34 फीसदी सांसद दागी— जनता ने राजनीति को अपराधियों से मुक्ति दिलाने के वादे पर भरोसा कर जिस मोदी सरकार को जिताया। इसके बावजूद संसद में पहुंचे आपराधिक छवि के 34 फीसदी यानी 186 सांसद। सोलहवीं लोकसभा में 112 सांसद तो ऐसे हैं तो ऐसे हैं जिन पर हत्या, हत्या के प्रयास, सांप्रदायिक हिंसा, अपहरण और महिलाओं के खिलाफ अपराध के आरोप हैं। पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के जरिए नवनिर्वाचित सांसदों के किए गए अध्ययन के मुताबिक ये आंकड़े सामने आए हैं। संस्था ने नामांकन के समय दाखिल किए गए 543 में से 541 सांसदों (दो के शपथ पत्र स्पष्ट नहीं थे) के हलफनामे का विश्लेषण कर यह आंकड़ा तैयार किया है।
बीजेपी के सर्वाधिक सांसद दागी— अध्ययन के वक्त सौलहवीं लोकसभा के लिए चुने गए सांसदों में भाजपा के 281 सांसदों में से 98 (35 फीसदी) पर आपराधिक मामले थे। तो, कांग्रेस के 44 में से आठ (18 प्रतिशत), अन्नाद्रमुक के 37 में से छह (16 फीसदी), एनडीए की घटक शिवसेना के 18 सांसदों में से 15 (83 प्रतिशत) और तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर जीते 34 में से सात (21 फीसदी) पर आपराधिक मामले थे। इन सांसदों में से नौ पर हत्या का मामला चल रहा था, इनमें से चार सासंद भाजपा के थे, जबकि कांग्रेस, लोजपा, राजद स्वाभिमानी पक्ष के एक-एक सांसद पर हत्या का मामला था। चुनाव के वक्त हत्या के प्रयास के आरोप का सामना कर रहे सांसदों की संख्या 17 थी। इनमें से 10 सांसद भाजपा के, तृणमूल कांग्रेस के दो, कांग्रेस, राकांपा, राजद, शिवसेना और स्वाभिमानी पक्ष के एक-एक सांसद थे। सांप्रदायिकता फैलाने के आरोप का सामना कर रहे सांसदों की संख्या 16 थी। इनमें से 12 भाजपा के टिकट पर जीते, तो तृणमूल कांग्रेस, पीएमके, आल इंडिया मजलिस-ए-इत्ताहुदुल मुसलमीन और एआईयूडीएप के एक-एक सांसद थे। इतना ही नहीं, दस सांसदों पर चोरी और डकैती के मामले चल रहे हैं। इनमें भी भाजपा सात सांसदों के साथ भाजपा आगे रही, राजद और स्वाभिमानी पक्ष के ऐसे एक-एक सांसद थे। अपहरण के मामलों में भी भाजपा आगे रही इसमें इस पार्टी के तीन, तृणमूल कांग्रेस, लोजपा और राजद के एक-एक सांसद आरोपों का सामना कर रहे थे।
गंभीर मामलाेें में भी बीजेपी अव्वल— इन आंकड़ाेें के आलोक में देखें तो वहीं भाजपा के 63 (22 फीसदी), कांग्रेस के तीन (सात फीसदी), अन्नाद्रमुक के तीन (आठ फीसदी), शिवसेना के आठ (44 फीसदी) और तृणमूल के चार सांसद (12 फीसदी) गंभीर किस्म के आपराधिक मामलों के विचाराधीन रहते वे चुने गए।
बहरहाल, जब लालूप्रसाद यादव पर कोर्ट से सजा होने पर छह साल के लिए चुनाव लडऩे पर प्रतिबंध लगाया गया, तब सबसे ज्यादा खुश बीजेपी को जब सुप्रीम कोर्ट में मौका मिला अपने वादे पर खरे उतरने का तो टालमटोल कर दी। कितना अच्छा हो कि आपराधिक प्रवृत्ति के लोग चुनाव ही नहीं लड़ सकें, अन्यथा जनता पिसती ही रहेगी।