कई प्रकरणों में आचार संहिता के उल्लंघन के बावजूद खानापूर्ति किए जाने से आयोग की विश्वसनीयता भी खतरे में पड़ी है और आचार संहिता की पालना को लेकर आयोग के भीतर मतभेदों से इस संवैधानिक संस्था की साख को आघात पहुंचाया है।
मुख्यमंत्री ने सुझाव दिया है कि आचार संहिता के दौरान मुख्यमंत्री, मंत्रीगण, मुख्य सचिव एवं पुलिस महानिदेशक को अधिकारियों से सीधे फीडबैक लेने तथा कानून-व्यवस्था एवं जनहित के कार्यों की मॉनिटरिंग की मनाही के कारण आवश्यक निर्णय नहीं हो पाते।
उन्होंने कहा है कि लोकसभा के चुनाव सामान्यत: गर्मी में होते हैं व इस दौरान राजस्थान जैसे मरूस्थलीय प्रदेश में पेयजल प्रबंधन को लेकर विभिन्न समस्याएं होती हैं। आचार संहिता के कारण जनस्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग न तो स्वीकृत कार्यों के कार्यादेश जारी कर पाता है और न ही नए टेण्डर स्वीकृत हो पाते हैं।
कार्यादेश जारी नहीं होने से बिजली जैसी अति आवश्यक सेवाओं की उपलब्धता एवं सुधार का कार्य भी प्रभावित होने से आमजन को भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है। आचार संहिता के दौरान ऐसे प्रतिबंध नहीं होने चाहिए।
मुख्यमंत्री ने कहा है कि आचार संहिता के दौरान छोटे-छोटे रूटीन तथा आपात एवं राहत कार्यों के लिए भी चुनाव आयोग की अनुमति लेनी पड़ती है। इसमें काफी समय लगता है। आचार संहिता इतने सूक्ष्म स्तर पर लागू नहीं होनी चाहिए क्यों कि इससे निर्वाचित सरकार के लिए रोजमर्रा के काम करना मुश्किल हो जाता है।
गहलोत ने आयोग के दो अप्रेल, 2019 को दिए गए निर्देशों को याद दिलाते हुए कहा है कि इन निर्देशों के माध्यम से जिला कलेक्टरों को मुख्य चुनाव अधिकारी एवं चुनाव आयोग से अनुमत किसी अधिकारी के अलावा अन्य किसी अधिकारी द्वारा आहूत बैठक में भाग लेने से मना कर दिया गया। इस कारण मुख्य सचिव, डीजीपी तथा एसीएस गृह भी चुनाव एवं कानून-व्यवस्था संबंधी बैठक नहीं ले सके। यह प्रतिबंध उचित नहीं हैं। इनसे कानून-व्यवस्था की स्थिति प्रभावित होती है और अपराधियों के हौसले बुलन्द होते हैं।
मुख्यमंत्री ने मतदान के बाद मतगणना तक आदर्श आचार संहिता जारी करने को अतार्किक बताकर इसे हटाने का सुझाव दिया है। क्यों कि मतदान के बाद संबंधित राज्यों में मतदाता के प्रभावित होने का कोई प्रश्न नहीं रह जाता ऐसे में वहां आचार संहिता लागू नहीं रखी जानी चाहिए। उन्होंने आचार संहिता की अवधि को न्यूनतम करते हुए इसे सामान्यत: 45 दिन तक सीमित रखने का सुझाव दिया है।
गहलोत ने राजकीय विश्राम स्थलों के संबंध में भी 8 जनवरी, 1998 तथा 6 अप्रेल, 2004 के परिपत्रों की व्यवस्था को ही वापस लागू किए जाने की मांग की है ताकि जेड प्लस एवं उच्चतर श्रेणी की सुरक्षा प्राप्त व्यक्तियों के साथ ही सभी राजनीतिक पार्टियों के जनप्रतिनिधियों को राजकीय विश्राम स्थलों पर ठहरने के समान अवसर मिल सकें।
मुख्यमंत्री ने आशा व्यक्त की है कि चुनाव आयोग इस महत्वपूर्ण संवैधानिक संस्था की साख बनाए रखने तथा लोक कल्याण की दृष्टि से सुझावों पर गम्भीरता से विचार करेगा ताकि आदर्श आचार संहिता के अनावश्यक प्रावधानों में समय के अनुरूप यथोचित संशोधन किया जा सके।