तय सीमा में आवाज और धुएं वाले पटाखों को ही सुप्रीम कोर्ट ने ग्रीन यानी ईको फ्रेंडली पटाखा माना है। ग्रीन पटाखे दिखने, जलाने और आवाज में सामान्य पटाखों की तरह ही होते हैं, लेकिन इनसे प्रदूषण कम होता है। इनमें नाइट्रोजन ऑक्साइड और सल्फर डाइऑक्साइड की कम मात्रा इस्तेमाल होती है। सामान्य पटाखों की तुलना में इन्हें जलाने पर 40 से 50 प्रतिशत तक कम हानिकारण गैस पैदा होते हैं।
सामान्य पटाखों के जलाने से भारी मात्रा में नाइट्रोजन और सल्फर डाई ऑक्साइड गैस निकलती हैं, जो हमारे शरीर के लिए नुकसानदेह होती हैं। पटाखों से सबसे ज्यादा नुकसान उन बुजुर्गों को होता है, जो एक तरफ बुढ़ापे का मार झेल रहे होते हैं और दूसरी तरफ तमाम बीमारियों से घिरे होते हैं। गर्भवती महिलाओं के लिए तो पटाखे किसी विनाशकारी हथियार से कम नहीं हैं।
देश में 30 प्रतिशत पटाखे गैरकानूनी तरीके से चीन से आते हैं। डीआरआई के मुताबिक, चीनी पटाखों में प्रतिबंधित लाल सीसी, कॉपर ऑक्साइड और लीथियम सहित कई हानिकारक रसायनों का इस्तेमाल होता है। इन पटाखों से आंखों में जलन, सांस लेने में दिक्कत जैसी समस्याएं होती हैं। खासकर बच्चों के लिए ये पटाखे ज्यादा नुकसानदायक हैं।