नियम है कि आधे मंडलों का गठन और जिलों का गठन प्रदेश अध्यक्ष निर्वाचन के लिए जरूरी है। पार्टी में सर्वसम्मति बनने के पीछे सबसे बड़ी परेशानी विधायकों व विधानसभा चुनाव के प्रत्याशियों की इच्छा है। जयपुर सहित प्रदेश के लगभग सभी जिलों में विधायक चाहते हैं कि उनकी मर्जी के ही जिला व मंडल अध्यक्ष बनें। कई जगह दूसरे धड़े ऐसा नहीं होने देना चाहते। विधायकों का मानना है कि जब निचले स्तर के पदाधिकारी उनकी मर्जी से नहीं बनेंगे तो चार साल वे कैसे जनता के बीच विरोध प्रदर्शन कर पाएंगे? समस्या यहां भी आ रही है कि विधायकों की ओर से दिए गए नामों में से कई की उम्र 40 वर्ष से अधिक हो चुकी है जबकि पार्टी आलाकमान युवाओं को प्राथमिकता देने की बात कह चुका है। संगठन में वर्षों से काम कर रहे और पार्टी में पदों की आस कर रहे कार्यकर्ताओ में रोष पैदा हो रहा है।
जयपुर में यह बड़ी मुश्किल
जयपुर में भी 32 मंडलों में से एक का भी गठन अब तक नहीं हुआ है। यहां भी इसी तरह के हालात माने जा रहे हैं। यहां मंडलों के लिए करीब 300 से अधिक दावेदार बताए जा रहे हैं। जयपुर शहर में सबसे बड़ी उलझन यहां वरिष्ठ नेताओं की मौजूदगी भी है। शहर में दो पूर्व प्रदेशाध्यक्ष अशोक परनामी और अरुण चतुर्वेदी हैं। वहीं पूर्व मंत्रियो में कालीचरण सराफ, राजपाल सिंह शेखावत और नरपत सिंह राजवी भी वरिष्ठतम में है। इन सभी को नजरअंदाज करना पार्टी के लिए बेहद मुश्किल भरा है।