चांदपोल की गणिकाओं के घुंघरु की छमछम देती थी सुनाई छोटी चौपड़ से चांदपोल दरवाजे तक का इलाका जैसे शाम-ए-अवध बन जाता था। चांदपोल की गणिकाओं के घुंघरु की छमछम बाहर तक सुनाई देती। तबले की थाप के साथ सारंगी के तारों को कसने की आवाज बाहर बैठे लोगों को सुकून देती। फुटपाथ पर दर्जनों कतार में बैठे रहते और चंगा पौ, तीन और नौ कांटी के अलावा शतरंज खेलते हुए मस्ती के आलम में डूब जाते। ब्रह्मपुरी और पुरानी बस्ती में लोग रात को जागते और बुंदेलखंडी रात का सा वातावरण बना देते।
सारी रात गाली गायन के जमे रहते अखाड़े बारह भाइयों के चौराहे पर तो सारी रात गाली गायन के अखाड़े जमे रहते। ऐसे में लोग अपनी नींद को भूल जाते। गालीबाजी के उस्ताद रात भर गायन करते। मंदिरों में भी रात भर युगलजी की पार्टी के भजनों का दौर चलता। देवेन्द्र भगत के मुताबिक तब आज जितनी रोशनी की चकाचौंध भी नहीं थी। ऐसे में पुरानी बस्ती में गणगौरी बाजार और ब्रह्मपुरी का इलाका बुंदेलखंडी की रात में बदल जाता। इस क्षेत्र में इतने आयोजन होते कि रात के बीतने का पता ही नहीं चलता।