डीकोडिंग मशीनों के जरिए इस सेंधमारी को सदी की सबसे बड़ी जासूसी करार दिया जा रहा है। 1970 के दशक से 2018 तक चले इस ऑपरेशन को पहले थीसॉरस फिर रुबिकॉन नाम दिया गया था। अमरीका और जर्मनी को इन खुफिया सूचनाओं के बेचान से मोटा मुनाफा भी हुआ।
कंपनी डीकोडिंग मशीनों सैकड़ों देशों को बेचती रही। इनमें भारत और पाकिस्तान भी शामिल हैं। कंपनी एक ओर जहां मशीनों के बेचान से मुनाफा कमाती रही वहीं डबल क्रॉस के शातिराना खेल से इस मशीनों के जरिए डीकोड होने वाले मैसेज खुद भी इलेट्रॉनिक सेंधमारी से प्राप्त करती रहती थी।
अमरीकी व्हिसलब्लोअर एडवर्ड स्नोडन ने वर्ष 2013 में खुलासा कि था कि अमरीकी सिक्युरिटी एजेंसी ने वाशिंगटन स्थित भारतीय दूतावास के कंप्यूटरों में भी सेंध लगाई थी। साथ ही अमरीका ने संयुक्त राष्ट्र में भारतीय स्थायी मिशन में भी इलेक्ट्रानिक जासूसी की थी। कई सूचनाओं का खुलासा हुआ था।
बोरिस हेगेलिन नामक एक रूसी देश छोड़ कर पहले स्वीडन फिर अमरीका में जा बसा था। उसने स्विटजरलैंड में क्रिप्टो एजी नामक कंपनी बनाई। संदेश डीकोड करने वाली मशीन बनाने वाली इस कंपनी को सीआइए और बीएनडी ने 1970 के दशक में इस कंपनी पर अधिकार कर लिया।
ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड अमरीका को डीकोडिंग से फायदा
– कुख्यात ईरानी बंधक प्रकरण (1979)
– लीबिया के बर्लिन डिस्को में बम विस्फोट (1986)
– ब्रिटेन का फॉकलैंड युद्ध (1982)