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जयपुर

कोरोना का कहर: नहीं पहुंची दवा तो पनामा बिल्ट बीमारी से तबाह हो जाएगा केला

देश भर में लॉकडाउन से आवागमन पर लगी रोक के कारण प्रयोगशालाओं में टिश्यू कल्चर से केले के पौधे तैयार करने तथा पनामा विल्ट बीमारी की रोकथाम के लिए तैयार दवा को किसानों तक पहुंचने में वैज्ञानिकों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।

जयपुरApr 09, 2020 / 09:29 pm

Subhash Raj

कोरोना का कहर: नहीं पहुंची दवा तो पनामा बिल्ट बीमारी से तबाह हो जाएगा केला

कोरोना का कहर: नहीं पहुंची दवा तो पनामा बिल्ट बीमारी से तबाह हो जाएगा केला

टिश्यू कल्चर से प्रयोगशलाओं में उच्च गुणवत्ता के रोग मुक्त तैयार किए जाने वाले केले के पौधे के लिए उत्तर भारत में केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान (सीआईएसएच) लखनऊ की प्रयोगशालाएं लॉकडाउन के कारण बंद हो गई लेकिन वैज्ञानिकों के अथक प्रयास से 70 प्रतिशत कल्चर को बचा लिया गया था।
यह समय उत्तर भारत में केले की फसल लगने के लिए उपयुक्त है। केले में घातक बीमारी पनामा विल्ट की रोकथाम के प्रयास के तहत सीआईएसएच टीकाकरण प्रौद्योगिकी के माध्यम से टिश्यू कल्चर से 35000 से 50000 केले के पौधे तैयार करने के प्रयास में लगा है। इन पौधों को रोग ग्रस्त क्षेत्र के किसानों के खेत में इस वर्ष लगाकर प्रयोग किया जाना है। यदि इसे समय पर नहीं लगाया जाता है तो नई फसल का आना मुश्किल है।
पनामा विल्ट बीमारी मई जून में तापमान में वृद्धि के कारण महामारी का रूप ले लेता है और एक खेत से दूसरे खेत में फैलने लगता है। इससे केले के पौधे रोग ग्रस्त हो जाते हैं और किसानों को भारी नुकसान होता है। अभी तापमान के कम होने से यह रोग प्राकृतिक रूप से नियंत्रण में है। वर्तमान परिस्थिति में वैज्ञानिक नवाचार और अन्य माध्यमों से केले के उच्च गुणवत्ता के पौधे तैयार करने का प्रयास कर रहे हैं। वैज्ञानिकों ने पनामा विल्ट बीमारी की रोकथाम के लिए बायोकंट्रोल एजेंट आई सी ए आर फुजिकांट दवा तैयार की है। इस दवा के समय पर उपयोग से इस बीमारी को प्रभावशाली तरीके से रोका गया है और किसानों को भारी नुकसान से बचाया गया है। फुजिकांट प्रौद्योगिकी से सामूहिक रूप से इस बीमारी को नियंत्रित किया जाता है। देश में सी आई एस एच ही एक मात्र ऐसा संस्थान है जहां पनामा विल्ट बीमारी की रोकथाम के लिए आधा टन दवा उपलब्ध है लेकिन परिवहन सुविधाओं के अभाव के कारण इसे जरूरतमंद किसानों तक पहुंचना मुश्किल हो रहा है। वैज्ञानिक किसान समूहों के साथ विभिन्न संचार माध्यमों से संपर्क में है लेकिन रेल और सड़क यातायात के बाधित होने के कारण वे कुछ कर नहीं पा रहे है।

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