर विपक्ष पहले सी सत्ता दल को कोई मौका नहीं देता चाहता है। ऐसे में विधानसभा चुनाव भी नजदीक है, तो वहीं इस विवादित बिल को लेकर प्रदेश की सरकार बैकफुट पर घिरती नजर आ रही है। जो उसके लिए मुसिबत पैदा कर सकता है। इससे निपटना पार्टी और राज्य सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक मना जा रहा है।
सातवां वेतनमान- राजस्थान सरकार की ओर से भले ही सातवां वेतनमान लागू दिया गया हो, लेकिन इस नए वेतनमान में सामने आई विसंगतियों को लेकर पूरे प्रदेशभर के कर्मचारी संगठनों में खासा आक्रोश दिखने को मिल रहा है। जबकि इसे लेकर पूरे राज्यभर के अलग-अलग जिलों में कर्मचारी संगठनों ने अपनी नाराजगी जाहिर कर चुके हैं। वहीं इस मामले कर्मचारी संगठनों का कहना है कि सरकार ने उनके साथ वादाखिलाफी की है। राज्यभर के कर्मचारियों में इस नए वेतनमान को लेकर विरोध-प्रदर्शन भी तेज हो गया, कहीं प्रतियां जलाई जा रही हैं। अब उन्होंने जल्द ही आंदोलन शुरु करने की बात भी कही है, जो कि राज्य सरकार के लिए किसी भी मामले में फायदेमंद नहीं है।
किसान कर्जमाफी- प्रदेश में इन दिनों बाकी मुद्दों के अलावा किसानों के मामले भी राज्य सरकार को काफी परेशान कर रखा है। प्रदेश के किसान अपनी मांगों को लेकर जहां आए दिन विरोध-प्रर्दशन कर रहे हैं, तो वहीं किसान कर्जमाफी के मामले में राज्य सरकार को अपने निशाने पर लिए हुए हैं, जो चुनावों के लिजाह से प्रदेश की सरकार के लिए काफी नुकसान पहुंचाने मामला साबित हो सकता है, तो वहीं प्रदेश की सरकार इस मामले में विपक्ष से लेकर हर मोर्चे पर घिरी नजर आ रही है।
मौसमी बीमारियां बनी सरकार के लिए सिर दर्द- प्रदेश में इन दिनों मौसमी बीमारियों का प्रकोप इतना बढ़ गया है कि सरकार भी इसके सामने अपनी लाचारी छुपा नहीं पा रही है। हालांकि सरकार इससे निपटने के पुख्ता इंतजाम के दावे भी कर रही है। आपको बता दें कि मिला जानकारी के मुताबिक अब प्रदेश में केवल स्वाइन फ्लू से 218 लोगों की मौत हो चुकी है और पॉजिटिव मरीजों का आंकड़ा 2960 के पार है। जबकि डेंगू और अन्य मौसमी बीमारियों से लोग अलग ही जूझ रहे हैं। प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं का आलम ये है कि अब खुद प्रदेश के नेता भी इससे अछूते नहीं रहे। जो कहीं ना कहीं सरकार के लिए इस गंभीर मामले पर फिर से सोचने को मजबूर कर रही है। क्योंकि आगामी विधानसभा चुनाव में ये मुद्दा सरकार को घेरने के लिए तैयार है।
युवाओं में रोष- राज्य सरकार भले ही प्रदेश के युवाओं के बेहतर भविष्य की बात करती है, लेकिन उन्हें रोजगार दिला पाने अब भी अपने लक्ष्य से काफी पीछे है, जो कि राज्य सरकार को घेरने के लिए एक गंभीर मुद्दा बना हुआ है। हालांकि विधानसबा चुनाव से पहले सरकार बेरोजगार युवाओं को बड़े पैमाने पर रोजगार देने की बात कर रही है, लेकिन जमीनी स्तर की बात करें तो सरकार इस मोर्चे पर विफल ही साबित हो रही है, और निकट भविष्य में इसे लेकर सरकार को काफी नुकसान झेलना पड़ सकता है। और इससे निपटना सरकार के लिए एक अलग ही समस्या बनी हुई है।
अपनों का विरोध- किसी सरकार के लिए उसके अपने लोग खासे मायने रखते हैं जो उसके फैसले पर अपनी सहमति जताने के साथ उसपर अड़िग रहते हैं, लेकिन बात अगर राजस्थान की सियासत की करें तो फिलहाल यहां विपक्ष के साथ-साथ सत्ता पार्टी के नेताओं ने भी सरकार को खासा परेशान कर रखा है। जहां मामला कोई भी हो खुद सरकार के विधायक ही आलोचना करने से पीछे नहीं रहते। पिछले दिनों सरकार द्वारा प्रस्तावित काले कानून को लेकर पार्टी के वरिष्ठ नेता घनश्यान तिवाड़ी अपनी सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया, जबकि विधायक माणकचंद सुराणा ने सरकार को नहीं छोड़ा। वहीं मौसमी बीमारियों को लेकर लाड़पुरा विधायक भवानीसिंह राजावत ने सरकार की विफलता को उजागर करते हुए जमकर विरोध किया।
इन सभी खास मुद्दों के अलावा प्रदेश सरकार कभी महंगाई, तो कभी आरक्षण मामले को लेकर आए दिन सुर्खियों में बनी रहती है। तो वहीं नोटबंदी के बाद यहां के कारोबारियों को जो नुकसान झेलना पड़ा उसका भी खासा विरोध झेलना पड़ा रहा है। हालांकि सरकार इन मामलों को लेकर हर तरह से निपटापने की कोशिश में है। बावजूद इसके ये मामले सरकार के लिए आए दिन एक अलग समस्या की तरह सामने आकर खड़ा हो जाता है। जो प्रदेश की सरकार के लिए आगामी विधासभा चुनाव के लिहाज से मुश्किलें पैदा करता नजर आ रहा है।

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