सबसे पहले बात करते हैं प्रदेश की राजधानी स्थित नाहरगढ़ बायो पार्क की तो यहां अब बस एक ही हाईब्रीड मादा शेरनी सुहासिनी जीवित है क्योंकि बीमारी के चलते एशियाटिक नर शेर सिद्धार्थ, शेरनी तेजिका और सुजैन की मौत हो चुकी है। आपको बता दें कि सिद्धार्थ और तेजिका को जनवरी 2016 में जयपुर लाया गया था और इनकी जोड़ी को यहां आने वाले पर्यटकों ने बेहद पसंद किया था। लेकिन दो साल में ही बीमारी के कारण तेजिका दुनिया में नहीं रही। इसके बाद इसी साल जून में सिद्धार्थ की मौत हो गई। शेरनी सुजैन की मौत सितंबर 2019 में हो चुकी थी। इसे शकरबाग जू से लाया गया था।
वहीं लॉयन सफारी में एक मादा और तीन नर शेर तारा, तेजस, त्रिपुर और कैलाश हैं। यहां कैलाश और तारा की जोड़ी बनाई गई है। कैलाश को जोधपुर स्थित माचिया बायोलॉजिकल पार्क से यहां लाकर छोड़ा गया है।
वहीं यदि हम प्रदेश के अन्य बायोलॉजिकल पार्कों की बात करें तो जोधपुर के माचिया बायोलॉजिकल पार्क में दो शेरनी और एक शेर हैं वहीं उदयपुर के सज्जनगढ़ बायो पार्क में इनकी संख्या 8 ही है।
गुजरात का गिर नेशनल पार्क एशियाई शेरों की ठिकाना बना हुआ है। यहां शेरों की संख्या बढ़कर 674 हो गई है। यहां पर शेरों की जनसंख्या में 29 फीसदी बढ़ोतरी हुई है। वन विभाग के आंकड़े देखें तो मई 2015 में की गई गणना के दौरान यहां 523 एशियाई शेर थे। पांच साल में यहां 151 शेर बढ़े हैं और अब इनकी संख्या 674 हो गई है। गिर की सेंचुरी में 161 मेल, 260 फीमेल शेर, 116 व्यस्क शावक और 137 शावक बताए जा रहे हैं। इसी के साथ शेरों का रेंज भी 30 हजार स्कॉयर किलोमीटर हो गया है, जो 30 फीसदी ज्यादा है। यह क्षेत्र 2015 में 22000 स्कॉयर किलोमीटर था। अधिकारियों की मानें तो शेरों की संख्या 2001 की तुलना में अब दोगुनी हो गई है।
बफर एरिया में शिकार की घटनाएं
एशियाई शेर को वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 के अनुसूची.1 और इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर में लुप्त प्राय: श्रेणी में सूचीबद्ध किया गया है। आपको बता दें कि इनका साम्राज्य संरक्षित क्षेत्रों से बाहर की ओर बढ़ रहा है जिसके चलते बाहर के बफर एरिया में शिकार बढ़ता जा रहा है। वन्यजीवों के प्राकृतिक आवास से बाहर जाने पर पशुधन और फसल हानि होने पर वन्यजीव और मानव के बीच संघर्ष की संभावना बढ़ती है। यह सब एशियाई शेरों की बढ़ती संख्या और घटती टेरिटरी के कारण है।
हाल ही में कैनाइन डिस्टेंपर वायरस और किलनी वाहित बेबसीयोसीस बीमारी के कारण भी इनकी मृत्यु हुई है, जो कि इनके संरक्षण के सामने एक चुनौती प्रस्तुत करता है। आपको बता दें कि देश में गिर सेंचुरी एशियाई शेरों का एकमात्र आश्रय स्थान है लेकिन 2018 में यहां भी कैनाइन डिस्टेंपर वायरस से 36 शेरों की मौत हो गई थी।
इनके सरंक्षण को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक है कि हम वन्यजीवों का सम्मान करें और उनके रहवास में शांति बनाए रखें। एशियाई शेर को बचाने के लिए जन सहयोग की जरूरत है। शेरों का वैज्ञानिक प्रबंधन, रोग नियंत्रण और समय पर इलाज के साथ ही शिक्षा और जागरुकता कार्यक्रम चलवाना ही इनके व्यापक भूमिका निभा सकता है।