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जयपुर

राजनीति में अपराधियों को संरक्षण!

राजनीति में अपराधियों को संरक्षण!

जयपुरSep 02, 2018 / 09:52 pm

rajendra sharma

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राजनीति में अपराधियों को संरक्षण!

वह दिन था सोमवार का…तारीख थी 15 अप्रेल…वर्ष 2014…जगह थी गुजरात का गांधीनगर, थ्री डी होलोग्राफिक तकनीक के इस्तेमाल से वह संबोधन 15 राज्यों में 100 जगह सीधा प्रसारित किया जा रहा था…और भाषण था तब के एनडीए और बीजेपी के प्रधानमंत्री पद का चेहरा और आज के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का। वे पूरे जोश से बोले थे, यदि देश की जनता मुझे सत्ता सौंपती है तो बिना किसी भेदभाव के दागी सांसदों-विधायकों पर मुकदमा चलाने के लिए सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में विशेष अदालतें बनाकर एक साल के भीतर ऐसे अपराधियों को सलाखों के पीछे भेज दिया जाएगा। सौंप दी, जनता ने सत्ता, लेकिन और करीब साढ़े चार साल भी बीत गए।
यह अब फिर से याद आ गया है। दरअसल, पिछले दिनों ही में सुप्रीम कोर्ट और इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दागी सांसदों, विधायकों और अन्य जनप्रतिनिधियों को लेकर सरकार से जवाब तलब किया है। और, जवाब चौंकाने वाले मिले हैं, विशेषकर केंद्र सरकार ने तो सुप्रीम कोर्ट को ऐसे मामलों से दूर रहने तक को कह दिया। उघर, यूपी सरकार ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में पेश हलफनामे में उत्तर प्रदेश के मौजूदा 36 सांसद, 182 विधायक और 22 विधान परिषद सदस्यों के क्रिमिनल केसेज विभिन्न अदालतों में विचाराधीन होने की बात कही है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी सरकार से पूछा था कि सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार सांसदों विधायकों आदि के पेंडिंग मामलों की सुनवाई एक साल में पूर्ण क्यों नहीं करवाई गई। तो, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर पूछा था कि ऐसे सांसदों, विधायकों के चुनाव लड़ने पर क्यों न रोक लगा दी जाए।
चुनाव आयोग ने की थी सिफारिश—
निर्वाचन आयोग ने इस मामले में अपना रुख साफ करते हुए सर्वोच्च अदालत में कहा था कि उसने और विधि आयोग ने गंभीर अपराधों में आरोप तय होने पर व्यक्ति के चुनाव लड़ने पर रोक के बाबत कानून में संशोधन की केंद्र सरकार से सिफारिश की थी, लेकिन सरकार ने कुछ नहीं किया, और संसदीय समिति ने सिफारिश को नकार दिया। ऐसे में यदि संसद कुछ न करे तो कोर्ट इस पर आदेश दे, क्योंकि देश में स्वच्छ चुनाव मतदाता का अधिकार है। यहां बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में दागी सांसदों—विधायकों के चुनाव लड़ने पर आजीवन प्रतिबंध लगाने संबंधी याचिका विचाराधीन है।
अब दागियों की तरफदारी क्यों—
जनता ने वादे पर एतबार कर प्रचंड बहुमत देकर भाजपा नीत एनडीए सरकार बनवा दी, उसके बाद सरकार अपने वादे से पलटती दिखी। कोर्ट ने मोदी सरकार से पक कर तीन साल की होने के बाद भी दागी विधायकों-सांसदों के चुनाव लडऩे पर आजीवन प्रतिबंध लगाने पर जवाब मांगा तो सरकार ने कहा, विधायक या सांसद अगर किसी आपराधिक मामले में दोषी पाया जाता है तो वो अपने आप अयोग्य नहीं होगा तथा उसकी सीट को तत्काल प्रभाव से खाली घोषित नहीं किया जा सकता है। कानून उसे दोषी ठहराए जाने के फैसले के खिलाफ अपील करने का मौका देता है। साथ ही कहा, यह पॉलिसी का मामला है, इसमें कोर्ट को दखल नहीं देना चाहिए।
34 फीसदी सांसद दागी—

जनता ने राजनीति को अपराधियों से मुक्ति दिलाने के वादे पर भरोसा कर जिस मोदी सरकार को जिताया। इसके बावजूद संसद में पहुंचे आपराधिक छवि के 34 फीसदी यानी 186 सांसद। सोलहवीं लोकसभा में 112 सांसद तो ऐसे हैं तो ऐसे हैं जिन पर हत्या, हत्या के प्रयास, सांप्रदायिक हिंसा, अपहरण और महिलाओं के खिलाफ अपराध के आरोप हैं। पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के जरिए नवनिर्वाचित सांसदों के किए गए अध्ययन के मुताबिक ये आंकड़े सामने आए हैं। संस्था ने नामांकन के समय दाखिल किए गए 543 में से 541 सांसदों (दो के शपथ पत्र स्पष्ट नहीं थे) के हलफनामे का विश्लेषण कर यह आंकड़ा तैयार किया है।
बीजेपी के सर्वाधिक सांसद दागी—

अध्ययन के वक्त सौलहवीं लोकसभा के लिए चुने गए सांसदों में भाजपा के 281 सांसदों में से 98 (35 फीसदी) पर आपराधिक मामले थे। तो, कांग्रेस के 44 में से आठ (18 प्रतिशत), अन्नाद्रमुक के 37 में से छह (16 फीसदी), एनडीए की घटक शिवसेना के 18 सांसदों में से 15 (83 प्रतिशत) और तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर जीते 34 में से सात (21 फीसदी) पर आपराधिक मामले थे। इन सांसदों में से नौ पर हत्या का मामला चल रहा था, इनमें से चार सासंद भाजपा के थे, जबकि कांग्रेस, लोजपा, राजद स्वाभिमानी पक्ष के एक-एक सांसद पर हत्या का मामला था। चुनाव के वक्त हत्या के प्रयास के आरोप का सामना कर रहे सांसदों की संख्या 17 थी। इनमें से 10 सांसद भाजपा के, तृणमूल कांग्रेस के दो, कांग्रेस, राकांपा, राजद, शिवसेना और स्वाभिमानी पक्ष के एक-एक सांसद थे। सांप्रदायिकता फैलाने के आरोप का सामना कर रहे सांसदों की संख्या 16 थी। इनमें से 12 भाजपा के टिकट पर जीते, तो तृणमूल कांग्रेस, पीएमके, आल इंडिया मजलिस-ए-इत्ताहुदुल मुसलमीन और एआईयूडीएप के एक-एक सांसद थे। इतना ही नहीं, दस सांसदों पर चोरी और डकैती के मामले चल रहे हैं। इनमें भी भाजपा सात सांसदों के साथ भाजपा आगे रही, राजद और स्वाभिमानी पक्ष के ऐसे एक-एक सांसद थे। अपहरण के मामलों में भी भाजपा आगे रही इसमें इस पार्टी के तीन, तृणमूल कांग्रेस, लोजपा और राजद के एक-एक सांसद आरोपों का सामना कर रहे थे।
गंभीर मामलाेें में भी बीजेपी अव्‍वल—

इन आंकड़ाेें के आलोक में देखें तो वहीं भाजपा के 63 (22 फीसदी), कांग्रेस के तीन (सात फीसदी), अन्नाद्रमुक के तीन (आठ फीसदी), शिवसेना के आठ (44 फीसदी) और तृणमूल के चार सांसद (12 फीसदी) गंभीर किस्म के आपराधिक मामलों के विचाराधीन रहते वे चुने गए।
बहरहाल, जब लालूप्रसाद यादव पर कोर्ट से सजा होने पर छह साल के लिए चुनाव लडऩे पर प्रतिबंध लगाया गया, तब सबसे ज्यादा खुश बीजेपी को जब सुप्रीम कोर्ट में मौका मिला अपने वादे पर खरे उतरने का तो टालमटोल कर दी। कितना अच्छा हो कि आपराधिक प्रवृत्ति के लोग चुनाव ही नहीं लड़ सकें, अन्यथा जनता पिसती ही रहेगी।
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