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कभी जयपुर में दिखती थी ‘बनारस‘ की सुबह और ‘अवध‘ की शाम, घुंघरुओं की छमछम और तबले की थाप पर लोग भूल जाते थे नींद

बड़ी चौपड़ के खंदों में वटवृक्ष की छांव तले शहर के लोग फुर्सत के क्षण में आराम करते…

जयपुरDec 09, 2017 / 03:32 pm

dinesh

Old Jaipur
जयपुर। गुलाबीनगर में कभी बनारस की भोर, प्रयाग की दोपहरी, अवध की शाम और बुंदेलखंडी रात सा अनुपम नजारा दिखाई देता था। बेतहाशा आबादी और वाहनों की रेलमपेल में ये नजारे बीते दिन की बात बन चुके हैं। पुराने दिनों के स्वर्णिम काल की कई यादों को भी विकास के नाम पर उजाड़ दिया गया। आजादी के पहले तक गलता और सूरजपोल दरवाजे पर सूर्योदय की सुहानी रोशनी के दौरान का नजारा बनारस की भोर से मिलता जुलता था।। दोपहर को रामगंज चौपड़ से बड़ी चौपड़ तक प्रयाग की दोपहरी का मनोरम दृश्य बनता। बड़ी चौपड़ के खंदों में वटवृक्ष की छांव तले शहर के लोग फुर्सत के क्षण में आराम करते। चौपड़ के कुंडों में चलते फव्वारे और सैकड़ों कबूतरों की उड़ान का यह नजारा लोगों के मन को सुकून देता। ताश और चौपड़ पासा खेलने वाले मौज भरे मूड में घंटों बठे रहते। कहीं नकली मूंछे लगाए नक्काल मनोरंजन करते और तांगे वाले भी घोड़ों की थकावट मिटाते।
चांदपोल की गणिकाओं के घुंघरु की छमछम देती थी सुनाई

छोटी चौपड़ से चांदपोल दरवाजे तक का इलाका जैसे शाम-ए-अवध बन जाता था। चांदपोल की गणिकाओं के घुंघरु की छमछम बाहर तक सुनाई देती। तबले की थाप के साथ सारंगी के तारों को कसने की आवाज बाहर बैठे लोगों को सुकून देती। फुटपाथ पर दर्जनों कतार में बैठे रहते और चंगा पौ, तीन और नौ कांटी के अलावा शतरंज खेलते हुए मस्ती के आलम में डूब जाते। ब्रह्मपुरी और पुरानी बस्ती में लोग रात को जागते और बुंदेलखंडी रात का सा वातावरण बना देते।
सारी रात गाली गायन के जमे रहते अखाड़े

बारह भाइयों के चौराहे पर तो सारी रात गाली गायन के अखाड़े जमे रहते। ऐसे में लोग अपनी नींद को भूल जाते। गालीबाजी के उस्ताद रात भर गायन करते। मंदिरों में भी रात भर युगलजी की पार्टी के भजनों का दौर चलता। देवेन्द्र भगत के मुताबिक तब आज जितनी रोशनी की चकाचौंध भी नहीं थी। ऐसे में पुरानी बस्ती में गणगौरी बाजार और ब्रह्मपुरी का इलाका बुंदेलखंडी की रात में बदल जाता। इस क्षेत्र में इतने आयोजन होते कि रात के बीतने का पता ही नहीं चलता।

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