बाल अधिकारों के लिए काम करने वाले स्वयंसेवी संगठनों (एनजीओ) ने २०१४-१७ तक कई इलाकों में बाल श्रम की सूचना पुलिस को दी। पुलिस ने संबंधित स्थानों पर दबिश भी दी। इसकी सूचना सिर्फ थानाधिकारी और बीट प्रभारी को होती है, जब एनजीओ टीम पुलिस के साथ मौके पर पहुंची तो वहां बालश्रम के साक्ष्य मिले, कोई बच्चा नहीं मिला। कई बार मौके पर कच्चा माल, अधूरा छूटा काम मिला, बच्चे नहीं मिले। ४-५ साल में ६० फीसदी से ज्यादा सूचनाएं लीक होने लगीं।
चिन्ताजनक तथ्य – 2011 जनगणना के अनुसार बालश्रम में राजस्थान का तीसरा स्थान है – 5 से 14 साल के करीब 9 लाख बच्चे बालश्रम से जुड़े हैं राजस्थान में – 10% बालश्रम के साथ देश का प्रमुख केंद्र है जयपुर
जयपुर में बालश्रम यहां ज्यादा अब तक की कार्रवाई को देखें तो शास्त्रीनगर, भट्टा बस्ती, नाहरगढ़, रामगंज और कोतवाली क्षेत्र में बालश्रम के मामले अधिक सामने आए हैं। खो-नागोरियान और आमेर क्षेत्र में भी बालश्रम का कई बार खुलासा हुआ है।
केस-1 8 मई 2018 संजय सर्किल बचपन बचाओ आंदोलन के प्रतिनिधि देशराज सिंह ने १ दिन पहले पुलिस को बाल श्रम के खिलाफ कार्रवाई के लिए सूचना दी। वहां पहुंचे तो वयस्क मिले। प्रतिनिधि ने वहां २५ बच्चों के बालश्रम का सत्यापन किया था, जिसके फोटो-वीडियो भी हैं।
केस-2 मार्च 2018, नाहरगढ़ बालश्रम से भाागा बच्चा चाइल्ड लाइन के पास पहुंचा। वहां से सूचना पर पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंचे तो चूडिय़ां बनाने का कच्चा माल पड़ा था। करीब ५० लोगों के बैठने का स्थान था लेकिन ४-५ बड़े बच्चे काम करते दिखे।
चाइल्ड लाइन नोडल डायरेक्टर डॉ. वर्षा जोशी ने कहा की पुलिस संवेदनशीलता बरते तो बालश्रम रुक सकता है लेकिन ऐसा होता नहीं है। पुलिस को बाल श्रम का ठिकाना बताते हैं लेकिन कार्रवाई सफल नहीं रहती। कई बार मौके के फोटो-वीडियो होने के बावजूद मौके पर कोई नहीं मिलता।
एंटी ह्मूमन टै्रफिकिंग यूनिट पुलिस अधीक्षक प्रीति जैन ने कहा की पुलिस मुस्तैदी से कार्रवाई करती है। सभी पक्षों पर विचार कर प्लॉनिंग होती है लेकिन शत-प्रतिशत सफलता संभव नहीं। अपराधियों का भी नेटवर्क होता है। इसलिए कार्रवाई के दौरान आरोपियों तक सूचना पहुंचना मुश्किल नहीं।