गहलोत ने प्रधानमंत्री तो लिखा कि मजदूरों और सरकार के हितों की रक्षा हो सके इसके लिए ‘इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड, 2016‘ में संशोधन किया जाए। गहलोत ने इस कानून की विसंगतियों की ओर प्रधानमंत्री का ध्यान आकृष्ट करते हुए बताया कि इस कोड के प्रावधान मजदूरों एवं राज्य सरकार के हितों के विपरीत हैं, जबकि इसका उद्देश्य बंद उद्यमों का पुनः चालू करने, राज्य संपदा और कार्यरत श्रमिकों के हितों की रक्षा होना चाहिए।
मुख्यमंत्री ने कहा है कि इस कानून के अनुसार किसी उपक्रम के बंद होने की स्थिति में वहां का रहे कार्मिकों और मजदूरों को केवल 24 महीने की देय राशि के भुगतान का प्रावधान है। इस नाममात्र के भुगतान से जीवन यापन के संकट से जूझने वाले कार्मिकों में असंतोष व्याप्त होता है तथा कई बार कानून व्यवस्था की स्थिति बिगड़ने के हालात बन जाते है।
गहलोत ने पत्र में बताया कि किसी भी राजकीय उपक्रम में भूमि और भवन सहित राज्य सरकार की बहुमूल्य पूंजी लगी होती है, लेकिन इस कानून के तहत उपक्रम के बंद होने पर राज्य सरकार को भुगतान को प्राथमिकता देने का कोई प्रावधान नहीं है।
उन्होंने कहा कि यह कानून की गंभीर त्रुटि है। साथ ही, इस कानून के तहत किसी उद्यम के बंद होने की स्थिति में बैंक ऋणों के विक्रय की प्रक्रिया में भी पारदर्शिता का अभाव है, क्योंकि उपक्रम की परिसम्पतियों के मूल्यांकन के लिए सरकार को खरीददार कम्पनी तथा निस्तारण के लिए नियुक्त बिचैलिए पर निर्भर रहना पड़ता है।
निजी कम्पनी बन जाती है बहुमूल्य संपत्ति की मालिक
मुख्यमंत्री ने पत्र में लिखा है कि ऐसे प्रकरणों में अधिकांशतः खरीदार कंपनी उपक्रम के संचालन के लिए बैंक से लिए गए मूल ऋण को न्यूनतम राशि पर खरीदकर उसे कई गुना बढ़ाकर बिचौलिए के समक्ष दावा प्रस्तुत करती है।
इसके परिणामस्वरूप खरीददार निजी कंपनी नाम मात्र कीमत चुकाकर रूग्ण इकाई की भूमि, भवन तथा अन्य बहुमूल्य परिसम्पतियों पर एकाधिकार प्राप्त कर इनकी मालिक हो जाती है।
मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री को सुझाव दिया है कि वे इस पर गंभीरता से विचार कर इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड 2016 के प्रावधानों को संशोधित करें और राज्य की संपदा और श्रमिकों के हितों का संरक्षण करें।