किसानों का कहना हैं कि वे मंडियों में अपना लहसुन बेचने गए थे, इस लहसुन का वजन लगभग 20 क्विंटल था और इसके बदले उन्हें दाम सिर्फ दो हजार रुपए मिले यानी एक रुपए किलो लहसुन का दाम मिला, जबकि 18 अट्ठारह सौ रुपए तो भाड़ा और हम्मारी में गया, इसके अलावा लहसुन की साफ-सफाई का खर्च अलग से लगा हम किसान लागत तक नहीं निकाल पा रहे हैं
किसानों की आय दोगुनी तो नहीं हुई, लेकिन उत्पादन लागत जरूर दोगुनी हो गई है, खेती घाटे का धंधा बनती जा रही है। किसान को उसकी उपज का उचित दाम नहीं मिल पा रहा है और वो निरंतर कर्ज के दलदल में फंसता जा रहा है। लहसुन एक रुपए से भी कम में बिक रहा है, घाटे के कारण किसान इसे कभी आग के हवाले कर रहे हैं और कभी नदी में बहा रहे हैं।