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जयपुर

अनुच्छेद-370 का मामला बड़ी पीठ को भेजने पर फैसला सुरक्षित

सुप्रीम कोर्ट में छठे दिन सुनवाई

जयपुरJan 24, 2020 / 01:46 am

Vijayendra

Court verdict: one month imprisonment for molesting woman

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नई दिल्ली.
जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करने का मामला बड़ी पीठ को भेजने पर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को फैसला सुरक्षित कर लिया। जस्टिस एनवी रमन्ना, जस्टिस एसके कौल, जस्टिस आर सुभाष रेड्डी, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत की संविधान पीठ ने मामले में छह दिन सुनवाई की। वरिष्ठ अधिवक्ता जेडए शाह, राजीव धवन, चंदर उदय सिंह, गोपाल शंकरनारायणन, दिनेश द्विवेदी और संजय पारेख ने याचिकाकर्ताओं की ओर से दलीलें दीं। सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तर्क रखे।
जजों के सवाल और अधिवक्ताओं की दलीलें
जस्टिस कौल : (वरिष्ठ वकील जेडए शाह से) क्या अन्य रियासतों द्वारा हस्ताक्षरित इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेसेशन (विलय पत्र) कश्मीर से अलग थे?
जेडए शाह: पूरी तरह अलग नहीं थे। अनुच्छेद 370, स्टैंडस्टिल समझौता और विलय समझौते में अंतर था।
अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल: यह कहना गलत है कि अलगाववादी बुरे नहीं हैं। विभिन्न विश्वसनीय पुस्तकें और रेकॉर्ड बताते हैं कि युद्ध में प्रशिक्षित कबाइलियों को पाकिस्तान से भेजा गया था। विद्रोही हालात पैदा हो गए। तब कश्मीर रियासत के महाराजा ने भारत से मदद मांगी।
वेणुगोपाल : संविधान की धारा 3 का उल्लेख करते हुए कहा कि जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है इसलिए जनमत संग्रह का सवाल ही नहीं है। स्टैंडस्टिल और विलय समझौते के संदर्भ में तर्क भी अप्रासंगिक हैं।
वेणुगोपाल : संविधान के अनुच्छेद-1 को पढ़ा। जिसमें कहा गया है कि जम्मू-कश्मीर भारत के संविधान का एक हिस्सा बन गया है। धारा 370 केवल जम्मू-कश्मीर की विधायी शक्तियों के लिए है।
सॉलिसिटर तुषार मेहता : दो निर्णयों के बीच कोई असंगति नहीं है। इसलिए मामले को बड़ी पीठ के पास भेजने का कोई मतलब नहीं है। मैं दिखाना चाहूंगा कि असली अलगाववादी कौन हैं। केएनएस ने हाल ही में इस पर रिपोर्ट दी है।
राजीव धवन : राजनीतिक बयानों का कोई मतलब नहीं है।
एसजी मेहता : शाह द्वारा दी गई दलीलें राजनीतिक थीं और अदालत में अलगाववादी आंदोलनों को सही ठहराने की कोशिश की गई। ऐसा नहीं होना चाहिए था।

ऐसे चली सुनवाई
मामले में 14 नवंबर को सुनवाई होनी थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सभी याचिकाएं संकलित कर एक साथ सुनवाई करने को कहा। इसके बाद 10 दिसंबर को सुनवाई शुरू हुई। 11 दिसंबर को सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट में शीतकालीन अवकाश हो गया। इसके बाद बीते सोमवार से गुरुवार तक बहस हुई।

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