1918 में प्लेग का कहर मिट जाने के बाद जयपुर में मेडिकल कॉलेज, चांदपोल का जनाना अस्पताल और सवाई मानसिंह अस्पताल खोले गए। स्थानीय और अंग्रेज चिकित्सकों ने आगे बढ़कर सेवा का काम हाथ में लिया।
स्कॉटिश मिशन का भी चिकित्सा क्षेत्र में योगदान रहा। रिकॉर्ड के मुताबिक 1903 से 1918 तक जयपुर में प्लेग से 21312 लोग मौत के शिकार हुए। उस दौरान दलजंग सिंह खानका ने सेवा से जनता का दिल जीत लिया था। खानका के बारे में कवियों ने लिखा, देखा दवाई काबिल जो मरीज मुश्किल, खुदा मानो दूसरा वह रोग भगाने वाला।
सन 1917 में महामारी से रोजाना की औसत मृत्यु दर 165 और इससे पहले के सालों में रोजाना 60 लोगों ने दम तोड़ा। स्वास्थ्य अधिकारी डॉ टीएच हैंडले की पुस्तक, मेडिकल हिस्ट्री ऑफ राजस्थान में लिखा कि डॉक्टर बन लालदास और दलसिंह खान की टीम ने रोगियों का उपचार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। स्कूल कॉलेज 1 माह तक बंद किए गए और बाहर से आने वालों का रेलवे स्टेशन पर चिकित्सा परीक्षण किया जाने लगा।
सर गोपीनाथ पुरोहित जी की डायरी में 1905, 1908, 1912, 1917 और 1918 तक की रिपोर्ट में 21589 लोगों के मरने का आंकड़ा है। उनकी डायरी के पन्ने खाली हैं इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि करीब 35000 से ज्यादा लोगों की मृत्यु हुई थी। 1917 में मौतों का आंकड़ा 4418 रहा। मृतकों को कंधा देने वाला भी नहीं रहा। शव को बैल गाड़ियों में रखकर शमशान, कब्रिस्तान ले जाना पड़ता। अंतिमक्रिया कर वापस आते तब मोहल्ले में कई और मरे हुए मिलते। डॉक्टर संजय गांगुली और डॉक्टर की टीम ने चौड़ा रास्ता के महाराजा पुस्तकालय में स्थापित जयपुर मेडिकल हॉल व पानीपेच पर आर्मी अस्पताल में इलाज किया।
डाक्टर मेकलिस्टर को केसर हिंद के सम्मान से नवाजा गया। उस दौरान जंगलों में भी आइसोलेशन वार्ड कायम किए गए। इसके अलावा डॉक्टर थॉमस, जेफ रॉबिन्सन, भोलानाथ, प्राणनाथ, ज्वाला प्रसाद, डॉ ताराशंकर माथुर, डॉ नरूल हक आदि ने प्लेग की महामारी में सेवाएं दी। प्लेग खत्म हो गया तब रियासत में डिस्पेंसरी और अस्पताल खोलने का सिलसिला शुरू हुआ। जिसके तहत सवाई मानसिंह अस्पताल, मेडिकल कॉलेज खुला। डॉक्टर जीएस सेन, रॉबर्ट हीलिंग, एस के मेनन, एल आर सरीन, एससी मेहता, आर एम कासलीवाल, डॉक्टर नारायणन, आरएम कासलीवाल, बीएन कंसल आदि ने चिकित्सा जगत में जयपुर का नाम ऊंचा किया।
फोटो प्रतीकात्मक