मलिक ने सुरों में पिरोई राग जयजयवंती कार्यक्रम की दूसरी प्रस्तुति के रूप में विचित्र वीणा वादिका डॉ. राधिका उमड़ेकर ने राग चारूकेशी में जोड़, झाला और आलाप में ध्रुवपद के आलापचारी के बाद 12 मात्रा, द्रुत चौताल एवं 9 मात्रा में बंदिशों को प्रस्तुत किया। पखावज पर मुम्बई के मृणाल उपाध्याय ने संगत की। अंतिम प्रस्तुति में दरभंगा घराने के पं. प्रेम कुमार मलिक ने राग जयजयवंती सहित अन्य रागों में खंडार वाणी के आलापों की प्रस्तुति के बाद चौताल एवं सूलताल में बंदिशों को पेश करते हुए लयकारियां, तिहाईयां एवं अनाघात आदि का प्रयोग किया। उनके साथ पखावज पर पं. अखिलेश गुंदेचा ने साथ दिया। समारोह के मुख्य अतिथि राजस्थान संगीत नाटक अकादमी के अध्यक्ष अशोक पांड्या थे। संचालन प्रणय भारद्वाज ने किया। अंत में कार्यक्रम संयोजिका डॉ. मधु भट्ट ने सभी का आभार व्यक्त किया।
‘ध्रुवपद परम्परा एवं प्रयोगÓ पर हुई चर्चा इससे पूर्व राजस्थान चैम्बर भवन में आयोजित हुई राष्ट्रीय संगोष्ठी में वक्ताओं ने ‘ध्रुवपद परम्परा एवं प्रयोगÓ पर अपने विचार व्यक्त किए। इस मौके पर विख्यात रूद्रवीणा वादक उस्ताद बहाउद्दीन खान डागर ने अपने पिता उस्ताद के द्वारा वीणा में किए गए प्रयोगों को दर्शकों के समक्ष रखा। उन्होंने कहा कि प्रयोगों में नियंत्रण एवं संतुलन आवश्यक है एवं परम्परा प्रयोग अलग नहीं बल्कि समानार्थी है। विद्वान वक्ता प्रो.राजेश्वर आचार्य ने ध्रुवपद की अनेक शाब्दिक एवं आर्थिक व्याख्याओं एवं उनके समसामयिक परिप्रेक्ष्य में प्रायोगिक स्वरूप को दर्शाया। संगोष्ठी में डॉ.मधु भट्ट तैलंग एवं डॉ. सत्यवती शर्मा द्वारा संपादित पुस्तक ‘संगीत एवं नवाचारÓ का विमोचन भी किया गया।